शुक्रवार, 29 फ़रवरी 2008

अपना बजट तो होता है कड़वे सत्य पर आधारित-हिंदी शायरी

घर का बजट में ही
इतना उलझ जाते हैं
किसी और के बजट पर
सोच ही कहाँ पाते हैं
दाल, गेहूँ ,चावल, नमक और शक्कर
इनके इर्द-गिर्द ही चलता है अपना चक्कर
रेल में तो कभी कभार जाते हैं
घर के खेल में उलझे होते हैं ऐसे कि
देश के अर्थ के बजट से कभी अपने अर्थ
जोड़ने की तो फुरसत ही कहाँ पाते हैं
अपना बजट तो होता है
कड़वा सत्य पा आधारित
आंकडों से सजे बजट
हम समझ कहाँ पाते हैं
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गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008

जिन्दगी वही जीते हैं-हिंदी शायरी

अपने लिए कितने
संजोने रहोगे सपने
जो कभी नहीं होते अपने
सोते हुए सपने कभी डरा देते हैं
दिन को जो देखे, वह जिन्दगी से हरा देते हैं
अपने हर पल पर नजर रखो
जिन्दगी कितनी भी कठिन हो
लड़ना तुमको है
उत्साह से लडो या निराशा से
सपने कभी पार नहीं लगा देते हैं
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इस जीवन पथ पर
चलना सभी को है
कायर हो या वीर
कुछ यहाँ बैलों की तरह भी चलते हैं
कुछ बनते हैं सारथी और कुछ राजा
खो देते हैं अपने कीमती पलों को
जल्दी-जल्दी तरक्की की खातिर
पर जिन्दगी वही जीते हैं जो होते धीर-गंभीर
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जीवन भी आखिर कबाड़ हो जाता है-हिंदी शायरी

जब भी अवसर मिले
तब प्रार्थना करते हुए याचना करते हैं
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए
भरोसा नहीं है उस परमात्मा पर
जिसने जीवन जीने के लिए
इतने कीमती पल दिए

देह के हर अंग में
बख्शी है वह ताकत
जो हर चीज हासिल कर सके इंसान
कभी न हो बेईमान
पर फिर भी आदमी
पूरी जिन्दगी गुजार देता है
अपने पाँव परमात्मा के घर चक्कर लगाते हुए
हाथ उठाकर मांगते हुए
मन आंखों से अपने प्रयत्नों से
एकत्रित सामान को देखते हुए
भूल जाता है वह अपना कर्तव्य
यहाँ जीना है उसे सबके लिए
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बडे प्रयत्नों से जुटाया हुआ सामान भी
कभी कबाड़ हो जाता है
क्या सोचकर जुटाते हैं सब
अपना खून पसीना क्या
इसी कबाड़ को एकत्रित कर गुजारेंगे
अपने सारे कीमती पल इसके लिए बिगाडेंगे
ऐसा करते हुए हमारा अपना जीवन भी
आखिर कबाड़ का घर हो जाता है
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बुधवार, 27 फ़रवरी 2008

जो अपने थे कभी अजनबी हो जाते हैं-हिंदी शायरी

आज तो हिलोरें ले रहा हैं मन
दिल में खिल रहा है खुशी का चमन
कभी घेर लेता है तनावों का सिलसिला
पर किससे और क्यों करें कोई गिला
अपनी ही गलतियों का जिम्मा लोग
डालते हैं दूसरों पर
क्या यकीन करेंगे हम पर
हमारे गम पर लोग हँसते हैं
खुशी देख कर जलते हैं
इसलिए अच्छा है हम रखें अमन
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चेहरे नहीं बदलते पर लोगों के
कभी दिल बदल जाते हैं
यह आदमी नहीं वक्त का खेल है कि
जो अपने थे कभी अजनबी हो जाते हैं
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मंगलवार, 26 फ़रवरी 2008

