सोमवार, 7 मई 2007

दोस्त किसका, मेरा या मोटर सायकिल का

कल मेरे एक दोस्त अपने विवाह के लिए लडकी देखने गया, जाने से पहले उसने मुझे फोन किया और बोला-"यार आज तुम अपने मोटर सायकिल लेकर आना और हम एक लडकी देखने चलेंगे ।"
हमने पूछा कि _"भाई तुम पहले भी इतनी लडकियां देख चुके हो, तब हमारे याद नहीं आयी , कहीं तुमने नापसंद की और कहीं तुम्हें नापसंद किया गया, ऐसा तो नहीं कि टीवी पर हमारी राशी को भविष्यफल देख लिया हो और सोच रहे हो कि हमारे भाग्य से तुम्हारा भी कम बन जाये । क्योंकि हमने अभी टीवी पर अपना भविष्य फल देखा था जिसमे कहा गया कि कि आज का दिन आपके लिए बहुत अच्छा निकलेगा। "
वह बोला-"नहीं यार आज मेरी मोटर साइकिल खराब है इसीलिये तुम्हें लेकर चलने की सोच रहा हूँ । फिर तुम भी लडकी देख लो बुराई क्या है?
हमने कहा-"तुम मेरे दोस्त हो या मेरी मोटर सायकिल के? वैसे तुम्हारी मोटर सायकिल खराब है दिखाने लायक नहीं है? जहां तक हमारी जानकारी है वह तुम्हारी नहीं बल्कि तुम्हारे मिडिल पास भतीजे की है जिसे तुम निहोरे कर ले आते हो ।"
अरे यार तुम तो इस समय भी मजाक उड़ाने लगे ।" वह बोला_"तुम्हें नहीं लाने तो मना कर दो । वैसे भे मैंने जानता हूँ कि तुम मेरे लिए अपने भतीजे के निहोरे करोगे।"
मैंने उससे आने का वादा किया और फोन रखा वैसे हे देखा हमारी भतीजी जो पास में बैठी ही अपने पापा के निर्देशानुसार अपने गर्दन घड़ी दीं तरह घुमाने का व्यायाम कर रही थी, उठकर कमरे से बाहर चली गयी। मैं कम्प्यूटर पर बैठाकर काम करने लगा। थोड़ी देर बाद हमारी भाभी और भतीजा उस कमरे में आये। भाभी बडे रूखे स्वर में बोलीं-"भैया अपने भतीजे को मोटर सायकिल की चाबी दे दो यह अपनी नानी के पास जा रहा है ।"
मैंने पानी भतीजी कि तरफ देखा, तो उनसे मुँह फेर लिया। मैंने भाभी से कहा-"आज मुझे काम है। आप कहो तो मैं मैं इसे नानी के पास छोड़ता जाऊंगा। फिर वापस भी लेकर आऊंगा।
भाभी निर्णायक स्वर में बोलीं-"नहीं तुम वहां नहीं जाओगे, उनका तुम्हारा आना पसंद नहीं। जैसे तुम्हारी माताजी को उनका यहां आना पसंद नहीं वैसे ही उन्हें तुम्हारा आना पसंद नहीं ।"
मैं जानता था कि मेरे भाई का पूरा परिवार मेरे माताजी और अन्य रिश्देदारों का गुस्सा मुझ पर निकालता है और चूंकि मोटर सायकिल और घर का कम्प्यूटर भाई साहब की कमाई से ही खरीदे गये हैं और इण्टरनेट भी उससे लीं है तो मुझे भाई -भाभी के साथ भतीजे-भतीजी के साथ तालमेल बना कर चलना पड़ता है। इस ब्लोग बनाने के लिए भतीजे ने इजाजत इस शर्त पर दीं थी कि मैं उसे उसके स्कूली विषयों के बारे में रोज एक घंटे पढाया करूंगा। बहरहाल मैं सोच रहा था कि इस समस्या से इस समस्या से कैसे निप्तूं इसी बीच मेरे उसी दोस्त का फोन आ गया-" वह बोला यार, तुम्हें परेशा होने की जरूरत नहीं है , मेरे मामा का लड़का अपनी मोटर साइकिल ला रहा है। "
फोन से आवाज बाहर आ रही थी और मेरे भतीजे ने भी सुना। मैंने जब से चाबी निकाली और भतीजे की तरफ बधाई तो वह बोला मुझे अब इसकी जरूरत नहीं है । भाभी बोलीं-"देखो मुझे कैसे कह रहा था कि मुझे मोटर सायकिल चाहिए।"
मेरी भतीजी जो कम्प्यूटर पर केवल इसलिये बैठी थी कि आज चाचा से इस विषय पर भी रट्टा ले ही लेते हैं वह उठकर चल दी । मैं सोच रहा था कि कौन किसका दोस्त है कौन किसका रिश्तेदार । मेरे या मोटर सायकिल के या कम्पूटर के,।

5 टिप्‍पणियां:

रवि रतलामी ने कहा…

रिश्तेदारी पर बड़ा गंभीर व्यंग्य मारा है गुरू!

हिन्दी चिट्ठाजगत् में आपका स्वागत है. बधाई व शुभकामनाएँ.

अभय तिवारी ने कहा…

अच्छा है.. लिखते रहिये..

Sanjeet Tripathi ने कहा…

"मैं सोच रहा था कि कौन किसका दोस्त है कौन किसका रिश्तेदार । मेरे या मोटर सायकिल के या कम्पूटर के,।"

जब किसी निष्कर्ष पर पहूंच जाएं तो बताईगा मस्तराम जी।
वैसे इस हिन्दी चिट्ठा जगत पर इस आवारा-बंजारा की ओर से शुभकामनाओं सहित स्वागत है आपका

बेनामी ने कहा…

हमारे भी एक दोस्त है लड्कीयो को लाईन मार ने के लिये हम से बाईक ले जाते है कभी-कभी लड्कीयो के पीछआ कर उन के घर तक छोड कर आते है हमे तो डर है किसी दिन उन लड्कीयो
के घर वाले हमारी पिटाई न कर दे

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

मस्तरामजी,पता नही आपने ये व्यंग लिखा है या सच्चाई । लेकिन जो भी है सच है आज का। आज हमारे समाज का यही रूप है। रिश्तों को अब धन से तोला जाता है। आप का लेख पढ़ कर दिल मे एक टीस-सी उठती है।