रविवार, 30 मार्च 2008

फूलों की खुशबू से नहीं महकता चमन-हिंदी शायरी

खिलौने से बच्चे अब कहाँ खेलते
दिन रात घर में अपने बडों को
इंसानों से जो खेलते देखते
बड़े भी क्या सिखाएं छोटों को
अपने बडों से ही सीखे क्या
बस जिन्दगी एक नौकरी या व्यापार
जिसमें समेटो दौलत और शौहरत अपार
जमाने के बिगड़ जाने की शिकायत में
करते हैं अपना वक्त बरबाद लोग
अपने चाल, चरित्र अपने चेहरे नहीं देखते
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फूलों की खुशबू से नहीं महकता चमन
आदमी के मन में बसी है
बस कुछ पाने की ख्वाहिश
नहीं चाहता अमन
अंधी दौड़ में भाग रहा हैं
अपने दिल और शरीर का करता है दमन
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शनिवार, 22 मार्च 2008

इंसान यूं ही चलता जाता-हिंदी शायरी

कुछ तो होते हैं बहाने
कुछ होते हैं अफ़साने
जिन्दगी का कारवां बढ़ता जाता
जिनसे करते हैं खुशी की उम्मीद
वही दे जाते हैं धोखा
गैरों से ही तब आसरा मिल जाता
अपनों के बीच गुजाते फिर भी जिन्दगी
चाहे कोई भरोसा नजर नहीं आता
मन पर मजबूरियों का बोझ उठाये
इंसान यूं ही चलता जाता
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ढकोसलों को कहते हैं पूजा
मानते हैं एक को घर ढूँढें दूजा
आदमी का दिल भटकता है इधर उधर
इतनी बड़ी देह फिर भी लगता चूजा
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शुक्रवार, 21 मार्च 2008

होलिका दहन तो होता है हर साल-हिंदी शायरी

होलिका दहन तो होता है हर साल
उड़ते हैं रंग और सब जगह
सजते हैं पकवानों के थाल
लोग शराब और भांग के नशे में
झूमते-झूमते हो जाते निढाल
वर्षों से जल रही हैं होलिका
पर आज के प्रह्लादों को जलाने
हर साल फिर एक नयी चादर ले आती
कहीं शराब को कर देती जहर
कहीं गाड़ियों को आपस में
टकराकर ढहाती है कहर
शराब की बोतलों और तंबाकू के
पाऊचों की चादर के नीचे ला दिए
गाँव और शहर
खेलने के लिए डाले रंग तो
धुल जाते हैं
पर जो होते इस दिन घाव वह
कर देते हैं जिन्दगी बदहाल
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शनिवार, 15 मार्च 2008

मय और जिन्दगी-हिंदी शायरी

मयखाने में वह हर जाम के साथ
अपने गम को भुला आते हैं
पर उतर जाता है जब नशा
तो फिर गम और ज्यादा सताते हैं
महफिलों में मय बंटती है अमृत की तरह
पीकर लोग बहक जाते हैं
जाम की कुछ बूंदों में ही
भद्र लोगों के नकाब उतर जाते हैं

देखा 'मस्तराम आवारा'' ने
दर्द कुछ देर दूर चला जाये पर
मिटा नहीं सकता कभी उसे जाम
आंतों की ऊर्जा जो जिन्दगी में
लड़ने के लिए होती है बेहद जरूरी
उसका हो जाता है काम तमाम
जिस दर्द को हवा हुआ समझते हैं
मय को पीकर
वह दिल में जमा हो जाते हैं
और फिर किसी दिन आते हैं
तूफान की तरह
आदमी की जिन्दगी को साथ ले जाते हैं
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शुक्रवार, 14 मार्च 2008

हमदर्दी की तारीख-हिंदी शायरी

तारीखों को याद करना
अब मजाक लगता है
जिन पर जख्म होते हैं
वह उन पर रोते हैं
जब भूलते हैं तो
याद दिला कर जख्म करने वाले भी
इस दुनिया कम नहीं होते हैं