मैं मस्तराम 'आवारा' हूँ, गलती सुधारिए

मैंने आज चौराहा नामक एक ब्लोग पर एक लेख देखा। उसमें मेरा जिक्र भी है। इस संबंध में अपना स्पष्टीकरण दे दूं। मस्तराम शब्द से बहुत दिन से मेरा ब्लोग भी लोग खोलकर देखते हैं। मैंने भी एक बार वह ब्लोग खोला था पर उसमें मेरी रूचि की लिए कोई सामग्री नहीं थी। यहाँ मैं बता दूं की मेरा उस ब्लोग से कोई संबंध नहीं है। मेरे दो ब्लोग हैं और मैं अपना काम करने के बाद ऐसे ही छोटी रचनाएं लिखकर काम चलाता हूँ। आज मैं पहले अपने स्टेट काऊंटर से जब देखने गया तो वहाँ से मुझे लिंक मिला मैंने उसे पढा। उसमें मेरा ब्लोग भी दिखाया था। मस्तराम मेरा नाम नहीं है पर मुझे प्यार से सभी इसी नाम से पुकारते हैं। इस ब्लोग पर मैंने बहुत समय से नहीं लिखा था पर अब इस पर लिख रहा हूँ।
आज समझ में आ रहा है कि इतने पाठक कहाँ से आ रहे हैं? मुझे यह ब्लोग खोले दस महीने से अधिक हो गया है और मुझे तो अब पता लगा कि कोई और भी मस्तराम है। वह जो हैं वह जाने पर मैं नहीं हूँ। कृपया कर मेरे वेब पेज का लिंक अपने ब्लोग से हटा लें। यार, ऐसे ही किसी भले आदमी को बदनाम मत करो। लिंक देने से पहले मेरा ब्लोग पढ़ तो लेते। उसमें ऐसा कुछ नहीं है। हाँ अगर इस तरह की रचनाएं चाहते हों तो कहीं से प्रायोजक दिलवाओ तो मैं भी लिख सकता हूँ पर उसमें भी बदतमीजी नहीं होगी। वह रचनाएं गुदगुदाएंगी पर उसमें अश्लीलता नहीं होगी। सभ्रांत लोग उसे पढ़कर शमिन्दा नहीं होंगे। आज अच्छा खासा व्यंग्य कवितायेँ लिखने का मन लेकर आया था पर मूड ही खराब हो गया।कम से कम मुझसे पूछ तो लिया होता। यह नारद। ब्लोग्वानी और चिट्ठाजगत पर लिंक ब्लोग है। ताज्जुब हैं इसे लोग नहीं समझ पाए। आशा है सब लोग समझ जायेंगे। मैं अपने मस्तराम नाम से लिखता रहूँगा। जिन्हें पढ़ना हैं पढें नहीं पढना हैं न पढें, पर इसमें केवल उनको हास्य व्यंग्य,कहानी, और कविताओं के अलावा और कुछ नहीं मिलेगा। आपको उन मस्तराम को पढ़ना हैं तो उसका ब्लोग अपने यहाँ सैट कर लें नहीं तो मेरा ब्लोग खोलकर ख्वाम्ख्वाह परेशान होंगे। एक बात याह रखना ऐसी रचनाओं को पढ़ते बहुत लोग हैं पर समाज में चर्चा केवल साहित्य से संबंधित रचनाओं की होती है।
मेरे दो ब्लोग यह हैं
मस्तराम की आवारा डायरी http://mastrama.blogspot.com
मस्तराम का दर्शन और साहित्य http://mastram-zee.blogspot.com

जमाने को बदलने की बात कौन करेगा-हिंदी शायरी

बनते हैं खेल चालाकी से
परिश्रम कोई क्यों करेगा
तोड़ने की आवाजें
बुलंद होती हैं जहाँ
रचना का विचार कौन करेगा
खिलवाड़ होता हो भावनाओं का
किसी का कोई हमदर्द कोई क्यों बनेगा
ए जमाने को दोष देने वालों
तुम भी इसका हिस्सा हो
और ज़माना कोई चार पैर वाला पशु नहीं
जब तुम भी उसकी राह चलते हो
उसको बदलने की बात कौन करेगा

सोमवार, 25 फ़रवरी 2008

दिल के दर्द को और बढ़ा दिया-हिंदी शायरी

पल भर का प्यार माँगा था उनसे
तो अपनी शर्तों का पुलिंदा थमा दिया
हमने उनसे माँगा था दर्द उनका दर्द
उन्होने बाहर जाने का रास्ता दिया
पर भी वह खुश नहीं रह सके
अपने दर्दों से वह तड़पते रहे
किसी ने उनका हाल पूछा नहीं
चीखते रहे बहरी दीवारों की पीछे
हमारे दिल के दर्द को और बढा दिया
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मेकअप से उनका सौंदर्य
कितना निखर आता है
पर पसीने की थोडी बूँदें भी
उनकी असलियत बयान कर देतीं हैं
जिसमें वह बह जाता है
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एक सच छिपाने की लिए
कितने झूठ बोले जाते हैं
पर भी सच का रास्ता नहीं रोक पाते हैं
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रविवार, 24 फ़रवरी 2008

