गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008

जीवन भी आखिर कबाड़ हो जाता है-हिंदी शायरी

जब भी अवसर मिले
तब प्रार्थना करते हुए याचना करते हैं
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए
भरोसा नहीं है उस परमात्मा पर
जिसने जीवन जीने के लिए
इतने कीमती पल दिए

देह के हर अंग में
बख्शी है वह ताकत
जो हर चीज हासिल कर सके इंसान
कभी न हो बेईमान
पर फिर भी आदमी
पूरी जिन्दगी गुजार देता है
अपने पाँव परमात्मा के घर चक्कर लगाते हुए
हाथ उठाकर मांगते हुए
मन आंखों से अपने प्रयत्नों से
एकत्रित सामान को देखते हुए
भूल जाता है वह अपना कर्तव्य
यहाँ जीना है उसे सबके लिए
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बडे प्रयत्नों से जुटाया हुआ सामान भी
कभी कबाड़ हो जाता है
क्या सोचकर जुटाते हैं सब
अपना खून पसीना क्या
इसी कबाड़ को एकत्रित कर गुजारेंगे
अपने सारे कीमती पल इसके लिए बिगाडेंगे
ऐसा करते हुए हमारा अपना जीवन भी
आखिर कबाड़ का घर हो जाता है
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