शनिवार, 5 जुलाई 2008

खुशी हो या गम-हिंदी शायरी

अपनी धुन में चला जा रहा था
अपने ही सुर में गा रहा था
उसने कहा
‘तुम बहुत अच्छा गाते हो
शायद जिंदगी में बहुत दर्द
सहते जाते हो
पर यह पुराने फिल्मी गाने
मत गाया करो
क्योंकि इससे तुम्हारे दर्द पर
किसी को रोना नहीं आयेगा
क्यों नहीं नये गाने गाते
शोर सुनकर लोगों के
हृदय में भावनाओं का ज्वार आयेगा
ऐसे ही आंसू बहाने लगेंगे
समझ में कुछ नहीं आयेगा
तुम्हारें अंदर खुशी हो या गम
उसे बेचने का काम शुरू कर दो
क्यों कमाने से हाथ धोये जाते हो
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शनिवार, 7 जून 2008

छिः भतीजी के मौसी-मौसाजी क्रिकेट देखते हैं-हास्य व्यंग्य

मैं बहुत दिन बाद दौरे से अपने घर लौटा। उस समय सुबह घड़ी में छह बजे थे। मेरी भतीजी घर के बाहर आंगन में बैठकर अपनी गर्दन घड़ी की तरह घुमा कर योगासन कर रही थी और भतीजा पास बैठकर अखबार पढ़ रहा था। मैं जैसे ही पोर्च से दरवाजा खोलकर दाखिल हुआ। दोनों ने मुझे देखा और भतीजी तत्काल बोली-‘चाचाजी आप इधर गली से घर के अंदर जाना।’

इससे पहले मैं कुछ कहता भतीजा बोला-‘इधर हाल में हमारे मौसा और मौसी सो रहे हैं। उनकी नींद टूट जायेगी।’

मुझे हंसी आई और मैने अपना बैग वहीं रख दिया और वही रखी दूसरी प्लास्टिक की चटाई पर बैठकर प्राणायाम करने लगा। हालांकि मैं अक्सर ऐसा नहंी करता पर जब सुबह बाहर जाकर सैर करने का अवसर नहीं मिलता तो यही करता हूं।

भतीजी बोली-‘‘क्या आप आराम नहीं करोगे।’’

मैने कहा-‘नहीं ट्रेन में सोता हुआ आया हूं।’’

मेरे संक्षिप्त जवाब उसे परेशान कर देते हैं। जब मैं खामोशी से प्राणायाम करने लगा तो वह बार-बार मुड़कर पीछे देखती। वह शायद अपने मौसी-मौसा के बारे में बताना चाहती थी और मैं उससे इस बारे में कुछ नहीं सुनना चाहता था। एक रात पहले ही मुझे भाई साहब से फोन पर पता लगा गया था कि पूरा परिवार उनके साथ मिलकर क्रिकेट मैच देख रहा था और मैं इसे लेकर ही उसकी मौसी की मजाक उड़ाने वाला था। यह तय बात थी इस पर नोकझोंक होनी थी और सुबह उससे बचने में ही मुझे सबकी भलाई लगी।

इतने में भाभी बाहर आयी और मुझे देखकर बोली-‘तुम कब आये भैया?’’
मैने कहा-‘पंद्रह मिनट पहले।’

भाभी बोलीं-‘भईया, तुम इधर हाल से अंदर मत आना। मेरी बहिन और बहनोई यहां सो रहे हैं। उनकी नींद न टूटे।’

मैने कहा-‘‘नहीं जाऊंगा। हां, अब यही संदेश देने के लिये भाईसाहब को भी भेज देना। वह एक बचे हैं जो यह बात बताने के लिये रह गये हैं। आपसे पहले यह दोनो तो कह ही चुके हैं।’

ऐसा लगा कि भाभी को गुस्सा आया पर शायद अपनी बहिन की उपस्थिति का ख्याल कर वह मुस्कराकर चली गयीं।
भतीजी की योग साधना में खलल पड़ना ही था। वह बोली-‘‘चाचाजी आप तो ऐसी बात करते हो कि गुस्सा आ जाता है। कल वह दोनों क्रिकेट मैच देख रहे थे। फिर बातचीत होती रही और वह देर से सो पाये। इसलिये कह रहे हैं।’

मैने कहा-‘‘छिः तुम्हारी मौसी और मौसाजी क्रिकेट मैच देखते हैं?