कौन सुनेगा संदेश(हिन्दी शायरी)

गाँव से नगर
नगर से महानगर
महानगर से विदेश
भागता जाता है आदमी
मन में लिए आवेश
एक से दस खुशी चाहता है
नहीं जानता उसका वेश
अनंतकाल तक खुश रहने की
ख्वाहिश लिए आदमी हो जाता है दरवेश

कान है पर सुनता नहीं
आँख है पर देखता नहीं
अक्ल पर डाल रखा है
लोभ और लालच का परदा
किसे सुनाएँ और कौन सुनेगा
'संतोषी सदा सुखी' का संदेश
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जो बाजार में बिकता है
वही अच्छा लिखता है
यही सच्चाई है
कोई पढता हो या नहीं
मगर अखबार आप आदमी
खर्चा तो करता है
और उसमें छपा ही तो सभी को दिखता है
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अहसास-(हिन्दी शायरी)

खाने-पीने की चीजों में बनावट
आचार-विचार में दिखावट
सब जगह सम्मान की छटपटाहट
बिकता हैं झूठ यहाँ
चलता हैं भ्रम यहाँ
धोखा देने का क्रम थमता कहाँ
चलते हैं सभी असत्य के पथ पर
बदलाव कभी होता नहीं
बस होती हैं उसके होने की सुगबुगाहट
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अपने खूबसूरत होने का अहसास
तभी तक ठीक रहता
जब तक आईने से चेहरा दूर रहता
जब देखते हैं उसे
लोग दिखावे की बात करते हैं
इसका अहसास होता रहता
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शनिवार, 23 फ़रवरी 2008

अन्तरिक्ष में मकड़जाल बनाया-हिन्दी हास्य शायरी

जमीन पर बरसाया बारूद

अब जंग को आसमान में भी पहुंचाया

नाभिकीय हथियारों से

अन्तरिक्ष को भी सजाया

आदमी नहीं मिलता तो

अपनी दानव मशीन को

अपने ही हथियार से उडाया

पहले दानव जैसी मशीने बनाते

फिर उनको दुश्मन बताते

और फिर दानव नाशक देवता बन जाते

जूठ को प्रमाणित सत्य बनाया

मगर सच भला कहाँ छिपता है

हजार पहरों से भी बाहर दिखता है

कौन जला रहा है धरती की प्राण वायु को

कौन घटा रहा है हरियाली की आयु को

बारूद से इंसानियत की रक्षा करने की

ख्वाहिश जताते हैं वह लोग

जिन्होंने अब अन्तरिक्ष में दानव बसाया

दाएं देखो या बाएँ

जो दानव हैं वही देवताओं का चोला पहने हैं

बंदूके और मिसाइलें उनके गहने हैं

चेहरे पर हैं कुटिल मुस्कान

दूसरे को घाव देने में समझते शान

ऐसे दुश्मन का पता देते हैं

जिस कोई नहीं पाता जान

कहाँ आयेंगे अब देवता इस धरती पर

अन्तरिक्ष से धरती पर इन दानवों ने

जासूसी का जाल बिछाया

दावा यह कि अपने इलाके को बचाया

इस आड़ में दानवों ने ही अपना राज बनाया

अपने घर भरने के लिए रक्षा की बात करते

रोटी का कोई हिसाब नहीं करते

क्योंकि इससे उनके महल नहीं सजते

देते हैं दुनिया को धोखा

डरे सहमें लोग क्या किसी की रक्षा करेंगे

उन्होने तो बस हवा में इन्द्रजाल बनाया

लोग न देख सकें जहाँ अन्तरिक्ष में

वहाँ अपना मकड़जाल बनाया

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पाने की इच्छा को कहते विश्वास-हिन्दी शायरी

हरिभजन को जाते लोग
ओटने लगते कपास
भजन करते हुए भोजन की आस
जब भूख और भय में घिर जाता इंसान
भ्रष्ट हो जाता है भले हो महान
देह की भूख का भजन से कोई वास्ता नहीं
भजन से रोटी की तरफ कोई
जाता रास्ता नहीं
फिर भी भजन करते लोग
लगाए भोजन की आस
जिनके पेट भरे हैं वह भी
और रोटी की करते आस
मुहँ में हरि का जपते नाम
मन में हरे पते का रटते नांम
पाने कि इच्छा को कहते विश्वास
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शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2008

