होलिका दहन तो होता है हर साल
उड़ते हैं रंग और सब जगह
सजते हैं पकवानों के थाल
लोग शराब और भांग के नशे में
झूमते-झूमते हो जाते निढाल
वर्षों से जल रही हैं होलिका
पर आज के प्रह्लादों को जलाने
हर साल फिर एक नयी चादर ले आती
कहीं शराब को कर देती जहर
कहीं गाड़ियों को आपस में
टकराकर ढहाती है कहर
शराब की बोतलों और तंबाकू के
पाऊचों की चादर के नीचे ला दिए
गाँव और शहर
खेलने के लिए डाले रंग तो
धुल जाते हैं
पर जो होते इस दिन घाव वह
कर देते हैं जिन्दगी बदहाल
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ऐसे में कहां जायेंगे यार-हिंदी शायरी
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*कहीं जाति तो कहीं धर्म के झगड़ेकहीं भाषा तो कहीं क्षेत्र पर होते लफड़ेअपने
हृदय में इच्छाओं और कल्पनाओं काबोझ उठाये ढोता आदमी ने...
16 वर्ष पहले
1 टिप्पणी:
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