तारीखों को अब बदला जा रहा है
जिन पर हो सकता है गर्व
उनको भुलाया जा रहा है
जिन पर है सब कुछ
वह क्या जाने उनको जिन्होंने दर्द झेले हैं
समाज को बचाने की खातिर
उनके नामों को तारीखों से
हटाया जा रहा है
कभी लगता है कि
तारीख में झूठ भी लिखा जाता है
अपने हिसाब से याद दिलाया जाता है
जिसके बस में है ताकत
गरीबों के जख्मों की तारीख को
उनकी हमदर्दी दिखाने के लिए बनाया जा रहा है
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मंगलवार, 11 मार्च 2008

दिल की बहियों से नाता तोड़ लिया है-हिंदी शायरी

घर बसते और सजते हैं
पर फिर भी रिश्तों की खुशबू से
क्यों नहीं महकते हैं
अपने लिए ही जी रहा है हर कोई
दूसरे के दर्द का किसी को नहीं होता अहसास
छत पर नहीं डालते दाना
फिर भी भूखे ही पक्षी चहकते हैं
करते हैं सब लोग एक दूसरे के
वफादार होने की कोशिश
मौका पड़ने पड़ने पर
नदारत रहते हैं
अब कोई नकाब नहीं लगाता चेहरे पर
अदाओं से ही सभी अभिनय करते हैं
अपने अकेलेपन को सब जानते हुए भी
लोग दिलाते हैं यकीन सहारे का खुद
दूसरों से उम्मीद के वहम भी अच्छी लगते हैं
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हमने रात को तकिया रखकर सोना छोड़ दिया है
दूसरों के भरोसे से मुहँ मोड़ लिया है
वफ़ा और धोखे के हिसाब कौन रखे
अपने दिल की बहियों से नाता तोड़ लिया है
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सोमवार, 10 मार्च 2008

खर्च और तोहफों का हिसाब-दो हिंदी क्षणिकाएँ

उन्होने अपने बच्चे का जन्मदिन
बहुत जोर-शोर से मनाया
कार्यक्रम ख़त्म होते ही
लगाने लगे हिसाब तोहफों का
तय करने में लगे रहे कि
अब उन लोगों के बच्चों के
जन्म दिन पर नहीं जायेंगे
जिनके घर से तोहफा नहीं आया
एक वर्ष का बच्चा रो-रहा था
ताकि कोई उसे पुचकार कर सुलाए
पर उसे पडी डांट
बडों की महफ़िल सजी रही
रोते-रोते बच्चा सो गया
फिर बडों ने खर्च और तोहफों का हिसाब लगाया
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उन्होने तय किया कि
मकान का मुहूर्त
बच्चे के जन्म दिन पर ही करेंगे
गृहप्रवेश पर तोहफा न देने वाले भी
बच्चे जन्म दिन पर कुछ न कुछ तो
अपने लिफाफे में भरेंगे
इस तरह से ही खर्च और तोहफों से ही
पार्टी के बजट को संतुलित करेंगे
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रविवार, 9 मार्च 2008

इज्जत तो है सिक्कों की-हिंदी शायरी

जिन्दगी के इस सफर पर
चलते रहना है जब
किसी का इन्तजार क्या करना
कहीं मिलेगी नफरत तो कहीं प्यार भी मिलेगा
कहीं होगी काँटों की चुभन
कहीं होगी फूलों की सुगंध
कोई तो निभाएगा विश्वास
कहीं धोखे भी होंगे
फिर रंग देखा क्या खुश होना
बदरंग चेहरों से क्या डरना

जो किसी का इन्तजार करेंगे
तो कोई नहीं आयेगा
पीछे रह जायेंगे हम
ज़माना आगे बढ़ जायेगा
दुनिया में फिर एक मजाक बनेंगे
चल पड़े अपनी राह पर तो
लोग देंगे पीछे से आवाज
पर चलते जाना अपनी राह
कहीं होंगे अकेले
कहीं मिलेंगे मेले
वक्त के साथ चलने की रखना चाह
भीड़ में शुमार होकर मत खोना अस्तित्व
अलग रखना व्यक्तित्व
औरों की मिसाल पर क्या गौर करना
अपनी मिसाल खुद तुम बनना
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जब तक खाली थी जेब
दोस्त ढूँढने पर भी मिले नहीं
जब से दस्तक दी है चंद सिक्कों ने दरवाजे पर
रोज कोई मिलने चला आता है
कोई दोस्त बनता है कोई भाई
नाम रिश्तों के बना जाता है
हम जानते हैं इज्जत तो है सिक्कों की
हम भला जमाने में ठहर पाते कहीं