अँधेरे में चलाते तीर-क्षणिकाएँ

अँधेरे में चलाते तीर
कृत्रिम रौशनी के वीर
निशाने पर नहीं लगे तो
बचने के बहाने अनेक
लग जाये तो तुक्का तो
बन जाते सयाने एक
खाते फिर मुफ्त में पुडी और खीर
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गीतों की महफ़िल सजती हैं
संगीत के शोर में
शब्दों के अर्थ कौन समझता
सुरों में कौन कान बरतता
लोगों को चीखकर कहने की आदत
सुनने से परे कर देती है
रात को करते हैं नशे में गुर्राते हुए
चाय मांगने के लिए किचन की तरफ
देखकर चिल्लाते हैं भोर में
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गुरुवार, 21 फ़रवरी 2008

बाजार के समान में दिल न लगाना-हिन्दी शायरी

लोगों ने जिनको दिल में बसाया
वह हीरो बिक गए बाजार में
दिल टूटने की बात क्यों करते हो
उसने भी तो उसे ही चाहा जो
चमका पहले बाजार में
बह गया प्रचार में

जो बिक नहीं सकता
वह किसी के दिल में बस नहीं सकता
कौडियों के मोल बिके या डालर के
बिकना जरूरी है
दिल जीतने से पहले
आंखों में बसना जरूरी है
जो सिर्फ देख पातीं बाजार में
टिक पातीं टीवी और अख़बार के प्रचार में
दिल के हीरो भी वही होते हैं
जो बैठे दौलत के अंबार में
इसलिए दिल में बसने से पहले
हीरो बिकने आते बाजार में
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देखो और भूल जाओ
फिल्म देखो या खेल
देखकर भूल जाओ
बाजार बहुत बड़ा है
वहाँ बिकते सामान में क्या मन लगाना
बाद में पड़े पछताना
कुछ पलों के लिए बहलाते है सामान
उनमें कभी अपना दिल मत लगाओ
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बुधवार, 20 फ़रवरी 2008

ब्लोगर बिकेगा कि ब्लोग -हास्य-व्यंग्य

(काल्पनिक हास्य-व्यंग्य रचना )

दोपहर घर पहुंचा तो भतीजा बोला-चाचाजी, अच्छा हुआ आप आ गए, आपको खबर देनी थी। सारे क्रिकेट खिलाड़ी बिक गए।''
''तो"।मैंने उसे घूरकर देखा और कहा-''मुझे इस खबर से क्या मतलब?''
भतीजा बोला-''मुझे तो पता नहीं अन्दर दीदी खबर सुन रही थी और उसने मुझसे कहा कि 'चाचा आयें तो उनकों यह खबर देनी है क्योंकि वह भी खिलाड़ी हैं' तो मैंने आपको यह खबर दे दी, आप हमेशा मुझ पर नाराज क्यों होते हो?''

वह खिसक गया और मैं जैसे ही अन्दर पहुंचा तो भतीजी सोफे से उठकर खडी हुई-''आओ चाचाजी, मैं आपका ही इन्तजार कर रही थी?''

मैंने कहा-''जब मैं अन्दर घुसता हूँ तो बस के ही डर लगता है कि कोई विषय लेकर तुम इन्तजार तो नहीं कर रही? क्योंकि उसके बाद मेरा भाई साहब और भाभी से झगडा जरूर होता है। अब तुम अपनी खबर खाना खाने के बाद देना। ''
''पर खबर तो तब तक बासी हो जायेगी या मैं भूल जाऊंगी। आप खाना खाते रहो मैं सुनाती रहूँ-''वह अपना हाथ ऐसे घुमा रही थी जैसे अंपायर चौके का संकेत देता है। सुबह अपनी गर्दन घड़ी की तरह घुमाने के व्यायाम और बाद में हाथ को चौके के संकेत देने की तरह हिलाने के दौरान वह जब बात करती है तो वह मजेदार होतीं है।

