शनिवार, 26 मई 2007

फुर्सत मिले तो ......

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बरसों से खडे हैं हम
राह पर उनके इन्तजार में
उम्मीद है वह कभी आएंगे
हमारा काम है इन्तजार करना
तय उनको करना है कि
कब हमारे यहां आएंगे
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जब भी देखा उनको
नज़रें फेरने लगे
हम जितने भी जाएँ पास उनके
वह हमसे दूर होने लगे
हमें समझा हमेशा ग़ैर
उनकी इसी अदा से
वह हमें अपने लगे
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उनका चेहरा हमारी
आंखों में बसा है
पर पता मालुम नहीं
उनके ख्वाबों में इतना खोये रहते हैं
कि सोचते हैं फुर्सत मिले
तो उनका पता ढूँढें
ऐसा कब होगा हमें मालुम नहीं
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गुरुवार, 24 मई 2007

कवि और कविता

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कविता लिखना इतना आसान नहीं
जितना लगता है
सभी के अन्दर होती है
भावों की हलचल
उनके साथ बहना सरल नहीं
जितना लगता है
दंभ में लोग लिखते हैं भी
बिना समझे लोग
वाह-वाह करते हैं
झूठ के पाँव नहीं होते
वह चलता नहीं पर
चलने का भ्रम होता है
दिल सभी के पास है
दिमाग भी है
पर सभी कवि नहीं हो जाते
क्योंकि चरण वंदना और चाटुकारिता
करना सभी को सहज लगता है
केवल रुदन नहीं करते
केवल जख्म नहीं दिखाते
केवल छिद्रान्वेषण ही नहीं करते
अपनी पीडा से भी सहज शब्दों का
अमृत लोगों में बांटते हैं
करते हैं मंत्र मुग्ध हर लेते हैं
सभी की पीड़ा
कवि हृदय अपने अन्दर पालना
इतना सरल नहीं है
जितना लगता है

गुरुवार, 17 मई 2007

हमारे योगासन और प्राणायाम नारद पर पेटेंट कर लो

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नारद पर अपने योगासन और प्राणायाम पेटेंट करने के लिए मैं यह अपना आवेदन भेज रहा हूँ कृप्या मेरा योगासन भी पेटेंट कर लो।अब जब अमेरिका में योगासनों का पेटेंट हो रहा है तो हमें भी कर लेना चाहिए ।

मै जब छोटा था तो स्कूल के एक अध्यापक थे और हमारे ही पड़ोस में रहते थे, एक बार उन्होंने कहा कि जो बच्चा मेरे यहां योग साधना करने आएगा वह जरूर पास हो जाएगा। हमने कुछ और समझा और लग गये उनके घर सुबह जाकर योग साधना करने। योग साधना के मामले में हमने उनसे काफी कुछ सीखा, उस समय हमें यह पता नहीं था कि सीख क्या रहे हैं पर कुछ ऎसी आदत बन गयी कि मैं तब से आज तक सुबह उठकर प्राणायाम जरूर करता हूँ और उसके बाद बाहर घूमने जाता हूँ। मुझे तो अभी पिछले बरस ही पता लगा कि उन्हें अनुलोम-विलोम, कपाल भारती और भस्त्रिका कहते हैं । मैं अब भी पद्मासन में ध्यान लगाता हूँ ।यह तो मुझे अब पता लगा कि उसे पद्मासन कहते हैं। बहरहाल मैं सुबह सैर कराने को ही अपने असली एक्सरसाइज कहता हूँ, और जो प्राणायाम करता हूँ उसका महत्व अब जाकर समझा हूँ । उस दिन भतीजा और भतीजे जरूर कहने लगे " चाचाजी हमें भी योग साधना सिखा दो "।
मैंने कहा -" कि मुझे खुद योग साधना नहीं आती तुम्हें क्या सिखाउंगा।"

उस दिन भतीजी कह रही थी-" चाचा जो आप करते हो न उसे ही तो योग साधना कहते हैं । आप हमें भी सिखा दो।"

