शनिवार, 1 मार्च 2008

आखें खुलीं हैं, पर बंद हैं नजर-हिंदी शायरी

इधर जाऊं या उधर
चारों तरफ रास्ता आता है नजर
सभी दौडे जा रहे हैं
अपने मुकाम का पता किससे पूछूं
सभी हैं बदहवास और दर-ब-दर
कोई उठाकर नहीं देखता नजर

भीड़ में सब हैं अकेले
जा रहे हैं सब इसलिए जाते हैं
इस उम्मीद में कहीं तो होंगें
दौलत के मेले
कहीं चूक न जाएं कुछ पाने से
इसलिए हैं सबकी रास्ते में आगे ही नजर

बरसों से लोग दौड़ रहे हैं
अपनी मंजिल का पता नहीं
पर कोई और न ले जाये कुछ कहीं
हम पहले झपट लें मौका
ऐसी है सबकी नजर
पर किसने पाया
कोई क्या ले गया
सब टूटे-बिखरते जिंदा आते हैं नजर
बोलते सब हैं, पर निरर्थक शब्द
अक्ल से परे हैं, सोचते कुछ नहीं
आखें खुलीं है, पर बंद है नजर
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