शनिवार, 1 मार्च 2008

सात्विक लेखन से हिंदी प्रतिष्ठित होगी-विशेष लेख

अपने ब्लोग पर अपने प्यार का नाम 'मस्तराम' का उपयोग करते हुए मुझे इस बात का पता नहीं था की कोई और भी मस्तराम है। मैंने आज तक किसी मस्तराम से कोई प्रसिद्ध नाम नहीं सुना है पर इस बात का अनुमान था की अपना देश बहुत व्यापक है इसलिए कई क्षेत्रों में सम्मानित लोग हो सकते हैं क्योंकि यह आदमी के मस्त और सरल स्वभाव के कारण उनकी पहचान बन जाता है। मैंने सोचा चलो अखिल भारतीय छबि बनाने ले लिए यह नाम मेरे लिए ठीक ही बैठता है।

उस दिन जब एक ब्लोग पर मस्तराम के बारे में विवादास्पद चर्चा को पढा और उसमें अपने ब्लोग को देखा तो मैंने अपनी आपत्ति दर्ज कराई और उनके लेखक ने खेद जताया। यह मुद्दा ख़त्म हो गया पर बीच-बीच में जब मैं अपने ब्लोग को सर्च कर देखता हूँ तो मेरे से अलग मस्तराम का ब्लोग मेरे सामने आता है। मैंने उसे कई बार यह सोचकर खोला की देखूं उसमें कोई नई सामग्री आई है तो उसके ब्लोगर को कमेन्ट लिखकर कहूं कि कुछ अच्छा लिखे। उस दिन मैंने उसे ध्यान से देखा उसमें कई प्रकार की ऐसी सामग्री मेरे सामने आई जो मेरे विचार से निरर्थक थी। उस ब्लोग पता नहीं उसे इतनी प्रसिद्धि मिली हुई है। उस पर आखरी सामग्री लिखे हुए ही सवा दो साल से अधिक हो गया है। अब उस पर लिखा है कई लोगों ने दिखा होगा। उसमें जो लिखा है वह मैं यहाँ नहीं लिख सकता। मेरे लिए उसमें निरर्थक सामग्री है। उसमें जो कमेन्ट लिखीं हुईं है वह भी लगभग वैसी हैं जैसी उसकी सामग्री।

मैंने मस्तराम के नाम पर अधिक खोजबीन की तो लगता है कि कोई एक मस्तराम नहीं है और जिस ब्लोग की हम चर्चा कर रहे हैं वह भी वेबसाईट पर मस्तराम के नाम की लोकप्रियता का लाभ उठाने की दृष्टि से बनाया गया लगता है। एक संभावना मुझे लगती है कि हिन्दी को अंतर्जाल पर लोकप्रिय बनाने की दृष्टि से यह ब्लोग बनाया गया क्योंकि यह मान लिया गया होगा कि लोग इसी तरह की सामग्री अंतर्जाल पर ढूंढते हैं और हिन्दी में लिखकर उसके लिए पाठक ऐसे ही जुटाए जाएं। बाद में जब अन्य विषयों पर भी हिन्दी के पाठकों का आना शुरू हो गया तो इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया हो। इसका लेखक आज भी अपने बीच में अपने असली नाम से लिखते हुए सक्रिय रहने वाला भी हो सकता है। वजह यह उस समय का लिखा हुआ है जब हिन्दी टूलों के बारे में कोई जानता तक नहीं था। उसमें जो लिखा है वह अशोभनीय है और अगर कोई इसे बनाकर भूल गया हो और अब अच्छा लिख रहा है उसे इस पर ध्यान देकर इसे हटाने का विचार करना चाहिऐ। वैसे हर कोई अपनी मर्जी का मालिक है पर इसमें यह भी देखना चाहिऐ कि उसका दूसरों पर क्या प्रभाव पड़ता है। हाँ मेरे से ऐसी रचनाओं के अपेक्षा करना बेकार होगा। एक बात मजेदार हो सकती है कि कुछ लोगों को यह लगेगा कि अब यह मस्तराम अब बदल गया है और साहित्य लिख रहा है हालांकि जब मेरा नाम मस्तराम 'आवारा' पढेंगे तो यह भी समझ लेंगे कि यह कोई और व्यक्ति है. यह भी हो सकता है कि उस सामग्री के पढ़ने वाले अब मेरी सामग्री पढ़कर हिन्दी में अच्छा लिखा जा रहा है यह देखकर अब अच्छे विषयों से सर्च करने लगें.


ऐसा नहीं है कि मुझे कोई डर है बल्कि लोग मुझे भी पढेंगे और मेरी रचनाएं छोटीं हो और साहित्य जैसा सौदर्य उनमें न हो पर वह निरर्थक नहीं है। फिर में आगे भी बहुत लिखने वाला हूँ और पाठक संख्या बढ़ती जा रही है और आगे भी बढ़ जायेगी। अभी तक किसी ने यह नहीं कहा कि तुम बुरा लिखते हो।


अपने ब्लोग पर अपने प्यार का नाम 'मस्तराम' का उपयोग करते हुए मुझे इस बात का पता नहीं था की कोई और भी मस्तराम है। मैंने आज तक किसी मस्तराम से कोई प्रसिद्ध नाम नहीं सुना है पर इस बात का अनुमान था की अपना देश बहुत व्यापक है इसलिए कई क्षेत्रों में सम्मानित लोग हो सकते हैं क्योंकि यह आदमी के मस्त और सरल स्वभाव के कारण उनकी पहचान बन जाता है। मैंने सोचा चलो अखिल भारतीय छबि बनाने ले लिए यह नाम मेरे लिए ठीक ही बैठता है।

