इंटरनेट पर भी शब्दों को मेला लगेगा
कोई रोग पर लिखेगा
कोई योग पर लिखेगा
कोई भोग पर लिखेगा
कोई सहयोग पर लिखेगा
कोई संभोग अपनी माया रचेगा
कुछ लिखेंगे फूल की तरह
कुछ चुभोएँगे शूल की तरह
पढ़ने के लिए लोग भी होंगे उन जैसे
पर फिर भी सब वैसा नहीं लगेगा
भोग के लिए मन बहलाने
निकला होगा कोई शख्स ढूँढने शब्द
टकरा गया कहीं योग के शब्द तो
बदल सकता है भाव भी
आ सकता है ताव भी
पर शब्दों का खेल चलता रहेगा
पढ़ना चाहता होगा कोई संभोग पर
आ गया कोई सहयोग का उपासक शब्द
तो चाल बदल भी सकती है
साँसें भड़क भी सकती है
मस्तराम आवारा देख रहे हैं
कुछ असली है और कुछ नकली है
छद्म नाम और चेहरों का है मेला
एक नाम से दे सकता है कोई राम का सन्देश
दूसरे से भड़का सकता है काम का आवेश
कुछ पता नहीं लगेगा
चलता रहेगा इस तरह इंटरनेट पर शब्दों का मेला
जैसा गुरु होगा वैसा ही होगा चेला
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1 टिप्पणी:
साधु साधु....उत्तम विचार...यह मेला यूँ ही अनवरत चलेगा..बस, ठान लो कि साथ चलना है. मैं तो मिलता ही रहूँगा. :)
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