शुक्रवार, 4 मई 2007

न इश्क किया होता न यह हाल होता

इश्क, दोस्ती और शायरी के शौक़ ने इस हाल में पहुंचा दिया है कि अब इस भीड़ में जोकर बन कर रह गया हूँ। सोचता हूँ कि अब अपने कम्प्यूटर पर अपने कलम के जलवे दिखाए । एक दोस्त ने यह गलत सलाह दे डाली अगर तुम्हारी कोइ सुनता नही है तो तुम अब ऎसी जगह ढूँढो जहां तुम्हारी कोइ सुने। हमने सोचा वह तो केवल बेजान कम्प्यूटर ही हो सकता है जहां जानदार लोगों की बस्ते हो सकती, उस दिन इंडियन एक्सप्रेस में जब ब्लोग के बारे में पढा तो सोचा बना ही डालो अपना एक ब्लोग । सो अब पूरी तैयारी है , वह कहते हैं न कि इश्क ने निकम्मा कर दिया वरना अहम भी आदमी थे काम के ।
इस ब्लोग के बारे में एक दोस्त से ट्रेनिंग ले आया उसने मुझसे यह वचन लिया कि में उसका नाम लेकर किसी को नहीं बताऊंगा कि मेरे से ट्रेनिंग ली है। वह मेरे लिखेने से खुश नहीं है क्योंकि उसे लगता है में लिखें में खतरनाक हूँ, पर मैंने उसे वचन दिया है मैं ऐसा कुछ नहीं लिखूंगा कि और लोगों को परेशानी हो .

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