मंगलवार, 19 जून 2007

जो आज़ाद रहे हैं गुलामी का मतलब नहीं जानते

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उनका लोकतंत्र तो
परलोक में बसता है
यहां बात करते हैं आजादी की
पर दिल उनका डंडा बजने वाले
देशों में ही रमता है
बच्चे पैदा करने से लेकर
अपने मरने तक के मामले में
सरकार अपना फंदे कसे रहती है
लोगों के सांस लेने पर भी
जो हिसाब मांगती है
उस देश को मानते हैं आदर्श
यहां आजादी नहीं मांगते
उसकी सीमाओं को तोड़कर
बताते हैं कि
हमें आजादी नहीं है
भटके लोग हैं वह
मत अपने शब्द बरबाद करो
अपने लक्ष्य की तरफ बढते रहो
उनकी देह है इसी जमीन पर बनी
पर उनका मन और कहीं है
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जहाँ शब्द खामोश हो
वहाँ क़त्ल होता है
फरियाद नहीं होती
ऎसी जगहें दूर से शांत
और सहज दिखती हैं
पर असल में नरक से
कम नहीं होतीं
जहां शब्द गूंजता है
वहां तिनके गिरने की भी
आवाज भी सुनाई देता है
लगता है शोरगुल बहुत है
पर आजादी का मतलब
वही जानते हैं
जो गुलामी से जीते हैं
जो आज़ाद रहे हैं सदा
वह गुलामी का मतलब भी
नहीं जानते हैं

गरीब के लिए महल नहीं बनवा देंगे

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इस दुनिया से गरीब-अमीर का भेद
कभी मिट जाएगा यह एक ख्वाब है
दिखाते हैं कई लोग
पर कैसे होगा
इस सवाल का नहीं
उनके पास कोई जवाब है
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वह चिल्ला-चिल्लाकर
गरीब और अमीर का भेद
मिटने का वादा करते हैं
गरीब को दौडाते हैं जुलूस में
अमीरों को कमाने का मौका
खुद ही दिलाते हैं
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गरीबों के झुंड न होंगे तो
अमीरों की पहचान कैसे होगी
अमीरों मे महल नहीं जगमगाएंगे
तो गरीब के घर अँधेरे की
पहचान कैसे होगी
इसीलिये दुनिया भर के गरीबों
जूट रहो अमीर होने की जंग में
कभी न कभी तो तुम्हारी भी
ख्वाहिशें पूरे होंगीं
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वह हर गरीब से वादा करते हैं
उसे अमीर के बराबर बैठा देंगे
पर कभी यह नहीं कहते कि
तुझे अमीर बना देंगे
उसके खोली को जगमगाने का
हमेशा करते हैं वादा
पर कभी यह नही कहते कि
तेरे लिए महल बना देंगे
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