चलता रहेगा शब्दों का मेला-हिंदी शायरी

इंटरनेट पर भी शब्दों को मेला लगेगा
कोई रोग पर लिखेगा
कोई योग पर लिखेगा
कोई भोग पर लिखेगा
कोई सहयोग पर लिखेगा
कोई संभोग अपनी माया रचेगा
कुछ लिखेंगे फूल की तरह
कुछ चुभोएँगे शूल की तरह
पढ़ने के लिए लोग भी होंगे उन जैसे
पर फिर भी सब वैसा नहीं लगेगा

भोग के लिए मन बहलाने
निकला होगा कोई शख्स ढूँढने शब्द
टकरा गया कहीं योग के शब्द तो
बदल सकता है भाव भी
आ सकता है ताव भी
पर शब्दों का खेल चलता रहेगा
पढ़ना चाहता होगा कोई संभोग पर
आ गया कोई सहयोग का उपासक शब्द
तो चाल बदल भी सकती है
साँसें भड़क भी सकती है
मस्तराम आवारा देख रहे हैं
कुछ असली है और कुछ नकली है
छद्म नाम और चेहरों का है मेला
एक नाम से दे सकता है कोई राम का सन्देश
दूसरे से भड़का सकता है काम का आवेश
कुछ पता नहीं लगेगा
चलता रहेगा इस तरह इंटरनेट पर शब्दों का मेला
जैसा गुरु होगा वैसा ही होगा चेला

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शनिवार, 8 मार्च 2008

बेवफाई के नहीं होते वार-हिंदी शायरी

बैठें है दौलत के शिखर पर

नीचे खड़ी गरीबों से खौफ खाते हैं

संभाल सके लोगों की भीड़ को

तमाम तरह के बहाने गढ़कर

ऐसे दलालों के सहारे लिए जाते हैं

बनते हैं लोग अपनी अलग-अलग पहचानों में

लड़ने की बात सामने आये तो

छिप जाते हैं अपने-अपने खानों में

भ्रम फैलाने वाले मुद्दों पर

सब बहस किये जाते हैं

और समाज के शिखर पर

पीढियों के नाम लिख जाते हैं

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मोहब्बत है नाम पर धोखे हजार

फिर भी खाते हैं बार -बार

अगर आँखें होती तो

नाम मोहब्बत नहीं होता

बेवफाई के नहीं होते वार

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हर सुबह को समझो नई-हिंदी शायरी

रात गयी तो बात गयी
सुबह को कर अब बात नयी
जो पल बीत गया, सो बीत गया
उसे हर हाल में भूलना होगा सही
याद रखने से कोई नहीं है फायदा
वायदे निभाने का नहीं कोई कायदा
समय हमारे रुकने से तो रुक नहीं जायेगा
जो खोये रहे यादों में तो
ज़माना हमसे आगे निकल जायेगा
दिन बहुत लंबा है
पर सुबह का यह खूबसूरत पल
आज फिर वापस नहीं आएगा
इसलिए हर सुबह को समझी नई
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शुक्रवार, 7 मार्च 2008

अमन और शांति की बात-हिंदी शायरी

हमने भेजा था सुलह का पैगाम

जवाब में किया उन्होने

कलह जारी रखने का एलान

अमन की बात करो तो लोग

बेदम समझने लगते हैं

आख्नें तरेरो और चीखो तो

भागने लगते हैं

खेल में खेलते जंग की तरह

जंग लड़ते हैं हमेशा बेवजह

फिर भी मिलती शांति प्रवर्तक की उपाधि

और बहुत सारा इनाम

फिर क्यों कोई भलेमानस

कभी मानेगा शांति का पैगाम

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तुम्हारे दिल में जब आ जाये अमन

हमें खबर तत्काल खबर कर देना

तुम्हारी खैर से ही होती हमको तसल्ली

तुम्हारा दर्द कर देता बैचैन

यह भी तुम समझ लेना

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गुरुवार, 6 मार्च 2008

भलाई का इन्द्रजाल-हिंदी शायरी

कभी किसी का भला किया नहीं
पर ऐसा करते नजर आते
उन्हीं की प्रशंसा में लोग
तारीफों के पुल बांधे जाते
फिर करते जमाने के बिगड़ने की शिकायत
जिसे अपने हाथो से बिगाड़े जाते

