शनिवार, 5 जुलाई 2008
खुशी हो या गम-हिंदी शायरी
अपने ही सुर में गा रहा था
उसने कहा
‘तुम बहुत अच्छा गाते हो
शायद जिंदगी में बहुत दर्द
सहते जाते हो
पर यह पुराने फिल्मी गाने
मत गाया करो
क्योंकि इससे तुम्हारे दर्द पर
किसी को रोना नहीं आयेगा
क्यों नहीं नये गाने गाते
शोर सुनकर लोगों के
हृदय में भावनाओं का ज्वार आयेगा
ऐसे ही आंसू बहाने लगेंगे
समझ में कुछ नहीं आयेगा
तुम्हारें अंदर खुशी हो या गम
उसे बेचने का काम शुरू कर दो
क्यों कमाने से हाथ धोये जाते हो
...........................
शनिवार, 7 जून 2008
छिः भतीजी के मौसी-मौसाजी क्रिकेट देखते हैं-हास्य व्यंग्य
इससे पहले मैं कुछ कहता भतीजा बोला-‘इधर हाल में हमारे मौसा और मौसी सो रहे हैं। उनकी नींद टूट जायेगी।’
मुझे हंसी आई और मैने अपना बैग वहीं रख दिया और वही रखी दूसरी प्लास्टिक की चटाई पर बैठकर प्राणायाम करने लगा। हालांकि मैं अक्सर ऐसा नहंी करता पर जब सुबह बाहर जाकर सैर करने का अवसर नहीं मिलता तो यही करता हूं।
भतीजी बोली-‘‘क्या आप आराम नहीं करोगे।’’
मैने कहा-‘नहीं ट्रेन में सोता हुआ आया हूं।’’
मेरे संक्षिप्त जवाब उसे परेशान कर देते हैं। जब मैं खामोशी से प्राणायाम करने लगा तो वह बार-बार मुड़कर पीछे देखती। वह शायद अपने मौसी-मौसा के बारे में बताना चाहती थी और मैं उससे इस बारे में कुछ नहीं सुनना चाहता था। एक रात पहले ही मुझे भाई साहब से फोन पर पता लगा गया था कि पूरा परिवार उनके साथ मिलकर क्रिकेट मैच देख रहा था और मैं इसे लेकर ही उसकी मौसी की मजाक उड़ाने वाला था। यह तय बात थी इस पर नोकझोंक होनी थी और सुबह उससे बचने में ही मुझे सबकी भलाई लगी।
इतने में भाभी बाहर आयी और मुझे देखकर बोली-‘तुम कब आये भैया?’’
मैने कहा-‘पंद्रह मिनट पहले।’
भाभी बोलीं-‘भईया, तुम इधर हाल से अंदर मत आना। मेरी बहिन और बहनोई यहां सो रहे हैं। उनकी नींद न टूटे।’
मैने कहा-‘‘नहीं जाऊंगा। हां, अब यही संदेश देने के लिये भाईसाहब को भी भेज देना। वह एक बचे हैं जो यह बात बताने के लिये रह गये हैं। आपसे पहले यह दोनो तो कह ही चुके हैं।’
ऐसा लगा कि भाभी को गुस्सा आया पर शायद अपनी बहिन की उपस्थिति का ख्याल कर वह मुस्कराकर चली गयीं।
भतीजी की योग साधना में खलल पड़ना ही था। वह बोली-‘‘चाचाजी आप तो ऐसी बात करते हो कि गुस्सा आ जाता है। कल वह दोनों क्रिकेट मैच देख रहे थे। फिर बातचीत होती रही और वह देर से सो पाये। इसलिये कह रहे हैं।’
मैने कहा-‘‘छिः तुम्हारी मौसी और मौसाजी क्रिकेट मैच देखते हैं?
अभी तक मेरी तरफ पीठ किये भतीजी और भतीजा दोनो ही एकदम मूंह फेरकर मेरी तरफ बैठ गये। मैं अपना प्राणायाम करने लगा।
भतीजी ने मुझे पूछा-‘‘इसका क्या मतलब?’