मैंने कहा-"अगर तुम्हें सीखना है तो टीवी पर देखकर सीख लो , मेरा पीछा छोडो ।
दोनों चुप हो गये फिर मैंने कहा-"तुम अपने पापा से क्यों नहीं सीख रहे वह तो रोज जाते हैं पार्क में करने। उनसे कहो घर पर ही तुम्हे भी करायेगे । वैसे भी तुम करोगे क्या सीखकर।"
भतीजा बोला-"इससे अक्ल और वजन दोनों पर कण्ट्रोल होता है । आदमी बहुत तेज हो जाता है।"
मैंने आश्चर्य से पूछा तुम्हें कैसे मालुम ?"भतीजा बोला-"आपको देखकर लगता है कि यह सच ही होगा। हम सब को चुप करा देते हैं पर आप हमें चुप करा देते हो।"

"मैंने कहा-"अच्छा तुम चाहते हो कि मैं ही तुम्हें सिखाऊं और तुम मेरे को ही चुप कराने लगो । मैं नहीं सिखाता तुम्हें ।"
भतीजी बोली-"मत सिखाओ चाचा, आपका भी योग साधना बंद हो जाएगा। अब इसे अमेरिका में पेटेंट कर दिया है आप पर टेक्स लग जायेगा। हमें सिखाओगे तो आपका भी पेटेंट हो जाएगा तब कोई आप टैक्स नहीं लगा पायेगा। हम आपकी गवाही देंगे।"
मेरी भतीजी सुबह उठकर अपने पापा के कहे अनुसार गर्दन को घड़ी की तरह घुमाती है और मैंने देखा है कि पिछले एक वर्ष में उसमें काफी परिवर्तन आये है।मैंने उससे कहा-"तुम्हें यह सब किसने बताया?"
मेरी भाभी जो इस वार्तालाप को सुन रहीं थी बोलीं, आज अखबार में भी आया है और कल टीवी पर भी सूना था , मैंने ही इनको बताया था ।"
"नहीं! वह तो आपने भईया को बताया था मैंने तो खुद टीवी पर सुना था ।" ,मेरी भतीजी अपने को बुध्दिमान साबित करने का कोइ अवसर नहीं छोडती।
भतीजा बोला-"चाचा आप हमें न सिखाओ पर अपना अपने योग का पेटेंट तो करा लो । ऐसा न हो कि फिर हमें और कोइ भी न सिखा सके।"
"मैं कहॉ पेटेंट कराऊँ।"मैंने चिढ़कर पूछा
" वह आपने क्या बनाया है इण्टरनेट पर? ब्लोग... हाँ उस पर आप लिख कर डाल दो । चाचाजी आप यह काम जरूर करो और कभी हम सीखेंगे तो कोई नहीं रोक पायेगा हम कहेंगे हमारे चाचा का पेटेंट है." भतीजा बोला।
"इस कम्प्यूटर पर तो तुम्हारा पेटेंट है-"मैंने कहा-"इस पर मैं लिखूं तो लिखूं कब ?सारा दिन तो तुम्हारे गेम चलते हैं । उधर उनके पेटेंट का गेम चल रहा है इधर तुम्हारा।"
"चाचाजी , आप कुछ पर भी करो अपना योग साधना पेटेंट करा लो। हम आज नही बैठते कम्पूटर पर।"भतीजा बोला।
उनकी बातें सुनकर मुझे हंसी आ गयी ।चलिये साहब अब हम अपने कुछ आसान पेटेंट करा हे लेते है।
।१।मेरी भतीजी रोज सुबह घड़ी की तरह गर्दन घुमाती है । पहले दाएं तरह से बाएँ और फिर बाएँ से दाएं । पहले बाएँ से दाएं बाएँ और फिर दाएं से बाएँ घुमाने पर हमारा कोई पेटेंट नहीं है
