कुछ तो होते हैं बहाने
कुछ होते हैं अफ़साने
जिन्दगी का कारवां बढ़ता जाता
जिनसे करते हैं खुशी की उम्मीद
वही दे जाते हैं धोखा
गैरों से ही तब आसरा मिल जाता
अपनों के बीच गुजाते फिर भी जिन्दगी
चाहे कोई भरोसा नजर नहीं आता
मन पर मजबूरियों का बोझ उठाये
इंसान यूं ही चलता जाता
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ढकोसलों को कहते हैं पूजा
मानते हैं एक को घर ढूँढें दूजा
आदमी का दिल भटकता है इधर उधर
इतनी बड़ी देह फिर भी लगता चूजा
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ऐसे में कहां जायेंगे यार-हिंदी शायरी
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*कहीं जाति तो कहीं धर्म के झगड़ेकहीं भाषा तो कहीं क्षेत्र पर होते लफड़ेअपने
हृदय में इच्छाओं और कल्पनाओं काबोझ उठाये ढोता आदमी ने...
16 वर्ष पहले
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