मेने कहा-‘‘तुम्हारे पापा कहते हैं न कि अब क्रिकेट भले लोगों का खेल नहीं रहा। उसमें लोग दांव लगाते हैं।’’
भतीजी बोली-‘‘वह तो पहले कहते थे। कल तो वह खुद भी देख रहे थे। यह जरूर कह रहे थे कि मजा नहंी आ रहा।’
मैंने कहा-‘वह कभी सट्टा नहीं लगाते तो मजा कहां से आयेगा? इसमें मजा उसे ही आता है जो इस पर पैसा लगता है यानि जुआ खेलता है।’
भतीजी बोली-‘हमारी मौसी और मौसाजी ऐसा नहीं कर सकते।’
मैंने कहा-‘तू ने पूछा था? जब उठें तो पूछ लेना कितने का सट्टा खेला था।’
भतीजा बोला-‘आप तो ऐसे ही मौसी और मौसा की मजाक उड़ाते हो।’
मैं अंदर चला गया। भतीजी और भतीजा अपनी मौसी और मौसा पर मेरे आक्षेपों को नहीं पचा पाये और जाकर अपनी मां को बता दिया। भाभीजी मेरे पास आयी और बोली-‘‘आपसे किसने कहा कि मेरे बहनोई सट्टा खेलते हैं।’
मैंने कहा-‘‘भईया ही कहते हैं कि आजकल यह खेल सट्टेबाज देखते हैं।’
तब तक किसी तनाव की आशंका को टालने के लिये वहां पधारे भाई साहब बोले-‘‘वह तो पहले कहता था। हां, अब फिर इस खेल में लोगों का आकर्षण बढ़ रहा है। सभी लोग थोडे+ ही सट्टा लगाते है। अधिकतर लोग तो मजे के लिए ही देखते हैं।
भतीजी बोली-‘‘हां, चाचाजी आप ऐसे ही किसी के बारे में कुछ भी कह देते हो।’
मैं चुप रह गया। भाई साहब की साली से अधिक मैं उनके साढ़ू से परिचित था क्योंकि वह मुझसे बड़ा था पर बचपन में कई बार मैं उसके घर गया था। अब भी उससे मेरी मित्रता थी।
भतीजी के मौसी मौसा दोनों उठकर हाल से बाहर आये तो उसके मौसा से मैंने उससे हाथ मिलाया फिर बातचीत में पूछ ही लिया-‘मैच पर कोई दांव वगैरह लगाते हो कि नहीं।’
वह बोला-‘हम कहां ऐसे दांव खेलते हैं। हां, कभी कभार हजार पांच सौ की शर्त लगाते हैं।’
मैंने कहा-‘शर्त भी तो एक तरह का जुआ है।
भाई साहब की साली बोली-‘‘मना करती हूं पर मानते ही नहीं।’
मेरी भाभी, भतीजी और भतीजे का चेहरा फक हो रहा था। मैंने उससे कहा-‘‘हां, जब जीतते होंगे तब कुछ नहीं कहती होगी। जब हारते होंगे तब चिल्लाती होगी।’
भाभी ने अपने बहनोई से कहा-‘चलो आप सट्टा नहीं खेलते पर दोस्तों में भी शर्त लगाना ठीक नहीं है।’
वह बोला-‘‘कभी-कभी लगाता हूं। अब वह भी नहीं लगाऊंगा।’
मैं कंप्यूटर वाले कमरे में आ गया तो पीछे भतीजी और भतीजा भी आया। मैंने भतीजी से कहा-‘‘मैं कंप्यूटर पर कुछ लिखूं? अगर तुम्हारा कोई काम हो तो कर लो। एक बार मैंने लिखना शुरू किया तो फिर हाथ रखने नहीं दूंगा। इंटरनेट के आधे पैसे मैं भी भरता हूं।’
भतीजी ने पूछा-‘‘मगर लिखोगे क्या?
मैंने कहा-‘‘छिः भतीजी के मौसा-मौसी क्रिकेट मैच देखते हैं-यही लिखूंगा।
भतीजी कहने लगी-‘इससे क्या मैच ही तो देखते हैं।
मैंने कहा-‘हां, पर शर्त भी लगाते हैं जो होता तो जुआ ही है।’
भतीजी ने कहा-‘मैं मम्मी और पापा को बताती हूं कि आप ऐसा लिख रहे हो।’
मैंने कहा-‘मैं तुम्हारे लिये भी लिख दूंगा कि तुम भी देखती हो।’
वह बोली-‘मैं क्या करती? वह लोग टीवी देख रहे थे। मेहमान हैं! भला क्या मैं चैनल बदलती। कितना बुरा लगता उनको?’
भतीजा बोला-‘चाचा मेरे लिये कुछ मत लिखना। मैं तो सो गया था।’
भतीजी उससे लड़ती बोली-‘झूठे कहीं के। पूरा मैच देख रहा था और अब चाचा लिख रहे हैं तो अपने को बचा रहा है।’
दोनों आपस में ही उलझ गये और मैं लिखने बैठ गया। मैंने उनको यह बात नहीं बताई कि मैं स्वयं भी कल रात मैच देखने के बाद ही ट्रेन से घर के लिए रवाना हुआ था। वरना अभी तक मुझे अपने बारे में सफाई देनी पड़ती कि मैंने कभी क्रिकेट क्यासी भी विषय पर शर्त न लगाने का व्रत नहीं लिया हुआ है जिसे लेने के लिए मुझे अपने स्वर्गीय दादाजी ने प्रेरित किया था।
शनिवार, 31 मई 2008
मौत के डर बनाए जाते हैं-हिंदी शायरी
लोग बड़ी हस्ती बनने की
दौड़ में जुट जाते हैं
जो होते हैं अक्ल से लंगड़े
वह दर्शकों की भीड़ में बैठकर
ताली बजाए जाते हैं
अपने गम भुलाने के लिये
खुशियों के मनाने चैराहे पर देते धरना