करते हैं जो बिना आवाज के
बेसहारा लोगों की मदद
वह खुद ही परिदृश्य में नजर नहीं आते
देते हैं जो दूसरे के टूट रहे जीवन को सांस
वह फोटो खिंचवाने नहीं आते
पर लोग भी कौन उनको देखने की
चाह रखते
उन्हें बस धोखे ही पसंद आते
हाथ में नहीं रखते जो एक रूपये का सिक्का
उसके प्रशंसक बन जाते
दृश्य आंखों के पार नहीं होते
ऐसे ही भलाई के इंद्रजाल को देखकर
प्रशंसा के पुल बांधे जाते
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मंगलवार, 4 मार्च 2008

दिन का उजाला और रात का अँधेरा-हिंदी शायरी

रात को जगमगाती हुई रौशनी में

जो सुन्दर लगता है

दिन के उजाले में सूर्य की रौशनी में

वही असुंदर लगता है

इसलिए काले कारनामे करने वाले

ढूंढते हैं रात का अंधियारा

जिनको बेचना है नकली सौन्दर्य

वह सूरज डूबते ही करते हैं

नकली रौशनी का इशारा

भले आदमी की दिन में खुली न हों

पर रात के उनके खुले होने का

ख़तरा काम ही लगता है

मस्तराम आवारा ने देखा है

दिन का उजाला और रात का अँधेरा भी

यह भी देखा है जो दिन का उजाला देखते हैं

जो लोग खुली आंखों से

रात को भी उनकी अक्ल का पर्दा खुला लगता है

इसलिए चालाकियों का खेल

उनसे कभी नहीं चल सकता है

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रविवार, 2 मार्च 2008

मोहब्बत और तोहफे-हिंदी शायरी

मोहब्बत में जरूरी है तोहफे दिए जाने
तोहफों को ही लोग मोहब्बतों का सबूत माने
इश्क और प्यार पर लिख कर चंद शेर
शायरों ने खूब नाम कमाया
आशिकों ने भी उनका रीमिक्स खूब गाया
पर तोहफों के बेचने वाले सौदागरों ने
इस पर खूब नामा कमाया
आशिकों की जेब हुई खाली तो क्या
इससे बदले नहीं मोहब्बत के मायने

जमाना बदला पर बदली नहीं मोहब्बत
आंखो के इशारे से मोहब्बत इजहार करने की जगह
आया ख़त लिखने का ज़माना
ख़त से टेलीफोन और
फिर आया मोबाइल का ज़माना
अब तो खुला है बाजार
खुल कर करो मोहब्बत
बदनामी से कौन डरता है
जो डर गया उसे लोग जवान बूढा माने
पहले बाजार में मोहब्बत
करने वाले डरते थे
अब खुले में लगे हैं अपने जजबात दिखाने
मोहब्बतों के तोहफों का विज्ञापन होता है
सिमट गयी है मोहब्बत औरत-मर्द के इर्द-गिर्द
मासूम और गरीब तो है हाशिये पर
मोहब्बत हैं वही जिसे ज़माना नहीं बाजार माने
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कोई आंसू नहीं पौंछेगा-हिंदी शायरी

अपने राज की बात दिल में नहीं रखी
तो और कोई और क्यों रखेगा
जो रहनी थी दिल में उस पर जग हँसेगा

हमदर्द बहुत होते हैं बहुत इस जहाँ में
पर दिल का दर्द कोई नहीं समझता
इश्क और प्यार होते हैं पल भर के
इनके धोखे में जलता है बदन बिना आग के
दिल रहता है जिन्दगी पर तडपता
जो करते हैं इश्क वह दिखाते नहीं
करते हैं प्यार वह मांगते नहीं
होश खोकर यकीन करोगे
खाओगे धोका जरूर इक दिन
औंधे मूंह गिरोगे
तुम्हारे जख्मों पर हर कोई हँसेगा

