बुधवार, 25 जुलाई 2007

कौन देगा चैन

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कौन देगा चैन
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कौन ढूँढें और कहाँ सुख का चैन
जो दिल की शांति बेचते हैं
अपने-अपने रंग के चोले ओढ़कर
दौलत और शौहरत के लिए
घूम रहे हैं बेचैन
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बेरोजगार
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कुछ पढ़ लिख गया
तो अब हो गया बेरोजगार
कहीं इधर-उधर ढूँढता नौकरी
अपनी शिक्षा की उपाधि से
कोई वास्ता नहीं रहा
पहले वेतन का है उसे इन्तजार
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बजवाते ताली
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पूंजीपति को देते हैं गाली
खुद की जेब भी है खाली
रोटी का सपना दिखाकर
बजवाते लोगों से ताली
लड़ते-झगड़ते अपनी रोटी तो
सेंक जाते हैं पर उनके भर के
बरतन भी रहते हैं खाली
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