गुरुवार, 24 मई 2007

कवि और कविता

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कविता लिखना इतना आसान नहीं
जितना लगता है
सभी के अन्दर होती है
भावों की हलचल
उनके साथ बहना सरल नहीं
जितना लगता है
दंभ में लोग लिखते हैं भी
बिना समझे लोग
वाह-वाह करते हैं
झूठ के पाँव नहीं होते
वह चलता नहीं पर
चलने का भ्रम होता है
दिल सभी के पास है
दिमाग भी है
पर सभी कवि नहीं हो जाते
क्योंकि चरण वंदना और चाटुकारिता
करना सभी को सहज लगता है
केवल रुदन नहीं करते
केवल जख्म नहीं दिखाते
केवल छिद्रान्वेषण ही नहीं करते
अपनी पीडा से भी सहज शब्दों का
अमृत लोगों में बांटते हैं
करते हैं मंत्र मुग्ध हर लेते हैं
सभी की पीड़ा
कवि हृदय अपने अन्दर पालना
इतना सरल नहीं है
जितना लगता है

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

सही कह रहे हैं. मैं पंक्तियों मे और उनके भीतर बसे भावों को बखूबी अहसास कर पा रहा हूँ. :)

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

आप ने कविता के माध्यम से जो बात कही है उस में सत्यता तो है लेकिन किसी का हौसला बढाना गलत नही है। हम जैसे बच्चे गिरते पड़ते ही चलना सीखेगें।आप की रचना पसंद आई।

Divine India ने कहा…

बखुबी से आपने अपनी बात रखी है…लेकिन सच तो यही है कि हर इंसान जन्म से ही कवि होता है किसी के पास शब्द होते हैं तो वह शब्दों को पिरोता है कोई बातों से कवि होता तो कोई…सोंच से…।
हाँ जो पिरोना एक कला है जो हर को कागज पर करनी नहीं आती…।

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

दंभ में लोग लिखते हैं भी
बिना समझे लोग
वाह-वाह करते हैं
झूठ के पाँव नहीं होते
वह चलता नहीं पर
चलने का भ्रम होता है

सही लिखा है आपने. वैसे मेरी नजर मेंझूठी प्रशंसा करने वाले लेखक के सबसे बड़े दुश्मन होते हैं. परमजीतजी -- हौसला बढ़ाना गलत नहीं है परन्तु अगर झूठी प्रशंसा गलत दिशा में ढकेलने लगे तो ऐसी प्रेशंसा करने के स्थान पर चुप रह जाना ही बेहतर है. ( चुप इसीलिये कि कड़वे सत्य को निगल पाना हर किसी के लिये सम्भव नहीं होता )