अपने मुहँ से बताते हैं पहचान
नहीं पाते अपने को भी जान
अपने सिर उठाये हैं आदमी
ऐसे शब्दों का बोझ
जिनका अर्थ उसका मन नही रहा मान
लिखा हुआ पढा और लिया रट
बोलने पर सुना देता फट
पर रहता है शब्दार्थ के रहस्य से अनजान
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कुछ अंग्रेजी कुछ हिन्दी शब्दों की खिचडी
पकाकर वह लोगों को सुना रहे
अक्ल से पैदल हैं
किसी तरह पब्लिक से छिपा रहे
हिन्दी फिल्मों में काम करने वाले लोग
अपने को स्पेशल बता रहे
अपने घर में होता विद्वान भी बैल
इसलिए वह बाहरी होने का
अहसास दिला रहे
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ऐसे में कहां जायेंगे यार-हिंदी शायरी
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*कहीं जाति तो कहीं धर्म के झगड़ेकहीं भाषा तो कहीं क्षेत्र पर होते लफड़ेअपने
हृदय में इच्छाओं और कल्पनाओं काबोझ उठाये ढोता आदमी ने...
16 वर्ष पहले
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