कभी किसी का भला किया नहीं
पर ऐसा करते नजर आते
उन्हीं की प्रशंसा में लोग
तारीफों के पुल बांधे जाते
फिर करते जमाने के बिगड़ने की शिकायत
जिसे अपने हाथो से बिगाड़े जाते
करते हैं जो बिना आवाज के
बेसहारा लोगों की मदद
वह खुद ही परिदृश्य में नजर नहीं आते
देते हैं जो दूसरे के टूट रहे जीवन को सांस
वह फोटो खिंचवाने नहीं आते
पर लोग भी कौन उनको देखने की
चाह रखते
उन्हें बस धोखे ही पसंद आते
हाथ में नहीं रखते जो एक रूपये का सिक्का
उसके प्रशंसक बन जाते
दृश्य आंखों के पार नहीं होते
ऐसे ही भलाई के इंद्रजाल को देखकर
प्रशंसा के पुल बांधे जाते
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ऐसे में कहां जायेंगे यार-हिंदी शायरी
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*कहीं जाति तो कहीं धर्म के झगड़ेकहीं भाषा तो कहीं क्षेत्र पर होते लफड़ेअपने
हृदय में इच्छाओं और कल्पनाओं काबोझ उठाये ढोता आदमी ने...
16 वर्ष पहले
2 टिप्पणियां:
प्रशंसा वहॉं आरम्भ होती हैं, जहॉ परिचय समाप्त होता है।
hey very good nice article and i love to know more
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