मयखाने में वह हर जाम के साथ
अपने गम को भुला आते हैं
पर उतर जाता है जब नशा
तो फिर गम और ज्यादा सताते हैं
महफिलों में मय बंटती है अमृत की तरह
पीकर लोग बहक जाते हैं
जाम की कुछ बूंदों में ही
भद्र लोगों के नकाब उतर जाते हैं
देखा 'मस्तराम आवारा'' ने
दर्द कुछ देर दूर चला जाये पर
मिटा नहीं सकता कभी उसे जाम
आंतों की ऊर्जा जो जिन्दगी में
लड़ने के लिए होती है बेहद जरूरी
उसका हो जाता है काम तमाम
जिस दर्द को हवा हुआ समझते हैं
मय को पीकर
वह दिल में जमा हो जाते हैं
और फिर किसी दिन आते हैं
तूफान की तरह
आदमी की जिन्दगी को साथ ले जाते हैं
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ऐसे में कहां जायेंगे यार-हिंदी शायरी
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*कहीं जाति तो कहीं धर्म के झगड़ेकहीं भाषा तो कहीं क्षेत्र पर होते लफड़ेअपने
हृदय में इच्छाओं और कल्पनाओं काबोझ उठाये ढोता आदमी ने...
16 वर्ष पहले
2 टिप्पणियां:
hey you are so good
hey tum to but accha likhte ho yarr
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