आपस में झगड़ा कर वहां भी
अपने आंसू बहाये जाते हैं
देखते हैं मस्तराम ‘आवारा’
इतने ऊपर है चांद
पर उस पर लपकने के लिए
नीचे ही कई स्वांग रचाये जाते हैं
भागता आदमी जब थक जाता है
तब भी बैचेन रहता है कि
कहीं रौशनी उससे दूर न रह जाये
इसलिये अंधेरे के भय उसे सताये जाते हैं
अपने चिराग खुद ही जलाने की
आदत डाले रहते तो
क्यों गमों का गहरा समंदर
उनको डुबोये रहता
जहां जिंदगी तूफान झेलने की
ताकत रखती है
वहां मौत के डर बनाये जाते हैं
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शुक्रवार, 16 मई 2008
अपने दिल को कहाँ बहलाएँ हम-हिंदी शायरी
रास्ते में अंधेरा हो या रौशनी
हम चलते जायें पर रास्ता
होता नही कभी कम
अपनी ओढ़ी व्यग्रता से ही
जलता है बदन
जलाने लगती है शीतल पवन
महफिलों मे रौनक बहुत है
पर दिल लगाने वाले मिलते है कम
जहां बजते हैं
भगवान् के नाम पर बजते हैं जहाँ ढोल
वहीं है सबसे अधिक होती है पोल
अपने दिल को कहां बहलाएं हम
रविवार, 13 अप्रैल 2008
ख्वाहिशों में अपना दिल न लगाओ-हिंदी शायरी
उसे जंग के मैदान पर ले जातीं हैं
कभी दौलत के लिए
कभी शौहरत के लिए
कभी औरत के लिए
मरने-मारने पर आमादा आदमी
अपने साथ लेकर निकलता है हथियार
तो अक्ल भी साथ छोड़ जाती है
ख्वाहिशों के मकड़जाल में
ऐसा फंसा रहता आदमी जिंदगी भर
लोहे-लंगर की चीजों का होता गुलाम
जो कभी उसके साथ नहीं जातीं हैं
जब छोड़ जाती है रूह यह शरीर
तो समा जाता है आग में
या दफन हो जाता कब्र में
जिन चीजों में लगाता दिल
वह भी कबाड़ हो जातीं हैं
ख्वाहिशें भी एक शरीर से
फिर दूसरे शरीर में घर कर जातीं हैं
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ख्वाहिशों में अपना दिल न लगाओ
वह कभी यहां तो कभी वहां नजर आतीं हैं
एक जगह हो जाता है काम पूरा
दूसरी जगह नाच नचातीं हैं
किसी को पहुंचाती हैं शिखर पर
किसी को गड्ढे में गिरातीं हैं
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शनिवार, 12 अप्रैल 2008
दुनियादारी इसी का नाम है-हिंदी शायरी
उनके जख्म पर लगाओं मरहम
वह फिर भी दिल में बदनीयती और
बुरे इरादे लिये होते हैं
लेते हैं अच्छा नाम
केवल लोगों को दिखाने के लिये
दिल में जमाने को लूटने के
उनके अरमान होते हैं
शरीर का इलाज तो किया जा सकता
पर उनको दवा देना है बेकार
जिनके दिल में खोटी नीयत और
बेईमानी के रोग लाइलाज होते हैं
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शादी से पहले
होते हैं आशिक और माशुका
बाद में बन जाते हैं मियां-बीवी
इश्क हो जाता है हवा
दुनियांदारी इसी का नाम है
जब जरूरतों की जंग
घर को बना देती है टीवी
बुधवार, 2 अप्रैल 2008
अपना दर्द पी जाएं तो अच्छा है-हिंदी शायरी
जो दिल को तसल्ली दे
कोई ऐसा मिला नहीं
जिसको दिया अपना हाल
दिखाने को हमदर्द बनता
फिर जाकर चटखारे लेकर भीड़ में सुनाता
महफिलों में वाह-वाही लूटता कहीं
हमारा दर्द तो हल्का नहीं हुआ
जमाने में बदनाम हो गये हर कहीं
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किसी को अपना दर्द सुनाने से
दिल में ही रखें तो अच्छा है
हमदर्दों से धोखा खाएं
अपना दर्द खुद ही पी जाएं अच्छा है
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रविवार, 30 मार्च 2008
फूलों की खुशबू से नहीं महकता चमन-हिंदी शायरी
दिन रात घर में अपने बडों को
इंसानों से जो खेलते देखते
बड़े भी क्या सिखाएं छोटों को
अपने बडों से ही सीखे क्या
बस जिन्दगी एक नौकरी या व्यापार
जिसमें समेटो दौलत और शौहरत अपार
जमाने के बिगड़ जाने की शिकायत में
करते हैं अपना वक्त बरबाद लोग
अपने चाल, चरित्र अपने चेहरे नहीं देखते
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फूलों की खुशबू से नहीं महकता चमन
आदमी के मन में बसी है
बस कुछ पाने की ख्वाहिश
नहीं चाहता अमन
अंधी दौड़ में भाग रहा हैं
अपने दिल और शरीर का करता है दमन
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शनिवार, 22 मार्च 2008
