शुक्रवार, 16 मई 2008

अपने दिल को कहाँ बहलाएँ हम-हिंदी शायरी

मन जिधर ले जाये उधर ही हम
रास्ते में अंधेरा हो या रौशनी
हम चलते जायें पर रास्ता
होता नही कभी कम

अपनी ओढ़ी व्यग्रता से ही
जलता है बदन
जलाने लगती है शीतल पवन
महफिलों मे रौनक बहुत है
पर दिल लगाने वाले मिलते है कम
जहां बजते हैं
भगवान् के नाम पर बजते हैं जहाँ ढोल
वहीं है सबसे अधिक होती है पोल
अपने दिल को कहां बहलाएं हम

1 टिप्पणी:

Dr Parveen Chopra ने कहा…

उड़न-तश्तरी वाले समीर लाल जी की मानें तो अब यह मन बहलाने-वहलाने का जिम्मा तो बस हिंदी ब्लागिंग पर ही छोड़ कर निश्चिंत हो जाइये, जनाब। दुनियावी जश्नों में शिरकत करने से हम लोगों को कहां सुकून मिलने वाला है, हम लोगों का चंचल मन कहां बहलने वाला है !!