दिल लगाने की नहीं संभालने की चीज है
चंद प्यार भरे शब्दों में मत बह्को
जिन्दगी में कई बार पीछे कदम
लौटाना हो जाता है मुश्किल
अपने यकीन पर धोखा खाकर रोओगे
पर कोई आंसूं नहीं पौंछेगा
जिसे सुनाओगे दर्द वही हँसेगा
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शनिवार, 1 मार्च 2008

आखें खुलीं हैं, पर बंद हैं नजर-हिंदी शायरी

इधर जाऊं या उधर
चारों तरफ रास्ता आता है नजर
सभी दौडे जा रहे हैं
अपने मुकाम का पता किससे पूछूं
सभी हैं बदहवास और दर-ब-दर
कोई उठाकर नहीं देखता नजर

भीड़ में सब हैं अकेले
जा रहे हैं सब इसलिए जाते हैं
इस उम्मीद में कहीं तो होंगें
दौलत के मेले
कहीं चूक न जाएं कुछ पाने से
इसलिए हैं सबकी रास्ते में आगे ही नजर

बरसों से लोग दौड़ रहे हैं
अपनी मंजिल का पता नहीं
पर कोई और न ले जाये कुछ कहीं
हम पहले झपट लें मौका
ऐसी है सबकी नजर
पर किसने पाया
कोई क्या ले गया
सब टूटे-बिखरते जिंदा आते हैं नजर
बोलते सब हैं, पर निरर्थक शब्द
अक्ल से परे हैं, सोचते कुछ नहीं
आखें खुलीं है, पर बंद है नजर
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जमाने को दोष देते हैं-हिंदी शायरी

जब तक पशु-पक्षी शिकार के लिए
थे बड़ी संख्या में
करता रहा आदमी उसका शिकार
अब नहीं है तो
अब एक दूसरे को रहे हैं मार
जिन हवाओं को पीते थे पेड़-पौधे
काट-काटकर किया उनको तबाह
आदमी अब रहता है बीमार
दोष देते हैं जमाने को लोग
जबकि उनके अंदर ही हैं विकार
अपनी हालातों के लिए खुद ही ज़िम्मेदार
दूसरे को रहे हैं धिक्कार

सात्विक लेखन से हिंदी प्रतिष्ठित होगी-विशेष लेख

अपने ब्लोग पर अपने प्यार का नाम 'मस्तराम' का उपयोग करते हुए मुझे इस बात का पता नहीं था की कोई और भी मस्तराम है। मैंने आज तक किसी मस्तराम से कोई प्रसिद्ध नाम नहीं सुना है पर इस बात का अनुमान था की अपना देश बहुत व्यापक है इसलिए कई क्षेत्रों में सम्मानित लोग हो सकते हैं क्योंकि यह आदमी के मस्त और सरल स्वभाव के कारण उनकी पहचान बन जाता है। मैंने सोचा चलो अखिल भारतीय छबि बनाने ले लिए यह नाम मेरे लिए ठीक ही बैठता है।

उस दिन जब एक ब्लोग पर मस्तराम के बारे में विवादास्पद चर्चा को पढा और उसमें अपने ब्लोग को देखा तो मैंने अपनी आपत्ति दर्ज कराई और उनके लेखक ने खेद जताया। यह मुद्दा ख़त्म हो गया पर बीच-बीच में जब मैं अपने ब्लोग को सर्च कर देखता हूँ तो मेरे से अलग मस्तराम का ब्लोग मेरे सामने आता है। मैंने उसे कई बार यह सोचकर खोला की देखूं उसमें कोई नई सामग्री आई है तो उसके ब्लोगर को कमेन्ट लिखकर कहूं कि कुछ अच्छा लिखे। उस दिन मैंने उसे ध्यान से देखा उसमें कई प्रकार की ऐसी सामग्री मेरे सामने आई जो मेरे विचार से निरर्थक थी। उस ब्लोग पता नहीं उसे इतनी प्रसिद्धि मिली हुई है। उस पर आखरी सामग्री लिखे हुए ही सवा दो साल से अधिक हो गया है। अब उस पर लिखा है कई लोगों ने दिखा होगा। उसमें जो लिखा है वह मैं यहाँ नहीं लिख सकता। मेरे लिए उसमें निरर्थक सामग्री है। उसमें जो कमेन्ट लिखीं हुईं है वह भी लगभग वैसी हैं जैसी उसकी सामग्री।

