ऐसे में कहां जायेंगे यार-हिंदी शायरी
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*कहीं जाति तो कहीं धर्म के झगड़ेकहीं भाषा तो कहीं क्षेत्र पर होते लफड़ेअपने
हृदय में इच्छाओं और कल्पनाओं काबोझ उठाये ढोता आदमी ने...
16 वर्ष पहले
2 टिप्पणियां:
आप की इस रचना मे विरह के दर्शन होते है-
उनका चेहरा हमारी
आंखों में बसा है
पर पता मालुम नहीं
उनके ख्वाबों में इतना खोये रहते हैं
कि सोचते हैं फुर्सत मिले
तो उनका पता ढूँढें
ऐसा कब होगा हमें मालुम नहीं
जब फुर्सत मिल जाये तब बताना!! :)
वैसे हम फुर्सत मॆं हैं और रचना अच्छी लगी. बधाई.
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