मैंने कहा-''क्रिकेट के खिलाड़ी बिक गए, यह मालुम है। तुम्हारा भईया बता रहा था।पर इससे मेरा क्या?''
''आप भी तो क्रिकेट खेलते थे।''वह बोली-''अब दुबारा खेलना शुरू करो।
मैंने कहा-''अब वह नहीं हो सकता। तुम्हारी मम्मी ने मेरा बल्ला कबाड़ में बेच दिया।''
पास बैठ कर टीवी देख रही भाभीजी बोली-''वह तो टूट गया था भईया। मैंने आपकी मम्मी से पूछकर बेचा था। आप नया बैट खरीद लो।''
भतीजी बोलली-''पहले बोली तो लग जाये फिर तो चाचा एक क्या दस बैट खरीद लें। पहले चाचा का सौदा तो हो जाये।''
तब तक भतीजा अन्दर आ गया और बोला-''छि:, कितनी खराब बात करती है। हमारे चाचा अगर बिक गए तो हमें पढाएगा कौन। हमारी वजह से मोहल्लों वाले से लड़ेगा कौन?''
अब तो भाभाजी की भी चिंता बढ़ गयी--''हाँ, पागल हो गयी है चाचा के बिकने की बात करती है। यह तेरा ढंग है बात करने का? वैसे भी मशहूर खिलाड़ी बिक रहे हैं, तुम्हारे चाचा को बहुत समय हो गया क्रिकेट छोडे।''

भाभीजी खाना लेने चली गयी तो मैंने भतीजी से कहा-''अब मैं ब्लोग पर लिखूंगा और तुम मुझे डिस्टर्ब मत करना।''
हाँ, चाचाजी''-वह एकदम उछलकर बोली-''यह आप इस पर लिखते हो। क्या नाम बताया ब्लोग। उस पर लिखने वालो को क्या कहते हैं। और क्या वह नहीं बिक सकता?''

मैंने भतीजी को घूरकर देखा तो वह झेंप गयी-''मेरा मतलब है। आपका लिखा भी तो बिक सकता है।''
मुझे हंसी आ गयी-''जिस पर लिखता हूँ वह ब्लोग है और मैं ब्लोगर हूँ। अभी इंटरनेट न होने से मैंने लिखा ही कहाँ था और अब तो नया हूँ। पर यह पता नहीं है कि ब्लोग बिक सकता है कि ब्लोगर।''
तब तक भाभी थाली में खाना लगाकर आ गयी तो भतीजी बोली-''मम्मी, चाचा तो ब्लोगर हैं।
भाभीजी ने गुस्से में पूछा-''तो?''
तब तक भतीजा बोला-'' दीदी कह रही हैं कि किसी भी तरह बिक जाओ ताकि स्कूल में अपने चाचा का रुत्वा दिखा सके। ''
भाभी बोली-''तुमने चाचा को लिखने का मौका कहाँ दिया। अब जब इनको विज्ञापन मिलेंगे तब कुछ मिलेगा। वैसे क्या अपने चाचा से मिलने वाला जेब खर्च तुम लोगों को कम पड़ रहा है जो इनको बिकवाने पर तुले हो।''

''मम्मी, आपको पता है विज्ञापनों से यह खिलाड़ी नहीं कमा रहे थे जो बिक रहे हैं-''भतीजी अब खुलकर ज्ञान बघारने लगी थी-''अब तो बिकने में ही फायदा है।''
भाभीजी हंसकर बोली--''भईया, अब तो ही झेलो। इनके पापा और तुमने दुनिया भर की बातें करते इन दोनों को अधिक बुद्धिमान बना दिया है।
वह चली गयी तो मैंने भतीजी से पूछा-''पहले तो यह बताओं कि बिकना क्या चाहिए ब्लोग या ब्लोगर?''

वह बोली--'इतनी अक्ल तो अभी मुझे पापा और आपने नहीं दी।''
मैंने भतीजे की तरह देखा तो वह झेंपकर बोला-''चाचा जी कुछ भी बिके। हमारे कंप्यूटर से ब्लोग चला जाये पर अप इस घर से मत जाना, वरना हम परेशान हो जायेंगे। ''
वह खिसक लिया तो मैंने खाना शुरू किया। भतीजी बोली-''वैसे चाचा जी बिकेगा क्या ब्लोग कि ब्लोगर'
मुझे मन ही मन बहुत हंसी आयी और मैंने कहा-''अब मुझे तसल्ली से भोजन करने दो। बिकने की चिंता में उसे बासी मत करो।''

खेल हो जायेगा काम-हास्य शायरी

बिक गए खिलाड़ी सरेआम
अब कौन कर सकता है उनको बदनाम
पहले खेले तो पैसा और नाम कमाया
फिर पैसे ने ही खेल खिलाया
और अब तो खिलाड़ी क्या खेलेंगे
क्या लोग देखेंगे
पैसा ही खेलेगा और देखेगा
खिलाड़ी और दर्शक तो होंगे शोपीस
जिसके पास होगा जितना पैसा उतना नाम
क्रिकेट खेल नहीं, हो गया धंधा और काम
क्रिकेट के बैट और बल्ले कम बिकेंगे
खेलने से पहले नन्हें खिलाड़ी
नीलामी में बिकने के लिए सजे दिखेंगे
बल्ला और बाल बाद में थामेंगे
पहले अपने हाथ बढाकर दाम मांगेगे
फिर खेल के लिए नहीं
बल्कि घर से निकलेंगे करने काम
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मंगलवार, 19 फ़रवरी 2008