इंसान यूं ही चलता जाता-हिंदी शायरी
कुछ होते हैं अफ़साने
जिन्दगी का कारवां बढ़ता जाता
जिनसे करते हैं खुशी की उम्मीद
वही दे जाते हैं धोखा
गैरों से ही तब आसरा मिल जाता
अपनों के बीच गुजाते फिर भी जिन्दगी
चाहे कोई भरोसा नजर नहीं आता
मन पर मजबूरियों का बोझ उठाये
इंसान यूं ही चलता जाता
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ढकोसलों को कहते हैं पूजा
मानते हैं एक को घर ढूँढें दूजा
आदमी का दिल भटकता है इधर उधर
इतनी बड़ी देह फिर भी लगता चूजा
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शुक्रवार, 21 मार्च 2008
होलिका दहन तो होता है हर साल-हिंदी शायरी
उड़ते हैं रंग और सब जगह
सजते हैं पकवानों के थाल
लोग शराब और भांग के नशे में
झूमते-झूमते हो जाते निढाल
वर्षों से जल रही हैं होलिका
पर आज के प्रह्लादों को जलाने
हर साल फिर एक नयी चादर ले आती
कहीं शराब को कर देती जहर
कहीं गाड़ियों को आपस में
टकराकर ढहाती है कहर
शराब की बोतलों और तंबाकू के
पाऊचों की चादर के नीचे ला दिए
गाँव और शहर
खेलने के लिए डाले रंग तो
धुल जाते हैं
पर जो होते इस दिन घाव वह
कर देते हैं जिन्दगी बदहाल
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शनिवार, 15 मार्च 2008
मय और जिन्दगी-हिंदी शायरी
अपने गम को भुला आते हैं
पर उतर जाता है जब नशा
तो फिर गम और ज्यादा सताते हैं
महफिलों में मय बंटती है अमृत की तरह
पीकर लोग बहक जाते हैं
जाम की कुछ बूंदों में ही
भद्र लोगों के नकाब उतर जाते हैं
देखा 'मस्तराम आवारा'' ने
दर्द कुछ देर दूर चला जाये पर
मिटा नहीं सकता कभी उसे जाम
आंतों की ऊर्जा जो जिन्दगी में
लड़ने के लिए होती है बेहद जरूरी
उसका हो जाता है काम तमाम
जिस दर्द को हवा हुआ समझते हैं
मय को पीकर
वह दिल में जमा हो जाते हैं
और फिर किसी दिन आते हैं
तूफान की तरह
आदमी की जिन्दगी को साथ ले जाते हैं
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शुक्रवार, 14 मार्च 2008
हमदर्दी की तारीख-हिंदी शायरी
अब मजाक लगता है
जिन पर जख्म होते हैं
वह उन पर रोते हैं
जब भूलते हैं तो
याद दिला कर जख्म करने वाले भी
इस दुनिया कम नहीं होते हैं
तारीखों को अब बदला जा रहा है
जिन पर हो सकता है गर्व
उनको भुलाया जा रहा है
जिन पर है सब कुछ
वह क्या जाने उनको जिन्होंने दर्द झेले हैं
समाज को बचाने की खातिर
उनके नामों को तारीखों से
हटाया जा रहा है
कभी लगता है कि
तारीख में झूठ भी लिखा जाता है
अपने हिसाब से याद दिलाया जाता है
जिसके बस में है ताकत
गरीबों के जख्मों की तारीख को
उनकी हमदर्दी दिखाने के लिए बनाया जा रहा है
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मंगलवार, 11 मार्च 2008
दिल की बहियों से नाता तोड़ लिया है-हिंदी शायरी
पर फिर भी रिश्तों की खुशबू से
क्यों नहीं महकते हैं
अपने लिए ही जी रहा है हर कोई
दूसरे के दर्द का किसी को नहीं होता अहसास
छत पर नहीं डालते दाना
फिर भी भूखे ही पक्षी चहकते हैं
करते हैं सब लोग एक दूसरे के
वफादार होने की कोशिश
मौका पड़ने पड़ने पर
नदारत रहते हैं
अब कोई नकाब नहीं लगाता चेहरे पर
अदाओं से ही सभी अभिनय करते हैं
अपने अकेलेपन को सब जानते हुए भी
लोग दिलाते हैं यकीन सहारे का खुद
दूसरों से उम्मीद के वहम भी अच्छी लगते हैं
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हमने रात को तकिया रखकर सोना छोड़ दिया है
दूसरों के भरोसे से मुहँ मोड़ लिया है
वफ़ा और धोखे के हिसाब कौन रखे
अपने दिल की बहियों से नाता तोड़ लिया है
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सोमवार, 10 मार्च 2008
खर्च और तोहफों का हिसाब-दो हिंदी क्षणिकाएँ
बहुत जोर-शोर से मनाया
कार्यक्रम ख़त्म होते ही
लगाने लगे हिसाब तोहफों का
तय करने में लगे रहे कि
अब उन लोगों के बच्चों के
जन्म दिन पर नहीं जायेंगे
जिनके घर से तोहफा नहीं आया