उस दिन जब एक ब्लोग पर मस्तराम के बारे में विवादास्पद चर्चा को पढा और उसमें अपने ब्लोग को देखा तो मैंने अपनी आपत्ति दर्ज कराई और उनके लेखक ने खेद जताया। यह मुद्दा ख़त्म हो गया पर बीच-बीच में जब मैं अपने ब्लोग को सर्च कर देखता हूँ तो मेरे से अलग मस्तराम का ब्लोग मेरे सामने आता है। मैंने उसे कई बार यह सोचकर खोला की देखूं उसमें कोई नई सामग्री आई है तो उसके ब्लोगर को कमेन्ट लिखकर कहूं कि कुछ अच्छा लिखे। उस दिन मैंने उसे ध्यान से देखा उसमें कई प्रकार की ऐसी सामग्री मेरे सामने आई जो मेरे विचार से निरर्थक थी। उस ब्लोग पता नहीं उसे इतनी प्रसिद्धि मिली हुई है। उस पर आखरी सामग्री लिखे हुए ही सवा दो साल से अधिक हो गया है। अब उस पर लिखा है कई लोगों ने दिखा होगा। उसमें जो लिखा है वह मैं यहाँ नहीं लिख सकता। मेरे लिए उसमें निरर्थक सामग्री है। उसमें जो कमेन्ट लिखीं हुईं है वह भी लगभग वैसी हैं जैसी उसकी सामग्री।

मैंने मस्तराम के नाम पर अधिक खोजबीन की तो लगता है कि कोई एक मस्तराम नहीं है और जिस ब्लोग की हम चर्चा कर रहे हैं वह भी वेबसाईट पर मस्तराम के नाम की लोकप्रियता का लाभ उठाने की दृष्टि से बनाया गया लगता है। एक संभावना मुझे लगती है कि हिन्दी को अंतर्जाल पर लोकप्रिय बनाने की दृष्टि से यह ब्लोग बनाया गया क्योंकि यह मान लिया गया होगा कि लोग इसी तरह की सामग्री अंतर्जाल पर ढूंढते हैं और हिन्दी में लिखकर उसके लिए पाठक ऐसे ही जुटाए जाएं। बाद में जब अन्य विषयों पर भी हिन्दी के पाठकों का आना शुरू हो गया तो इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया हो। इसका लेखक आज भी अपने बीच में अपने असली नाम से लिखते हुए सक्रिय रहने वाला भी हो सकता है। वजह यह उस समय का लिखा हुआ है जब हिन्दी टूलों के बारे में कोई जानता तक नहीं था। उसमें जो लिखा है वह अशोभनीय है और अगर कोई इसे बनाकर भूल गया हो और अब अच्छा लिख रहा है उसे इस पर ध्यान देकर इसे हटाने का विचार करना चाहिऐ। वैसे हर कोई अपनी मर्जी का मालिक है पर इसमें यह भी देखना चाहिऐ कि उसका दूसरों पर क्या प्रभाव पड़ता है। हाँ मेरे से ऐसी रचनाओं के अपेक्षा करना बेकार होगा। एक बात मजेदार हो सकती है कि कुछ लोगों को यह लगेगा कि अब यह मस्तराम अब बदल गया है और साहित्य लिख रहा है हालांकि जब मेरा नाम मस्तराम 'आवारा' पढेंगे तो यह भी समझ लेंगे कि यह कोई और व्यक्ति है. यह भी हो सकता है कि उस सामग्री के पढ़ने वाले अब मेरी सामग्री पढ़कर हिन्दी में अच्छा लिखा जा रहा है यह देखकर अब अच्छे विषयों से सर्च करने लगें.


ऐसा नहीं है कि मुझे कोई डर है बल्कि लोग मुझे भी पढेंगे और मेरी रचनाएं छोटीं हो और साहित्य जैसा सौदर्य उनमें न हो पर वह निरर्थक नहीं है। फिर में आगे भी बहुत लिखने वाला हूँ और पाठक संख्या बढ़ती जा रही है और आगे भी बढ़ जायेगी। अभी तक किसी ने यह नहीं कहा कि तुम बुरा लिखते हो। हाँ यह भी हो सकता है कि लोग मेरा पढ़कर यह सोचने लगें कि अब यह मस्तराम बदल गया है, पर मेरा नाम मस्तराम 'आवारा'पढ़कर समझ लेंगे कि यह कोई अलग व्यक्ति है. वैसे भी मस्तराम के नाम से कुछ अन्य भले लोग भी भली सामग्री के साथ मौजूद होंगे ऐसा मुझे लगता है. जो लोग ऐसी-वैसी सामग्री पढ़ने के लिए आते हैं और जब हिन्दी में अच्छे विषयों को लिखा देंगे तो हो सकता है कि उनकी मानसिकता बदल जाये और वह अन्य विषयों से भी सर्च करने लगें। मैंने फोरमों पर देखा है कि कई लोग सात्विक विषयों पर लिख रहे हैं और वह हिन्दी को इंटरनेट पर प्रतिष्ठित करने में सफल होंगे।

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