जिन्होंने किया लोगों पर राज
पहने सिर पर हीरे से जड़े ताज
अपनी करनी पर किया नाज
गिरे हैं वही जमीन पर
बैठे जो दौलत के ढेर पर
सवारी करते क्रूरता के शेर पर
पहरा देते लोगों के छीने हकों को घेर कर
वक्त का पहिया जब घूमा है जब
गिरे हैं वही जमीन पर
जो चले हैं सत्य के सहारे
अपनी जिन्दगी के लिए
जो कहीं मदद के वास्ते नहीं निहारे
दृष्टा बनकर सब देखते हैं
अपने सुख-दुख सारे
जीते हैं आजाद होकर पूरी जिन्दगी
टिके हैं वही जमीन पर
------------------------
ऐसे में कहां जायेंगे यार-हिंदी शायरी
-
*कहीं जाति तो कहीं धर्म के झगड़ेकहीं भाषा तो कहीं क्षेत्र पर होते लफड़ेअपने
हृदय में इच्छाओं और कल्पनाओं काबोझ उठाये ढोता आदमी ने...
16 वर्ष पहले
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें