जब भी तलाश की किसी साथी की
जो दिल को तसल्ली दे
कोई ऐसा मिला नहीं
जिसको दिया अपना हाल
दिखाने को हमदर्द बनता
फिर जाकर चटखारे लेकर भीड़ में सुनाता
महफिलों में वाह-वाही लूटता कहीं
हमारा दर्द तो हल्का नहीं हुआ
जमाने में बदनाम हो गये हर कहीं
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किसी को अपना दर्द सुनाने से
दिल में ही रखें तो अच्छा है
हमदर्दों से धोखा खाएं
अपना दर्द खुद ही पी जाएं अच्छा है
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ऐसे में कहां जायेंगे यार-हिंदी शायरी
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*कहीं जाति तो कहीं धर्म के झगड़ेकहीं भाषा तो कहीं क्षेत्र पर होते लफड़ेअपने
हृदय में इच्छाओं और कल्पनाओं काबोझ उठाये ढोता आदमी ने...
16 वर्ष पहले
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