अभी तक मेरी तरफ पीठ किये भतीजी और भतीजा दोनो ही एकदम मूंह फेरकर मेरी तरफ बैठ गये। मैं अपना प्राणायाम करने लगा।

भतीजी ने मुझे पूछा-‘‘इसका क्या मतलब?’
मेने कहा-‘‘तुम्हारे पापा कहते हैं न कि अब क्रिकेट भले लोगों का खेल नहीं रहा। उसमें लोग दांव लगाते हैं।’’
भतीजी बोली-‘‘वह तो पहले कहते थे। कल तो वह खुद भी देख रहे थे। यह जरूर कह रहे थे कि मजा नहंी आ रहा।’
मैंने कहा-‘वह कभी सट्टा नहीं लगाते तो मजा कहां से आयेगा? इसमें मजा उसे ही आता है जो इस पर पैसा लगता है यानि जुआ खेलता है।’
भतीजी बोली-‘हमारी मौसी और मौसाजी ऐसा नहीं कर सकते।’
मैंने कहा-‘तू ने पूछा था? जब उठें तो पूछ लेना कितने का सट्टा खेला था।’
भतीजा बोला-‘आप तो ऐसे ही मौसी और मौसा की मजाक उड़ाते हो।’
मैं अंदर चला गया। भतीजी और भतीजा अपनी मौसी और मौसा पर मेरे आक्षेपों को नहीं पचा पाये और जाकर अपनी मां को बता दिया। भाभीजी मेरे पास आयी और बोली-‘‘आपसे किसने कहा कि मेरे बहनोई सट्टा खेलते हैं।’
मैंने कहा-‘‘भईया ही कहते हैं कि आजकल यह खेल सट्टेबाज देखते हैं।’
तब तक किसी तनाव की आशंका को टालने के लिये वहां पधारे भाई साहब बोले-‘‘वह तो पहले कहता था। हां, अब फिर इस खेल में लोगों का आकर्षण बढ़ रहा है। सभी लोग थोडे+ ही सट्टा लगाते है। अधिकतर लोग तो मजे के लिए ही देखते हैं।
भतीजी बोली-‘‘हां, चाचाजी आप ऐसे ही किसी के बारे में कुछ भी कह देते हो।’
मैं चुप रह गया। भाई साहब की साली से अधिक मैं उनके साढ़ू से परिचित था क्योंकि वह मुझसे बड़ा था पर बचपन में कई बार मैं उसके घर गया था। अब भी उससे मेरी मित्रता थी।

भतीजी के मौसी मौसा दोनों उठकर हाल से बाहर आये तो उसके मौसा से मैंने उससे हाथ मिलाया फिर बातचीत में पूछ ही लिया-‘मैच पर कोई दांव वगैरह लगाते हो कि नहीं।’
वह बोला-‘हम कहां ऐसे दांव खेलते हैं। हां, कभी कभार हजार पांच सौ की शर्त लगाते हैं।’
मैंने कहा-‘शर्त भी तो एक तरह का जुआ है।
भाई साहब की साली बोली-‘‘मना करती हूं पर मानते ही नहीं।’
मेरी भाभी, भतीजी और भतीजे का चेहरा फक हो रहा था। मैंने उससे कहा-‘‘हां, जब जीतते होंगे तब कुछ नहीं कहती होगी। जब हारते होंगे तब चिल्लाती होगी।’
भाभी ने अपने बहनोई से कहा-‘चलो आप सट्टा नहीं खेलते पर दोस्तों में भी शर्त लगाना ठीक नहीं है।’
वह बोला-‘‘कभी-कभी लगाता हूं। अब वह भी नहीं लगाऊंगा।’

मैं कंप्यूटर वाले कमरे में आ गया तो पीछे भतीजी और भतीजा भी आया। मैंने भतीजी से कहा-‘‘मैं कंप्यूटर पर कुछ लिखूं? अगर तुम्हारा कोई काम हो तो कर लो। एक बार मैंने लिखना शुरू किया तो फिर हाथ रखने नहीं दूंगा। इंटरनेट के आधे पैसे मैं भी भरता हूं।’
भतीजी ने पूछा-‘‘मगर लिखोगे क्या?
मैंने कहा-‘‘छिः भतीजी के मौसा-मौसी क्रिकेट मैच देखते हैं-यही लिखूंगा।

भतीजी कहने लगी-‘इससे क्या मैच ही तो देखते हैं।
मैंने कहा-‘हां, पर शर्त भी लगाते हैं जो होता तो जुआ ही है।’
भतीजी ने कहा-‘मैं मम्मी और पापा को बताती हूं कि आप ऐसा लिख रहे हो।’
मैंने कहा-‘मैं तुम्हारे लिये भी लिख दूंगा कि तुम भी देखती हो।’
वह बोली-‘मैं क्या करती? वह लोग टीवी देख रहे थे। मेहमान हैं! भला क्या मैं चैनल बदलती। कितना बुरा लगता उनको?’

