रविवार, 9 मार्च 2008

इज्जत तो है सिक्कों की-हिंदी शायरी

जिन्दगी के इस सफर पर
चलते रहना है जब
किसी का इन्तजार क्या करना
कहीं मिलेगी नफरत तो कहीं प्यार भी मिलेगा
कहीं होगी काँटों की चुभन
कहीं होगी फूलों की सुगंध
कोई तो निभाएगा विश्वास
कहीं धोखे भी होंगे
फिर रंग देखा क्या खुश होना
बदरंग चेहरों से क्या डरना

जो किसी का इन्तजार करेंगे
तो कोई नहीं आयेगा
पीछे रह जायेंगे हम
ज़माना आगे बढ़ जायेगा
दुनिया में फिर एक मजाक बनेंगे
चल पड़े अपनी राह पर तो
लोग देंगे पीछे से आवाज
पर चलते जाना अपनी राह
कहीं होंगे अकेले
कहीं मिलेंगे मेले
वक्त के साथ चलने की रखना चाह
भीड़ में शुमार होकर मत खोना अस्तित्व
अलग रखना व्यक्तित्व
औरों की मिसाल पर क्या गौर करना
अपनी मिसाल खुद तुम बनना
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जब तक खाली थी जेब
दोस्त ढूँढने पर भी मिले नहीं
जब से दस्तक दी है चंद सिक्कों ने दरवाजे पर
रोज कोई मिलने चला आता है
कोई दोस्त बनता है कोई भाई
नाम रिश्तों के बना जाता है
हम जानते हैं इज्जत तो है सिक्कों की
हम भला जमाने में ठहर पाते कहीं

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

हम जानते हैं इज्जत तो है सिक्कों की
हम भला जमाने में ठहर पाते कहीं


--सही पहचाना!! बेहतरीन.