तारीखों को याद करना
अब मजाक लगता है
जिन पर जख्म होते हैं
वह उन पर रोते हैं
जब भूलते हैं तो
याद दिला कर जख्म करने वाले भी
इस दुनिया कम नहीं होते हैं
तारीखों को अब बदला जा रहा है
जिन पर हो सकता है गर्व
उनको भुलाया जा रहा है
जिन पर है सब कुछ
वह क्या जाने उनको जिन्होंने दर्द झेले हैं
समाज को बचाने की खातिर
उनके नामों को तारीखों से
हटाया जा रहा है
कभी लगता है कि
तारीख में झूठ भी लिखा जाता है
अपने हिसाब से याद दिलाया जाता है
जिसके बस में है ताकत
गरीबों के जख्मों की तारीख को
उनकी हमदर्दी दिखाने के लिए बनाया जा रहा है
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ऐसे में कहां जायेंगे यार-हिंदी शायरी
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*कहीं जाति तो कहीं धर्म के झगड़ेकहीं भाषा तो कहीं क्षेत्र पर होते लफड़ेअपने
हृदय में इच्छाओं और कल्पनाओं काबोझ उठाये ढोता आदमी ने...
16 वर्ष पहले
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