एक वर्ष का बच्चा रो-रहा था
ताकि कोई उसे पुचकार कर सुलाए
पर उसे पडी डांट
बडों की महफ़िल सजी रही
रोते-रोते बच्चा सो गया
फिर बडों ने खर्च और तोहफों का हिसाब लगाया
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उन्होने तय किया कि
मकान का मुहूर्त
बच्चे के जन्म दिन पर ही करेंगे
गृहप्रवेश पर तोहफा न देने वाले भी
बच्चे जन्म दिन पर कुछ न कुछ तो
अपने लिफाफे में भरेंगे
इस तरह से ही खर्च और तोहफों से ही
पार्टी के बजट को संतुलित करेंगे
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रविवार, 9 मार्च 2008
इज्जत तो है सिक्कों की-हिंदी शायरी
चलते रहना है जब
किसी का इन्तजार क्या करना
कहीं मिलेगी नफरत तो कहीं प्यार भी मिलेगा
कहीं होगी काँटों की चुभन
कहीं होगी फूलों की सुगंध
कोई तो निभाएगा विश्वास
कहीं धोखे भी होंगे
फिर रंग देखा क्या खुश होना
बदरंग चेहरों से क्या डरना
जो किसी का इन्तजार करेंगे
तो कोई नहीं आयेगा
पीछे रह जायेंगे हम
ज़माना आगे बढ़ जायेगा
दुनिया में फिर एक मजाक बनेंगे
चल पड़े अपनी राह पर तो
लोग देंगे पीछे से आवाज
पर चलते जाना अपनी राह
कहीं होंगे अकेले
कहीं मिलेंगे मेले
वक्त के साथ चलने की रखना चाह
भीड़ में शुमार होकर मत खोना अस्तित्व
अलग रखना व्यक्तित्व
औरों की मिसाल पर क्या गौर करना
अपनी मिसाल खुद तुम बनना
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जब तक खाली थी जेब
दोस्त ढूँढने पर भी मिले नहीं
जब से दस्तक दी है चंद सिक्कों ने दरवाजे पर
रोज कोई मिलने चला आता है
कोई दोस्त बनता है कोई भाई
नाम रिश्तों के बना जाता है
हम जानते हैं इज्जत तो है सिक्कों की
हम भला जमाने में ठहर पाते कहीं
चलता रहेगा शब्दों का मेला-हिंदी शायरी
इंटरनेट पर भी शब्दों को मेला लगेगा
कोई रोग पर लिखेगा
कोई योग पर लिखेगा
कोई भोग पर लिखेगा
कोई सहयोग पर लिखेगा
कोई संभोग अपनी माया रचेगा
कुछ लिखेंगे फूल की तरह
कुछ चुभोएँगे शूल की तरह
पढ़ने के लिए लोग भी होंगे उन जैसे
पर फिर भी सब वैसा नहीं लगेगा
भोग के लिए मन बहलाने
निकला होगा कोई शख्स ढूँढने शब्द
टकरा गया कहीं योग के शब्द तो
बदल सकता है भाव भी
आ सकता है ताव भी
पर शब्दों का खेल चलता रहेगा
पढ़ना चाहता होगा कोई संभोग पर
आ गया कोई सहयोग का उपासक शब्द
तो चाल बदल भी सकती है
साँसें भड़क भी सकती है
मस्तराम आवारा देख रहे हैं
कुछ असली है और कुछ नकली है
छद्म नाम और चेहरों का है मेला
एक नाम से दे सकता है कोई राम का सन्देश
दूसरे से भड़का सकता है काम का आवेश
कुछ पता नहीं लगेगा
चलता रहेगा इस तरह इंटरनेट पर शब्दों का मेला
जैसा गुरु होगा वैसा ही होगा चेला
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शनिवार, 8 मार्च 2008
बेवफाई के नहीं होते वार-हिंदी शायरी
नीचे खड़ी गरीबों से खौफ खाते हैं
संभाल सके लोगों की भीड़ को
तमाम तरह के बहाने गढ़कर
ऐसे दलालों के सहारे लिए जाते हैं
बनते हैं लोग अपनी अलग-अलग पहचानों में
लड़ने की बात सामने आये तो
छिप जाते हैं अपने-अपने खानों में
भ्रम फैलाने वाले मुद्दों पर
सब बहस किये जाते हैं
और समाज के शिखर पर
पीढियों के नाम लिख जाते हैं
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मोहब्बत है नाम पर धोखे हजार
फिर भी खाते हैं बार -बार
अगर आँखें होती तो
नाम मोहब्बत नहीं होता
बेवफाई के नहीं होते वार
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हर सुबह को समझो नई-हिंदी शायरी
सुबह को कर अब बात नयी
जो पल बीत गया, सो बीत गया
उसे हर हाल में भूलना होगा सही
याद रखने से कोई नहीं है फायदा
वायदे निभाने का नहीं कोई कायदा
समय हमारे रुकने से तो रुक नहीं जायेगा
जो खोये रहे यादों में तो
ज़माना हमसे आगे निकल जायेगा
दिन बहुत लंबा है
पर सुबह का यह खूबसूरत पल
आज फिर वापस नहीं आएगा
इसलिए हर सुबह को समझी नई
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शुक्रवार, 7 मार्च 2008
