बरसों से खडे हैं हम
राह पर उनके इन्तजार में
उम्मीद है वह कभी आएंगे
हमारा काम है इन्तजार करना
तय उनको करना है कि
कब हमारे यहां आएंगे
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जब भी देखा उनको
नज़रें फेरने लगे
हम जितने भी जाएँ पास उनके
वह हमसे दूर होने लगे
हमें समझा हमेशा ग़ैर
उनकी इसी अदा से
वह हमें अपने लगे
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उनका चेहरा हमारी
आंखों में बसा है
पर पता मालुम नहीं
उनके ख्वाबों में इतना खोये रहते हैं
कि सोचते हैं फुर्सत मिले
तो उनका पता ढूँढें
ऐसा कब होगा हमें मालुम नहीं
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2 टिप्पणियां:
आप की इस रचना मे विरह के दर्शन होते है-
उनका चेहरा हमारी
आंखों में बसा है
पर पता मालुम नहीं
उनके ख्वाबों में इतना खोये रहते हैं
कि सोचते हैं फुर्सत मिले
तो उनका पता ढूँढें
ऐसा कब होगा हमें मालुम नहीं
जब फुर्सत मिल जाये तब बताना!! :)
वैसे हम फुर्सत मॆं हैं और रचना अच्छी लगी. बधाई.
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