मैंने मस्तराम के नाम पर अधिक खोजबीन की तो लगता है कि कोई एक मस्तराम नहीं है और जिस ब्लोग की हम चर्चा कर रहे हैं वह भी वेबसाईट पर मस्तराम के नाम की लोकप्रियता का लाभ उठाने की दृष्टि से बनाया गया लगता है। एक संभावना मुझे लगती है कि हिन्दी को अंतर्जाल पर लोकप्रिय बनाने की दृष्टि से यह ब्लोग बनाया गया क्योंकि यह मान लिया गया होगा कि लोग इसी तरह की सामग्री अंतर्जाल पर ढूंढते हैं और हिन्दी में लिखकर उसके लिए पाठक ऐसे ही जुटाए जाएं। बाद में जब अन्य विषयों पर भी हिन्दी के पाठकों का आना शुरू हो गया तो इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया हो। इसका लेखक आज भी अपने बीच में अपने असली नाम से लिखते हुए सक्रिय रहने वाला भी हो सकता है। वजह यह उस समय का लिखा हुआ है जब हिन्दी टूलों के बारे में कोई जानता तक नहीं था। उसमें जो लिखा है वह अशोभनीय है और अगर कोई इसे बनाकर भूल गया हो और अब अच्छा लिख रहा है उसे इस पर ध्यान देकर इसे हटाने का विचार करना चाहिऐ। वैसे हर कोई अपनी मर्जी का मालिक है पर इसमें यह भी देखना चाहिऐ कि उसका दूसरों पर क्या प्रभाव पड़ता है। हाँ मेरे से ऐसी रचनाओं के अपेक्षा करना बेकार होगा। एक बात मजेदार हो सकती है कि कुछ लोगों को यह लगेगा कि अब यह मस्तराम अब बदल गया है और साहित्य लिख रहा है हालांकि जब मेरा नाम मस्तराम 'आवारा' पढेंगे तो यह भी समझ लेंगे कि यह कोई और व्यक्ति है. यह भी हो सकता है कि उस सामग्री के पढ़ने वाले अब मेरी सामग्री पढ़कर हिन्दी में अच्छा लिखा जा रहा है यह देखकर अब अच्छे विषयों से सर्च करने लगें.


ऐसा नहीं है कि मुझे कोई डर है बल्कि लोग मुझे भी पढेंगे और मेरी रचनाएं छोटीं हो और साहित्य जैसा सौदर्य उनमें न हो पर वह निरर्थक नहीं है। फिर में आगे भी बहुत लिखने वाला हूँ और पाठक संख्या बढ़ती जा रही है और आगे भी बढ़ जायेगी। अभी तक किसी ने यह नहीं कहा कि तुम बुरा लिखते हो।


अपने ब्लोग पर अपने प्यार का नाम 'मस्तराम' का उपयोग करते हुए मुझे इस बात का पता नहीं था की कोई और भी मस्तराम है। मैंने आज तक किसी मस्तराम से कोई प्रसिद्ध नाम नहीं सुना है पर इस बात का अनुमान था की अपना देश बहुत व्यापक है इसलिए कई क्षेत्रों में सम्मानित लोग हो सकते हैं क्योंकि यह आदमी के मस्त और सरल स्वभाव के कारण उनकी पहचान बन जाता है। मैंने सोचा चलो अखिल भारतीय छबि बनाने ले लिए यह नाम मेरे लिए ठीक ही बैठता है।

उस दिन जब एक ब्लोग पर मस्तराम के बारे में विवादास्पद चर्चा को पढा और उसमें अपने ब्लोग को देखा तो मैंने अपनी आपत्ति दर्ज कराई और उनके लेखक ने खेद जताया। यह मुद्दा ख़त्म हो गया पर बीच-बीच में जब मैं अपने ब्लोग को सर्च कर देखता हूँ तो मेरे से अलग मस्तराम का ब्लोग मेरे सामने आता है। मैंने उसे कई बार यह सोचकर खोला की देखूं उसमें कोई नई सामग्री आई है तो उसके ब्लोगर को कमेन्ट लिखकर कहूं कि कुछ अच्छा लिखे। उस दिन मैंने उसे ध्यान से देखा उसमें कई प्रकार की ऐसी सामग्री मेरे सामने आई जो मेरे विचार से निरर्थक थी। उस ब्लोग पता नहीं उसे इतनी प्रसिद्धि मिली हुई है। उस पर आखरी सामग्री लिखे हुए ही सवा दो साल से अधिक हो गया है। अब उस पर लिखा है कई लोगों ने दिखा होगा। उसमें जो लिखा है वह मैं यहाँ नहीं लिख सकता। मेरे लिए उसमें निरर्थक सामग्री है। उसमें जो कमेन्ट लिखीं हुईं है वह भी लगभग वैसी हैं जैसी उसकी सामग्री।

