गुरुवार, 26 जुलाई 2007

प्रात:काल की बेला

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प्रात:काल की बेला
वर्षा के मौसम में
रिमझिम होती फुहार
शीतल पवन का स्पर्श
एक ऐसे आनन्द की
अनुभूति का आनद कराता है
जी शब्दों में व्यक्त करना
सहज नहीं कोई पाता है
न गद्य और पद्य में
न गीत से न संगीत से
न श्रवण न न अध्ययन
यह एक अनुभूति है जिसे
वह कर पाते हैं
जो समय पर जाग जाते हैं
देर से जागने पर
संसार स्वत: ही नरक सा लगता है
जो जागते है उन्हें
भोर का हर एक -एक पल
परमानंद का अनुभव कराता है

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत खूब गर देर तक सोने वालों अब हमें सुनो किसी और के माध्यम से:

सचमुच बहुत देर तक सोये
लोगों ने बोई फुलवारी
हमने अब तक बीज न बोये..
सचमुच बहुत देर तक सोये..........

बस यह देखें. :)