बुधवार, 20 फ़रवरी 2008

ब्लोगर बिकेगा कि ब्लोग -हास्य-व्यंग्य

(काल्पनिक हास्य-व्यंग्य रचना )

दोपहर घर पहुंचा तो भतीजा बोला-चाचाजी, अच्छा हुआ आप आ गए, आपको खबर देनी थी। सारे क्रिकेट खिलाड़ी बिक गए।''
''तो"।मैंने उसे घूरकर देखा और कहा-''मुझे इस खबर से क्या मतलब?''
भतीजा बोला-''मुझे तो पता नहीं अन्दर दीदी खबर सुन रही थी और उसने मुझसे कहा कि 'चाचा आयें तो उनकों यह खबर देनी है क्योंकि वह भी खिलाड़ी हैं' तो मैंने आपको यह खबर दे दी, आप हमेशा मुझ पर नाराज क्यों होते हो?''

वह खिसक गया और मैं जैसे ही अन्दर पहुंचा तो भतीजी सोफे से उठकर खडी हुई-''आओ चाचाजी, मैं आपका ही इन्तजार कर रही थी?''

मैंने कहा-''जब मैं अन्दर घुसता हूँ तो बस के ही डर लगता है कि कोई विषय लेकर तुम इन्तजार तो नहीं कर रही? क्योंकि उसके बाद मेरा भाई साहब और भाभी से झगडा जरूर होता है। अब तुम अपनी खबर खाना खाने के बाद देना। ''
''पर खबर तो तब तक बासी हो जायेगी या मैं भूल जाऊंगी। आप खाना खाते रहो मैं सुनाती रहूँ-''वह अपना हाथ ऐसे घुमा रही थी जैसे अंपायर चौके का संकेत देता है। सुबह अपनी गर्दन घड़ी की तरह घुमाने के व्यायाम और बाद में हाथ को चौके के संकेत देने की तरह हिलाने के दौरान वह जब बात करती है तो वह मजेदार होतीं है।

मैंने कहा-''क्रिकेट के खिलाड़ी बिक गए, यह मालुम है। तुम्हारा भईया बता रहा था।पर इससे मेरा क्या?''
''आप भी तो क्रिकेट खेलते थे।''वह बोली-''अब दुबारा खेलना शुरू करो।
मैंने कहा-''अब वह नहीं हो सकता। तुम्हारी मम्मी ने मेरा बल्ला कबाड़ में बेच दिया।''
पास बैठ कर टीवी देख रही भाभीजी बोली-''वह तो टूट गया था भईया। मैंने आपकी मम्मी से पूछकर बेचा था। आप नया बैट खरीद लो।''
भतीजी बोलली-''पहले बोली तो लग जाये फिर तो चाचा एक क्या दस बैट खरीद लें। पहले चाचा का सौदा तो हो जाये।''
तब तक भतीजा अन्दर आ गया और बोला-''छि:, कितनी खराब बात करती है। हमारे चाचा अगर बिक गए तो हमें पढाएगा कौन। हमारी वजह से मोहल्लों वाले से लड़ेगा कौन?''
अब तो भाभाजी की भी चिंता बढ़ गयी--''हाँ, पागल हो गयी है चाचा के बिकने की बात करती है। यह तेरा ढंग है बात करने का? वैसे भी मशहूर खिलाड़ी बिक रहे हैं, तुम्हारे चाचा को बहुत समय हो गया क्रिकेट छोडे।''

भाभीजी खाना लेने चली गयी तो मैंने भतीजी से कहा-''अब मैं ब्लोग पर लिखूंगा और तुम मुझे डिस्टर्ब मत करना।''
हाँ, चाचाजी''-वह एकदम उछलकर बोली-''यह आप इस पर लिखते हो। क्या नाम बताया ब्लोग। उस पर लिखने वालो को क्या कहते हैं। और क्या वह नहीं बिक सकता?''

मैंने भतीजी को घूरकर देखा तो वह झेंप गयी-''मेरा मतलब है। आपका लिखा भी तो बिक सकता है।''
मुझे हंसी आ गयी-''जिस पर लिखता हूँ वह ब्लोग है और मैं ब्लोगर हूँ। अभी इंटरनेट न होने से मैंने लिखा ही कहाँ था और अब तो नया हूँ। पर यह पता नहीं है कि ब्लोग बिक सकता है कि ब्लोगर।''
तब तक भाभी थाली में खाना लगाकर आ गयी तो भतीजी बोली-''मम्मी, चाचा तो ब्लोगर हैं।
भाभीजी ने गुस्से में पूछा-''तो?''
तब तक भतीजा बोला-'' दीदी कह रही हैं कि किसी भी तरह बिक जाओ ताकि स्कूल में अपने चाचा का रुत्वा दिखा सके। ''
भाभी बोली-''तुमने चाचा को लिखने का मौका कहाँ दिया। अब जब इनको विज्ञापन मिलेंगे तब कुछ मिलेगा। वैसे क्या अपने चाचा से मिलने वाला जेब खर्च तुम लोगों को कम पड़ रहा है जो इनको बिकवाने पर तुले हो।''

''मम्मी, आपको पता है विज्ञापनों से यह खिलाड़ी नहीं कमा रहे थे जो बिक रहे हैं-''भतीजी अब खुलकर ज्ञान बघारने लगी थी-''अब तो बिकने में ही फायदा है।''
भाभीजी हंसकर बोली--''भईया, अब तो ही झेलो। इनके पापा और तुमने दुनिया भर की बातें करते इन दोनों को अधिक बुद्धिमान बना दिया है।
वह चली गयी तो मैंने भतीजी से पूछा-''पहले तो यह बताओं कि बिकना क्या चाहिए ब्लोग या ब्लोगर?''

वह बोली--'इतनी अक्ल तो अभी मुझे पापा और आपने नहीं दी।''
मैंने भतीजे की तरह देखा तो वह झेंपकर बोला-''चाचा जी कुछ भी बिके। हमारे कंप्यूटर से ब्लोग चला जाये पर अप इस घर से मत जाना, वरना हम परेशान हो जायेंगे। ''
वह खिसक लिया तो मैंने खाना शुरू किया। भतीजी बोली-''वैसे चाचा जी बिकेगा क्या ब्लोग कि ब्लोगर'
मुझे मन ही मन बहुत हंसी आयी और मैंने कहा-''अब मुझे तसल्ली से भोजन करने दो। बिकने की चिंता में उसे बासी मत करो।''

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