।२।मेरा भतीजा चादर बिछाकर जमीन पर सोकर दोनों घुटने मिलाकर पहले सीधे सायकिल चलाने का और फिर इसका उल्टा करता है। पहले उल्टी सायकिल चलाकर और फिर सीधी चलाने पर हमारा कोई पेटेंट नहीं होगा
।३।मेरी भाभी अपने दाएं हाथ को सीधा कर अपने सामने रखती है और फिर उसे दाएं से खींचते हुए बाएँ ले जाती है इससे ध्यान और एकाग्रता में वृध्दि होती है। बाएँ से दाएं कराने या बाएँ हाथ से करने पर हमारा कोइ पेटेंट नहीं है
।४।मैं सुबह उठकर अपनी नाक के दाहिने हिस्से पर उंगली रखकर बाएँ से सांस लेता हूँ और फिर दाहिने से छोड़ता हूँ और फिर दाहिने हिस्से से सांस लेकर बाएँ से छोड़ता हूँ। इसे अनुलोम-विलोम कहते है और फिर पेट में सांस भरकर उसे जोर से पिच्काता हूँ उसे कपाल भारती कहते हैं । उसके बाद पूरा पेट खालीकर सांस रोक कर मैं पेट को जोर से पिचाकाता हूँ उसे अग्निसार कहते हैं यह पाचन क्रिया को सही रखता है। अनुलोम विलोम की तरह एक और प्राणायाम है जिसमें सांस रोकता हूँ उसे नाडी शोधन प्राणायाम कहते है, इनसे अलग क्रम करने पर हमारा कोई पेटेंट नहीं है।
लो हो गया पेटेंट। नारद वाले भी गवाह हो गये। अब रहे भैया के आसन तो उनसे किसी दिन बैठकर वह भी करवा लेंगे। अब देखते हैं कौन क्या कर लेता है? अपने तो हो गये आसान और प्राणायाम पेटेंट । भाई लोगों लगे हाथ आप भी नारद पर अपने आसन पेटेंट करा लो। अभी अकेला हूँ चार पांच हो जायेंगे तो हिम्मत हो जायेगी। अगर तुम नहीं करते तो कोई बात नहीं मगर पेटेंट करवाने में क्या हर्ज है। कोइ एक किताब उठा लो और ब्लोग पर लिख मारो , मेरे पास कोई किताब नहीं है अगर होती तो चौसठ आसन भी करालेता। आपको आसन करना आते हैं या नही यह कौन देखने वाला है। योगसाध्ना का मतलब जानना भी जरूरी नहीं है और इस बात से भी चिंतित होने की भी जरूरत नही है कि हम तो भारत में रहते है कोइ अमेरिका में थोड़े ही रहते हैं, अरे जब कोई भारत का आदमी अमेरिका में बैठकर इसे पेटेंट करा सकता है तो क्या हम भारत में नहीं कर सकते।तुम अंगरेजी में करा डालो तो कोई समस्या ही नहीं आयेगी। हिंदी में मैं करा डालूँगा। डरना बिल्कुल नहीं, अपना नारद भी अपने साथ है। नहीं हुआ तो हो जाएगा।

बुधवार, 16 मई 2007

भरोसे के जो तार टूट गये हैं

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कभी-कभी मन मेरा
उन गलियों में
भटकने के लिए तरसता है
जहां से तेरे घर का रस्ता है
चल पड़ता हूँ उस ओर
फिर बढ़ते क़दमों को थाम लेता हूँ
यह सोचकर कि
भरोसे के जो तार टूट गए हैं
उनसे अब क्या रिश्ता है
जब-जब तेरी याद आती है
तब उसे भुलाने की कोशिश
करने के लिए होती है जंग
मेरे इस उदास मन में
जिसमे मन ही मेरा पिसता है