अमन और शांति की बात-हिंदी शायरी
हमने भेजा था सुलह का पैगाम
जवाब में किया उन्होने
कलह जारी रखने का एलान
अमन की बात करो तो लोग
बेदम समझने लगते हैं
आख्नें तरेरो और चीखो तो
भागने लगते हैं
खेल में खेलते जंग की तरह
जंग लड़ते हैं हमेशा बेवजह
फिर भी मिलती शांति प्रवर्तक की उपाधि
और बहुत सारा इनाम
फिर क्यों कोई भलेमानस
कभी मानेगा शांति का पैगाम
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तुम्हारे दिल में जब आ जाये अमन
हमें खबर तत्काल खबर कर देना
तुम्हारी खैर से ही होती हमको तसल्ली
तुम्हारा दर्द कर देता बैचैन
यह भी तुम समझ लेना
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गुरुवार, 6 मार्च 2008
भलाई का इन्द्रजाल-हिंदी शायरी
पर ऐसा करते नजर आते
उन्हीं की प्रशंसा में लोग
तारीफों के पुल बांधे जाते
फिर करते जमाने के बिगड़ने की शिकायत
जिसे अपने हाथो से बिगाड़े जाते
करते हैं जो बिना आवाज के
बेसहारा लोगों की मदद
वह खुद ही परिदृश्य में नजर नहीं आते
देते हैं जो दूसरे के टूट रहे जीवन को सांस
वह फोटो खिंचवाने नहीं आते
पर लोग भी कौन उनको देखने की
चाह रखते
उन्हें बस धोखे ही पसंद आते
हाथ में नहीं रखते जो एक रूपये का सिक्का
उसके प्रशंसक बन जाते
दृश्य आंखों के पार नहीं होते
ऐसे ही भलाई के इंद्रजाल को देखकर
प्रशंसा के पुल बांधे जाते
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मंगलवार, 4 मार्च 2008
दिन का उजाला और रात का अँधेरा-हिंदी शायरी
रात को जगमगाती हुई रौशनी में
जो सुन्दर लगता है
दिन के उजाले में सूर्य की रौशनी में
वही असुंदर लगता है
इसलिए काले कारनामे करने वाले
ढूंढते हैं रात का अंधियारा
जिनको बेचना है नकली सौन्दर्य
वह सूरज डूबते ही करते हैं
नकली रौशनी का इशारा
भले आदमी की दिन में खुली न हों
पर रात के उनके खुले होने का
ख़तरा काम ही लगता है
मस्तराम आवारा ने देखा है
दिन का उजाला और रात का अँधेरा भी
यह भी देखा है जो दिन का उजाला देखते हैं
जो लोग खुली आंखों से
रात को भी उनकी अक्ल का पर्दा खुला लगता है
इसलिए चालाकियों का खेल
उनसे कभी नहीं चल सकता है
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रविवार, 2 मार्च 2008
मोहब्बत और तोहफे-हिंदी शायरी
तोहफों को ही लोग मोहब्बतों का सबूत माने
इश्क और प्यार पर लिख कर चंद शेर
शायरों ने खूब नाम कमाया
आशिकों ने भी उनका रीमिक्स खूब गाया
पर तोहफों के बेचने वाले सौदागरों ने
इस पर खूब नामा कमाया
आशिकों की जेब हुई खाली तो क्या
इससे बदले नहीं मोहब्बत के मायने
जमाना बदला पर बदली नहीं मोहब्बत
आंखो के इशारे से मोहब्बत इजहार करने की जगह
आया ख़त लिखने का ज़माना
ख़त से टेलीफोन और
फिर आया मोबाइल का ज़माना
अब तो खुला है बाजार
खुल कर करो मोहब्बत
बदनामी से कौन डरता है
जो डर गया उसे लोग जवान बूढा माने
पहले बाजार में मोहब्बत
करने वाले डरते थे
अब खुले में लगे हैं अपने जजबात दिखाने
मोहब्बतों के तोहफों का विज्ञापन होता है
सिमट गयी है मोहब्बत औरत-मर्द के इर्द-गिर्द
मासूम और गरीब तो है हाशिये पर
मोहब्बत हैं वही जिसे ज़माना नहीं बाजार माने
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कोई आंसू नहीं पौंछेगा-हिंदी शायरी
तो और कोई और क्यों रखेगा
जो रहनी थी दिल में उस पर जग हँसेगा
हमदर्द बहुत होते हैं बहुत इस जहाँ में
पर दिल का दर्द कोई नहीं समझता
इश्क और प्यार होते हैं पल भर के
इनके धोखे में जलता है बदन बिना आग के
दिल रहता है जिन्दगी पर तडपता
जो करते हैं इश्क वह दिखाते नहीं
करते हैं प्यार वह मांगते नहीं
होश खोकर यकीन करोगे
खाओगे धोका जरूर इक दिन
औंधे मूंह गिरोगे
तुम्हारे जख्मों पर हर कोई हँसेगा
दिल लगाने की नहीं संभालने की चीज है
चंद प्यार भरे शब्दों में मत बह्को
जिन्दगी में कई बार पीछे कदम
लौटाना हो जाता है मुश्किल
अपने यकीन पर धोखा खाकर रोओगे
पर कोई आंसूं नहीं पौंछेगा