टिके हैं वही जमीन पर-हिन्दी शायरी

जिन्होंने किया लोगों पर राज
पहने सिर पर हीरे से जड़े ताज
अपनी करनी पर किया नाज
गिरे हैं वही जमीन पर

बैठे जो दौलत के ढेर पर
सवारी करते क्रूरता के शेर पर
पहरा देते लोगों के छीने हकों को घेर कर
वक्त का पहिया जब घूमा है जब
गिरे हैं वही जमीन पर

जो चले हैं सत्य के सहारे
अपनी जिन्दगी के लिए
जो कहीं मदद के वास्ते नहीं निहारे
दृष्टा बनकर सब देखते हैं
अपने सुख-दुख सारे
जीते हैं आजाद होकर पूरी जिन्दगी
टिके हैं वही जमीन पर
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अकेले ही नजर आये- हिन्दी शायरी

चाहा तो बहुत हमने कि
दोस्तों से बात बन जाये
पर उनकी शर्तों पर खरे नहीं उतर पाए

दिल से बहुत चाहते
पर धन की तराजू पर
कभी नहीं तुल पाते
रूह में है प्यार उनके लिए
पर शब्दों में नहीं घोल पाते
क्योंकि दिल से होते वह सीधे
जुबान पर आते
पर उन्हें पसंद है केवल
अपनी तारीफें सुनना
जो इज्जत दिल से होती है
उसे वह जमीन पर दौड़ते देखना चाहते
कोई लाख कोशिश कर ले हम
दिखावे की राह नहीं चल पाते
इसलिए दोस्तों की भीड़ में भी
हमेशा अकेले ही नजर आये
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अहसास-शायरी और क्षणिकाएँ

अपने मुहँ से बताते हैं पहचान
नहीं पाते अपने को भी जान
अपने सिर उठाये हैं आदमी
ऐसे शब्दों का बोझ
जिनका अर्थ उसका मन नही रहा मान
लिखा हुआ पढा और लिया रट
बोलने पर सुना देता फट
पर रहता है शब्दार्थ के रहस्य से अनजान
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कुछ अंग्रेजी कुछ हिन्दी शब्दों की खिचडी
पकाकर वह लोगों को सुना रहे
अक्ल से पैदल हैं
किसी तरह पब्लिक से छिपा रहे
हिन्दी फिल्मों में काम करने वाले लोग
अपने को स्पेशल बता रहे
अपने घर में होता विद्वान भी बैल
इसलिए वह बाहरी होने का
अहसास दिला रहे

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सोमवार, 18 फ़रवरी 2008

मर्जी से प्यार मिलता नहीं-शायरी

जो चाह वह मिलता नहीं
मिल गया तो भी दिल बहलता नहीं
ख्वाब कुछ और होते है
हकीकतें वैसीं कभी होती नहीं
सपनों में जीने की आदत है जिनको
जिन्दगी उनकी होती सरल नहीं
जब तक प्यार पाने के लिए भटकता है आदमी
उसे मिल नहीं पाता
क्योंकि प्यार करना कोई यहाँ सीखा नहीं
ए जमाने वालों
वह फल तुम कैसे पाओगे
जिसका पेड़ तुमने लगाया नहीं
खुदगर्जी के लिए प्यार ढूँढने वालों
मर्जी से प्यार मिलता नहीं
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मस्तराम 'आवारा'

रविवार, 17 फ़रवरी 2008

चले थे साथ-साथ-शायरी

यूं तो निकले थे घर से
उनको प्यार का पैगाम के लिए
पर उनके घर पर जो मंजर देखा जंग का
निकल आये वापस उल्टे पाँव लिए
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एक ही नाव पर सवार
चले नदी के उस पार
रास्ते भर वादे किये साथ साथ
जीवन भर गुजारने के लिए
जो आया किनारा
अपनी रास्ते चले दिए
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यूं तो होते हैं हर रोज हादसे
वह इसलिए नजर आते
क्योंकि हम उनसे बचकर घर आ जाते
पर जब कोई हो जायेगा हमारे साथ
उठा ले जायेगा अपने हाथ
फिर नहीं दिखाई देंगे अपनी जिन्दगी में हादसे
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