भतीजा बोला-‘चाचा मेरे लिये कुछ मत लिखना। मैं तो सो गया था।’
भतीजी उससे लड़ती बोली-‘झूठे कहीं के। पूरा मैच देख रहा था और अब चाचा लिख रहे हैं तो अपने को बचा रहा है।’

दोनों आपस में ही उलझ गये और मैं लिखने बैठ गया। मैंने उनको यह बात नहीं बताई कि मैं स्वयं भी कल रात मैच देखने के बाद ही ट्रेन से घर के लिए रवाना हुआ था। वरना अभी तक मुझे अपने बारे में सफाई देनी पड़ती कि मैंने कभी क्रिकेट क्यासी भी विषय पर शर्त न लगाने का व्रत नहीं लिया हुआ है जिसे लेने के लिए मुझे अपने स्वर्गीय दादाजी ने प्रेरित किया था।

शनिवार, 31 मई 2008

मौत के डर बनाए जाते हैं-हिंदी शायरी


लोग बड़ी हस्ती बनने की
दौड़ में जुट जाते हैं
जो होते हैं अक्ल से लंगड़े
वह दर्शकों की भीड़ में बैठकर
ताली बजाए जाते हैं
अपने गम भुलाने के लिये
खुशियों के मनाने चैराहे पर देते धरना
आपस में झगड़ा कर वहां भी
अपने आंसू बहाये जाते हैं

देखते हैं मस्तराम ‘आवारा’
इतने ऊपर है चांद
पर उस पर लपकने के लिए
नीचे ही कई स्वांग रचाये जाते हैं
भागता आदमी जब थक जाता है
तब भी बैचेन रहता है कि
कहीं रौशनी उससे दूर न रह जाये
इसलिये अंधेरे के भय उसे सताये जाते हैं
अपने चिराग खुद ही जलाने की
आदत डाले रहते तो
क्यों गमों का गहरा समंदर
उनको डुबोये रहता
जहां जिंदगी तूफान झेलने की
ताकत रखती है
वहां मौत के डर बनाये जाते हैं
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शुक्रवार, 16 मई 2008

अपने दिल को कहाँ बहलाएँ हम-हिंदी शायरी

मन जिधर ले जाये उधर ही हम
रास्ते में अंधेरा हो या रौशनी
हम चलते जायें पर रास्ता
होता नही कभी कम

अपनी ओढ़ी व्यग्रता से ही
जलता है बदन
जलाने लगती है शीतल पवन
महफिलों मे रौनक बहुत है
पर दिल लगाने वाले मिलते है कम
जहां बजते हैं
भगवान् के नाम पर बजते हैं जहाँ ढोल
वहीं है सबसे अधिक होती है पोल
अपने दिल को कहां बहलाएं हम

रविवार, 13 अप्रैल 2008

ख्वाहिशों में अपना दिल न लगाओ-हिंदी शायरी

आदमी की ख्वाहिशें
उसे जंग के मैदान पर ले जातीं हैं
कभी दौलत के लिए
कभी शौहरत के लिए
कभी औरत के लिए
मरने-मारने पर आमादा आदमी
अपने साथ लेकर निकलता है हथियार
तो अक्ल भी साथ छोड़ जाती है
ख्वाहिशों के मकड़जाल में
ऐसा फंसा रहता आदमी जिंदगी भर
लोहे-लंगर की चीजों का होता गुलाम
जो कभी उसके साथ नहीं जातीं हैं
जब छोड़ जाती है रूह यह शरीर
तो समा जाता है आग में
या दफन हो जाता कब्र में
जिन चीजों में लगाता दिल
वह भी कबाड़ हो जातीं हैं
ख्वाहिशें भी एक शरीर से
फिर दूसरे शरीर में घर कर जातीं हैं
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ख्वाहिशों में अपना दिल न लगाओ
वह कभी यहां तो कभी वहां नजर आतीं हैं
एक जगह हो जाता है काम पूरा
दूसरी जगह नाच नचातीं हैं
किसी को पहुंचाती हैं शिखर पर
किसी को गड्ढे में गिरातीं हैं
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शनिवार, 12 अप्रैल 2008

दुनियादारी इसी का नाम है-हिंदी शायरी

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं
उनके जख्म पर लगाओं मरहम
वह फिर भी दिल में बदनीयती और
बुरे इरादे लिये होते हैं
लेते हैं अच्छा नाम
केवल लोगों को दिखाने के लिये
दिल में जमाने को लूटने के
उनके अरमान होते हैं
शरीर का इलाज तो किया जा सकता
पर उनको दवा देना है बेकार
जिनके दिल में खोटी नीयत और
बेईमानी के रोग लाइलाज होते हैं
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शादी से पहले
होते हैं आशिक और माशुका
बाद में बन जाते हैं मियां-बीवी
इश्क हो जाता है हवा
दुनियांदारी इसी का नाम है
जब जरूरतों की जंग
घर को बना देती है टीवी

बुधवार, 2 अप्रैल 2008

अपना दर्द पी जाएं तो अच्छा है-हिंदी शायरी

जब भी तलाश की किसी साथी की
जो दिल को तसल्ली दे
कोई ऐसा मिला नहीं
जिसको दिया अपना हाल
दिखाने को हमदर्द बनता
फिर जाकर चटखारे लेकर भीड़ में सुनाता
महफिलों में वाह-वाही लूटता कहीं
हमारा दर्द तो हल्का नहीं हुआ
जमाने में बदनाम हो गये हर कहीं
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किसी को अपना दर्द सुनाने से
दिल में ही रखें तो अच्छा है
हमदर्दों से धोखा खाएं
अपना दर्द खुद ही पी जाएं अच्छा है
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