जिसे सुनाओगे दर्द वही हँसेगा
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शनिवार, 1 मार्च 2008
आखें खुलीं हैं, पर बंद हैं नजर-हिंदी शायरी
चारों तरफ रास्ता आता है नजर
सभी दौडे जा रहे हैं
अपने मुकाम का पता किससे पूछूं
सभी हैं बदहवास और दर-ब-दर
कोई उठाकर नहीं देखता नजर
भीड़ में सब हैं अकेले
जा रहे हैं सब इसलिए जाते हैं
इस उम्मीद में कहीं तो होंगें
दौलत के मेले
कहीं चूक न जाएं कुछ पाने से
इसलिए हैं सबकी रास्ते में आगे ही नजर
बरसों से लोग दौड़ रहे हैं
अपनी मंजिल का पता नहीं
पर कोई और न ले जाये कुछ कहीं
हम पहले झपट लें मौका
ऐसी है सबकी नजर
पर किसने पाया
कोई क्या ले गया
सब टूटे-बिखरते जिंदा आते हैं नजर
बोलते सब हैं, पर निरर्थक शब्द
अक्ल से परे हैं, सोचते कुछ नहीं
आखें खुलीं है, पर बंद है नजर
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जमाने को दोष देते हैं-हिंदी शायरी
थे बड़ी संख्या में
करता रहा आदमी उसका शिकार
अब नहीं है तो
अब एक दूसरे को रहे हैं मार
जिन हवाओं को पीते थे पेड़-पौधे
काट-काटकर किया उनको तबाह
आदमी अब रहता है बीमार
दोष देते हैं जमाने को लोग
जबकि उनके अंदर ही हैं विकार
अपनी हालातों के लिए खुद ही ज़िम्मेदार
दूसरे को रहे हैं धिक्कार
सात्विक लेखन से हिंदी प्रतिष्ठित होगी-विशेष लेख
उस दिन जब एक ब्लोग पर मस्तराम के बारे में विवादास्पद चर्चा को पढा और उसमें अपने ब्लोग को देखा तो मैंने अपनी आपत्ति दर्ज कराई और उनके लेखक ने खेद जताया। यह मुद्दा ख़त्म हो गया पर बीच-बीच में जब मैं अपने ब्लोग को सर्च कर देखता हूँ तो मेरे से अलग मस्तराम का ब्लोग मेरे सामने आता है। मैंने उसे कई बार यह सोचकर खोला की देखूं उसमें कोई नई सामग्री आई है तो उसके ब्लोगर को कमेन्ट लिखकर कहूं कि कुछ अच्छा लिखे। उस दिन मैंने उसे ध्यान से देखा उसमें कई प्रकार की ऐसी सामग्री मेरे सामने आई जो मेरे विचार से निरर्थक थी। उस ब्लोग पता नहीं उसे इतनी प्रसिद्धि मिली हुई है। उस पर आखरी सामग्री लिखे हुए ही सवा दो साल से अधिक हो गया है। अब उस पर लिखा है कई लोगों ने दिखा होगा। उसमें जो लिखा है वह मैं यहाँ नहीं लिख सकता। मेरे लिए उसमें निरर्थक सामग्री है। उसमें जो कमेन्ट लिखीं हुईं है वह भी लगभग वैसी हैं जैसी उसकी सामग्री।
मैंने मस्तराम के नाम पर अधिक खोजबीन की तो लगता है कि कोई एक मस्तराम नहीं है और जिस ब्लोग की हम चर्चा कर रहे हैं वह भी वेबसाईट पर मस्तराम के नाम की लोकप्रियता का लाभ उठाने की दृष्टि से बनाया गया लगता है। एक संभावना मुझे लगती है कि हिन्दी को अंतर्जाल पर लोकप्रिय बनाने की दृष्टि से यह ब्लोग बनाया गया क्योंकि यह मान लिया गया होगा कि लोग इसी तरह की सामग्री अंतर्जाल पर ढूंढते हैं और हिन्दी में लिखकर उसके लिए पाठक ऐसे ही जुटाए जाएं। बाद में जब अन्य विषयों पर भी हिन्दी के पाठकों का आना शुरू हो गया तो इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया हो। इसका लेखक आज भी अपने बीच में अपने असली नाम से लिखते हुए सक्रिय रहने वाला भी हो सकता है। वजह यह उस समय का लिखा हुआ है जब हिन्दी टूलों के बारे में कोई जानता तक नहीं था। उसमें जो लिखा है वह अशोभनीय है और अगर कोई इसे बनाकर भूल गया हो और अब अच्छा लिख रहा है उसे इस पर ध्यान देकर इसे हटाने का विचार करना चाहिऐ। वैसे हर कोई अपनी मर्जी का मालिक है पर इसमें यह भी देखना चाहिऐ कि उसका दूसरों पर क्या प्रभाव पड़ता है। हाँ मेरे से ऐसी रचनाओं के अपेक्षा करना बेकार होगा। एक बात मजेदार हो सकती है कि कुछ लोगों को यह लगेगा कि अब यह मस्तराम अब बदल गया है और साहित्य लिख रहा है हालांकि जब मेरा नाम मस्तराम 'आवारा' पढेंगे तो यह भी समझ लेंगे कि यह कोई और व्यक्ति है. यह भी हो सकता है कि उस सामग्री के पढ़ने वाले अब मेरी सामग्री पढ़कर हिन्दी में अच्छा लिखा जा रहा है यह देखकर अब अच्छे विषयों से सर्च करने लगें.