मंगलवार, 15 मई 2007

ख्यालों में सवालों में

कुछ पल की ख़ुशी
कुछ पल का गम
कुछ पल का प्यार
कुछ पल की नफ़रत
हर पल मई जीता हो जिन्दगी
अपने ख्यालों में
तुन मुझमे चाहे जो ढूढ़ लो
चाहे मुझे जो समझ लो
पर मुझे नही घेरना सवालों में
जिन्दगी का हर पल जीने वाले की
अपनी ही अमानत होता है
मुझे कोई रास्ता न सुझाओ
कोई सपना मुझे न दिखाओ
मेरा सच अच्छा है या बुरा
छोड़ दो मुझे अपने हॉलों में
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यह कविता सुधार कर पुन: प्रस्तुत की गयी है

सोमवार, 14 मई 2007

सवालों में ख्यालों mein

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सोमवार, 7 मई 2007

दोस्त किसका, मेरा या मोटर सायकिल का

कल मेरे एक दोस्त अपने विवाह के लिए लडकी देखने गया, जाने से पहले उसने मुझे फोन किया और बोला-"यार आज तुम अपने मोटर सायकिल लेकर आना और हम एक लडकी देखने चलेंगे ।"
हमने पूछा कि _"भाई तुम पहले भी इतनी लडकियां देख चुके हो, तब हमारे याद नहीं आयी , कहीं तुमने नापसंद की और कहीं तुम्हें नापसंद किया गया, ऐसा तो नहीं कि टीवी पर हमारी राशी को भविष्यफल देख लिया हो और सोच रहे हो कि हमारे भाग्य से तुम्हारा भी कम बन जाये । क्योंकि हमने अभी टीवी पर अपना भविष्य फल देखा था जिसमे कहा गया कि कि आज का दिन आपके लिए बहुत अच्छा निकलेगा। "
वह बोला-"नहीं यार आज मेरी मोटर साइकिल खराब है इसीलिये तुम्हें लेकर चलने की सोच रहा हूँ । फिर तुम भी लडकी देख लो बुराई क्या है?
हमने कहा-"तुम मेरे दोस्त हो या मेरी मोटर सायकिल के? वैसे तुम्हारी मोटर सायकिल खराब है दिखाने लायक नहीं है? जहां तक हमारी जानकारी है वह तुम्हारी नहीं बल्कि तुम्हारे मिडिल पास भतीजे की है जिसे तुम निहोरे कर ले आते हो ।"
अरे यार तुम तो इस समय भी मजाक उड़ाने लगे ।" वह बोला_"तुम्हें नहीं लाने तो मना कर दो । वैसे भे मैंने जानता हूँ कि तुम मेरे लिए अपने भतीजे के निहोरे करोगे।"
मैंने उससे आने का वादा किया और फोन रखा वैसे हे देखा हमारी भतीजी जो पास में बैठी ही अपने पापा के निर्देशानुसार अपने गर्दन घड़ी दीं तरह घुमाने का व्यायाम कर रही थी, उठकर कमरे से बाहर चली गयी। मैं कम्प्यूटर पर बैठाकर काम करने लगा। थोड़ी देर बाद हमारी भाभी और भतीजा उस कमरे में आये। भाभी बडे रूखे स्वर में बोलीं-"भैया अपने भतीजे को मोटर सायकिल की चाबी दे दो यह अपनी नानी के पास जा रहा है ।"
मैंने पानी भतीजी कि तरफ देखा, तो उनसे मुँह फेर लिया। मैंने भाभी से कहा-"आज मुझे काम है। आप कहो तो मैं मैं इसे नानी के पास छोड़ता जाऊंगा। फिर वापस भी लेकर आऊंगा।
भाभी निर्णायक स्वर में बोलीं-"नहीं तुम वहां नहीं जाओगे, उनका तुम्हारा आना पसंद नहीं। जैसे तुम्हारी माताजी को उनका यहां आना पसंद नहीं वैसे ही उन्हें तुम्हारा आना पसंद नहीं ।"
मैं जानता था कि मेरे भाई का पूरा परिवार मेरे माताजी और अन्य रिश्देदारों का गुस्सा मुझ पर निकालता है और चूंकि मोटर सायकिल और घर का कम्प्यूटर भाई साहब की कमाई से ही खरीदे गये हैं और इण्टरनेट भी उससे लीं है तो मुझे भाई -भाभी के साथ भतीजे-भतीजी के साथ तालमेल बना कर चलना पड़ता है। इस ब्लोग बनाने के लिए भतीजे ने इजाजत इस शर्त पर दीं थी कि मैं उसे उसके स्कूली विषयों के बारे में रोज एक घंटे पढाया करूंगा। बहरहाल मैं सोच रहा था कि इस समस्या से इस समस्या से कैसे निप्तूं इसी बीच मेरे उसी दोस्त का फोन आ गया-" वह बोला यार, तुम्हें परेशा होने की जरूरत नहीं है , मेरे मामा का लड़का अपनी मोटर साइकिल ला रहा है। "
फोन से आवाज बाहर आ रही थी और मेरे भतीजे ने भी सुना। मैंने जब से चाबी निकाली और भतीजे की तरफ बधाई तो वह बोला मुझे अब इसकी जरूरत नहीं है । भाभी बोलीं-"देखो मुझे कैसे कह रहा था कि मुझे मोटर सायकिल चाहिए।"
मेरी भतीजी जो कम्प्यूटर पर केवल इसलिये बैठी थी कि आज चाचा से इस विषय पर भी रट्टा ले ही लेते हैं वह उठकर चल दी । मैं सोच रहा था कि कौन किसका दोस्त है कौन किसका रिश्तेदार । मेरे या मोटर सायकिल के या कम्पूटर के,।