मैंने मस्तराम के नाम पर अधिक खोजबीन की तो लगता है कि कोई एक मस्तराम नहीं है और जिस ब्लोग की हम चर्चा कर रहे हैं वह भी वेबसाईट पर मस्तराम के नाम की लोकप्रियता का लाभ उठाने की दृष्टि से बनाया गया लगता है। एक संभावना मुझे लगती है कि हिन्दी को अंतर्जाल पर लोकप्रिय बनाने की दृष्टि से यह ब्लोग बनाया गया क्योंकि यह मान लिया गया होगा कि लोग इसी तरह की सामग्री अंतर्जाल पर ढूंढते हैं और हिन्दी में लिखकर उसके लिए पाठक ऐसे ही जुटाए जाएं। बाद में जब अन्य विषयों पर भी हिन्दी के पाठकों का आना शुरू हो गया तो इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया हो। इसका लेखक आज भी अपने बीच में अपने असली नाम से लिखते हुए सक्रिय रहने वाला भी हो सकता है। वजह यह उस समय का लिखा हुआ है जब हिन्दी टूलों के बारे में कोई जानता तक नहीं था। उसमें जो लिखा है वह अशोभनीय है और अगर कोई इसे बनाकर भूल गया हो और अब अच्छा लिख रहा है उसे इस पर ध्यान देकर इसे हटाने का विचार करना चाहिऐ। वैसे हर कोई अपनी मर्जी का मालिक है पर इसमें यह भी देखना चाहिऐ कि उसका दूसरों पर क्या प्रभाव पड़ता है। हाँ मेरे से ऐसी रचनाओं के अपेक्षा करना बेकार होगा। एक बात मजेदार हो सकती है कि कुछ लोगों को यह लगेगा कि अब यह मस्तराम अब बदल गया है और साहित्य लिख रहा है हालांकि जब मेरा नाम मस्तराम 'आवारा' पढेंगे तो यह भी समझ लेंगे कि यह कोई और व्यक्ति है. यह भी हो सकता है कि उस सामग्री के पढ़ने वाले अब मेरी सामग्री पढ़कर हिन्दी में अच्छा लिखा जा रहा है यह देखकर अब अच्छे विषयों से सर्च करने लगें.


ऐसा नहीं है कि मुझे कोई डर है बल्कि लोग मुझे भी पढेंगे और मेरी रचनाएं छोटीं हो और साहित्य जैसा सौदर्य उनमें न हो पर वह निरर्थक नहीं है। फिर में आगे भी बहुत लिखने वाला हूँ और पाठक संख्या बढ़ती जा रही है और आगे भी बढ़ जायेगी। अभी तक किसी ने यह नहीं कहा कि तुम बुरा लिखते हो। हाँ यह भी हो सकता है कि लोग मेरा पढ़कर यह सोचने लगें कि अब यह मस्तराम बदल गया है, पर मेरा नाम मस्तराम 'आवारा'पढ़कर समझ लेंगे कि यह कोई अलग व्यक्ति है. वैसे भी मस्तराम के नाम से कुछ अन्य भले लोग भी भली सामग्री के साथ मौजूद होंगे ऐसा मुझे लगता है. जो लोग ऐसी-वैसी सामग्री पढ़ने के लिए आते हैं और जब हिन्दी में अच्छे विषयों को लिखा देंगे तो हो सकता है कि उनकी मानसिकता बदल जाये और वह अन्य विषयों से भी सर्च करने लगें। मैंने फोरमों पर देखा है कि कई लोग सात्विक विषयों पर लिख रहे हैं और वह हिन्दी को इंटरनेट पर प्रतिष्ठित करने में सफल होंगे।