शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2008

अँधेरे में चलाते तीर-क्षणिकाएँ

अँधेरे में चलाते तीर
कृत्रिम रौशनी के वीर
निशाने पर नहीं लगे तो
बचने के बहाने अनेक
लग जाये तो तुक्का तो
बन जाते सयाने एक
खाते फिर मुफ्त में पुडी और खीर
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गीतों की महफ़िल सजती हैं
संगीत के शोर में
शब्दों के अर्थ कौन समझता
सुरों में कौन कान बरतता
लोगों को चीखकर कहने की आदत
सुनने से परे कर देती है
रात को करते हैं नशे में गुर्राते हुए
चाय मांगने के लिए किचन की तरफ
देखकर चिल्लाते हैं भोर में
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