शनिवार, 5 मई 2007

हिंदू आध्यात्म का रहस्य जानना जरूरी

यह क्या हो रहा है। बाबा लोग काले धन को सफेद बना रहे हैं! चमत्कार है, जो लोग बाबाओं पर विश्वास नहीं करते उन्हें एक टीवी चैनल पर आ रही उस खबर को जरूर देखना चाहिए जिसमे भारत के सात बाबाओं को काला धन कमीशन लेकर सफ़ेद बना देते हैं । एक स्टिंग आपरेशन में इन बाबाओं को जिस तरह बातें करते हुए दिखाया गया है उस पर उनके भक्त आसानी से यकीन नहीं करेंगे और उनके प्रति मोह भंग भी हो सकता है । देश के कई बाबाओं ने भक्तों की भावना का लाभ उठाते हुए अपने तमाम तरह के धधे चला रखे हैं यह सब जानते हैं, यहां तक कि उनके भक्तों को भी यह अनुमान रहता है कि उन आश्रमों में आम आदमी और खास आदमी के बीच जो अंतर करते हुए व्यवहार किया जाता हिया उसे भी वह भोगते हैं , फिर भी मन की शांति के लिए वहां जाते हैं। अधिकतर भक्त सोचते हैं कि हमें तो अपनी भक्ती से मतलब है और वह इनके कार्यक्रमों में जाते हैं । मैं और मेरे बडे भाई साहब की बचपन से आदत है कि धार्मिक कार्यक्रमों में जाकर कथा और भजन सुनते हैं, और तो और मेरा भतीजा और भतीजी उस समय मेरी चमचागिरी करते हैं जब शहर में कोई धार्मिक कार्यक्रम होता है और स्कूटर पर बैठकर मेरे साथ उन्हें चलना होता है। लोग कहते हैं कि भारत बाबाओं और सन्यासियों का देश है पूरी तरह गलत है, दरअसल यह भक्तों का देश है। सवाल यह है कि लोग क्यों जाते हैं बाबाओं के पास। इसका कारण यह है हिंदुओं के धरम ग्रंथ आदमी के मन में रूचिकर भाव के साथ भक्ती उत्पन्न करते हैं, उनमें जीवन सा साथ तमाम तरह का विज्ञान होता है और उनके बारे में केवल संत समाग्नों में पढने को मिलता है। अगर इन धर्मग्रंथों को स्कूली शिक्षा में शामिल किया जाये तो लोग इनके बारे पढ़ कर उसे जो ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं वह कहीं और से प्राप्त नहीं हो सकता। जब लोगों को इन ग्रंथों के बारे में जानकारी हो जायेगी तब इन संतों के पास कोई नहीं जाएगा लोग स्वयं ही संतों जैसी योग्यता हासिल कर लेंगे तो फिर इनके यहां नहीं जायेंगे , मैं जानता हूँ कि इसका विरोध होगा। पर सत्य यही है कि हिंदू धरम ग्रंथों में जो भक्ती और आध्यात्म का रस है उससे लोग अवगत नहीं है इसीलिये जब इन संतों के मुख से जब इन ग्रंथों के बारे में सुनते हैं तो उनकी मन में नवीनता के भाव के साथ ही भक्ती और स्फूर्ति का भी अनुभव होता है। मेरा भतीजा और भतीजा जब गीता और भागवत पर किसी के मुख से जब कोई बात सुनते हैं तो बस उसकी तरफ देखते रहते है तब मुझे लगता है कि उन्हें इसकी शिक्षा स्कूल में भी दीं जाना चाहिए । इससे देश में नैतिक और आध्यात्म वातावरण का निर्माण होगा। जब तक यह शिक्षा नहीं दीं जायेगी तब तक हम अपनी जड़ों से कटे रहेंगे । इन बाबाओं से मेरी कोई सहानुभूति नहीं है क्योंकि इतनी पहुंच का दावा करने के बावजूद इन लोगों ने हिंदू धर्म ग्रंथों को शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में शामिल करने का प्रयास नहीं किया क्योंकि वह जानते थे कि अगर सब लोग हिंदू धर्म ग्रंथों के गूढ़ रहस्यों से परिचित हो जाएंगे तो फिर उनकी कोई पूछ नहीं रह जायेगी। दरअसल धर्मनिरपेक्षता के नाम पर केवल हिंदू धर्म को हमेशा निशाना बनाया गया है और इस पर इस तरह हमला किया जाता है कि दुसरे धर्मों की सहानुभूति के साथ पर अन्तर्राष्ट्रीय संपर्क भी बन सकें । याद राखन कि भारत को विश्व गुरू आज भी सूचना तकनीकी और अंगरेजी शिक्षा की वजह से नहीं बल्कि उसके अध्यात्म की वजह से है ।

शुक्रवार, 4 मई 2007

न इश्क किया होता न यह हाल होता

इश्क, दोस्ती और शायरी के शौक़ ने इस हाल में पहुंचा दिया है कि अब इस भीड़ में जोकर बन कर रह गया हूँ। सोचता हूँ कि अब अपने कम्प्यूटर पर अपने कलम के जलवे दिखाए । एक दोस्त ने यह गलत सलाह दे डाली अगर तुम्हारी कोइ सुनता नही है तो तुम अब ऎसी जगह ढूँढो जहां तुम्हारी कोइ सुने। हमने सोचा वह तो केवल बेजान कम्प्यूटर ही हो सकता है जहां जानदार लोगों की बस्ते हो सकती, उस दिन इंडियन एक्सप्रेस में जब ब्लोग के बारे में पढा तो सोचा बना ही डालो अपना एक ब्लोग । सो अब पूरी तैयारी है , वह कहते हैं न कि इश्क ने निकम्मा कर दिया वरना अहम भी आदमी थे काम के ।
इस ब्लोग के बारे में एक दोस्त से ट्रेनिंग ले आया उसने मुझसे यह वचन लिया कि में उसका नाम लेकर किसी को नहीं बताऊंगा कि मेरे से ट्रेनिंग ली है। वह मेरे लिखेने से खुश नहीं है क्योंकि उसे लगता है में लिखें में खतरनाक हूँ, पर मैंने उसे वचन दिया है मैं ऐसा कुछ नहीं लिखूंगा कि और लोगों को परेशानी हो .