मंगलवार, 24 जुलाई 2007

गिद्ध और सिद्ध

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पिछले कई दिनों से अपरिहार्य कारणों से लिख नहीं पा रहा था , और अब प्रयास करूंगा कि इस पर एक रचना रोज दूं । आज चार क्षणिकाएँ प्रस्तुत कर रहा हूँ
मस्तराम

गिद्ध और सिद्ध
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अब गिद्ध करने लगें हैं
सिद्धों जैसी बात
इतनी चालाकी से करें कि
सिद्ध भी हो जाएँ मात


चालाकी और सिद्धि
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चालाकी को कहते लोग सिद्धि
मुर्खता को मानते अभिनय
बेईमानी को बताते कला
ऐसे में गिद्ध ही पूजते चारों तरफ
सिद्धो को कौन पूछता भला


वाचाल
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वाचाल इतने कि बोलें तो
लोग जाते हैं सहम
और करते हैं उनकी स्तुति
शांतिप्रिय लोग सोचते हैं
कुछ देर इनको झेल लो
किसलिये झगडा मोल लो
थोडी देर में मिल जायेगी
अपने आप मुक्ति

निडरता
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उनका शासन इसलिये चलता है
क्योंकि लोग डरे रहते हैं
निडर लोगों से दादा भी कन्नी
काटते हमने देखे हैं
डरने वाले को डराते
निडर को सलाम करते हैं
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5 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बढिया लिखा है।

Reetesh Gupta ने कहा…

अच्छी लगी आपकी क्षणिकायें....बधाई

36solutions ने कहा…

अच्छा चोट किया है मस्तराम जी !

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया है. अब निरंतर लिखें.

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

आपकी बातें सही हैं भाई. इतना अनुभव कहॉ से बटोरा?

और ये जो अपने फ़ालतू फंड का वार्ड वेरिफिकेशन की मुसीबत पल रखी है, इसकी जरूरत क्यों है?