ऐसा नहीं है कि मुझे कोई डर है बल्कि लोग मुझे भी पढेंगे और मेरी रचनाएं छोटीं हो और साहित्य जैसा सौदर्य उनमें न हो पर वह निरर्थक नहीं है। फिर में आगे भी बहुत लिखने वाला हूँ और पाठक संख्या बढ़ती जा रही है और आगे भी बढ़ जायेगी। अभी तक किसी ने यह नहीं कहा कि तुम बुरा लिखते हो।
अपने ब्लोग पर अपने प्यार का नाम 'मस्तराम' का उपयोग करते हुए मुझे इस बात का पता नहीं था की कोई और भी मस्तराम है। मैंने आज तक किसी मस्तराम से कोई प्रसिद्ध नाम नहीं सुना है पर इस बात का अनुमान था की अपना देश बहुत व्यापक है इसलिए कई क्षेत्रों में सम्मानित लोग हो सकते हैं क्योंकि यह आदमी के मस्त और सरल स्वभाव के कारण उनकी पहचान बन जाता है। मैंने सोचा चलो अखिल भारतीय छबि बनाने ले लिए यह नाम मेरे लिए ठीक ही बैठता है।
उस दिन जब एक ब्लोग पर मस्तराम के बारे में विवादास्पद चर्चा को पढा और उसमें अपने ब्लोग को देखा तो मैंने अपनी आपत्ति दर्ज कराई और उनके लेखक ने खेद जताया। यह मुद्दा ख़त्म हो गया पर बीच-बीच में जब मैं अपने ब्लोग को सर्च कर देखता हूँ तो मेरे से अलग मस्तराम का ब्लोग मेरे सामने आता है। मैंने उसे कई बार यह सोचकर खोला की देखूं उसमें कोई नई सामग्री आई है तो उसके ब्लोगर को कमेन्ट लिखकर कहूं कि कुछ अच्छा लिखे। उस दिन मैंने उसे ध्यान से देखा उसमें कई प्रकार की ऐसी सामग्री मेरे सामने आई जो मेरे विचार से निरर्थक थी। उस ब्लोग पता नहीं उसे इतनी प्रसिद्धि मिली हुई है। उस पर आखरी सामग्री लिखे हुए ही सवा दो साल से अधिक हो गया है। अब उस पर लिखा है कई लोगों ने दिखा होगा। उसमें जो लिखा है वह मैं यहाँ नहीं लिख सकता। मेरे लिए उसमें निरर्थक सामग्री है। उसमें जो कमेन्ट लिखीं हुईं है वह भी लगभग वैसी हैं जैसी उसकी सामग्री।
मैंने मस्तराम के नाम पर अधिक खोजबीन की तो लगता है कि कोई एक मस्तराम नहीं है और जिस ब्लोग की हम चर्चा कर रहे हैं वह भी वेबसाईट पर मस्तराम के नाम की लोकप्रियता का लाभ उठाने की दृष्टि से बनाया गया लगता है। एक संभावना मुझे लगती है कि हिन्दी को अंतर्जाल पर लोकप्रिय बनाने की दृष्टि से यह ब्लोग बनाया गया क्योंकि यह मान लिया गया होगा कि लोग इसी तरह की सामग्री अंतर्जाल पर ढूंढते हैं और हिन्दी में लिखकर उसके लिए पाठक ऐसे ही जुटाए जाएं। बाद में जब अन्य विषयों पर भी हिन्दी के पाठकों का आना शुरू हो गया तो इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया हो। इसका लेखक आज भी अपने बीच में अपने असली नाम से लिखते हुए सक्रिय रहने वाला भी हो सकता है। वजह यह उस समय का लिखा हुआ है जब हिन्दी टूलों के बारे में कोई जानता तक नहीं था। उसमें जो लिखा है वह अशोभनीय है और अगर कोई इसे बनाकर भूल गया हो और अब अच्छा लिख रहा है उसे इस पर ध्यान देकर इसे हटाने का विचार करना चाहिऐ। वैसे हर कोई अपनी मर्जी का मालिक है पर इसमें यह भी देखना चाहिऐ कि उसका दूसरों पर क्या प्रभाव पड़ता है। हाँ मेरे से ऐसी रचनाओं के अपेक्षा करना बेकार होगा। एक बात मजेदार हो सकती है कि कुछ लोगों को यह लगेगा कि अब यह मस्तराम अब बदल गया है और साहित्य लिख रहा है हालांकि जब मेरा नाम मस्तराम 'आवारा' पढेंगे तो यह भी समझ लेंगे कि यह कोई और व्यक्ति है. यह भी हो सकता है कि उस सामग्री के पढ़ने वाले अब मेरी सामग्री पढ़कर हिन्दी में अच्छा लिखा जा रहा है यह देखकर अब अच्छे विषयों से सर्च करने लगें.
ऐसा नहीं है कि मुझे कोई डर है बल्कि लोग मुझे भी पढेंगे और मेरी रचनाएं छोटीं हो और साहित्य जैसा सौदर्य उनमें न हो पर वह निरर्थक नहीं है। फिर में आगे भी बहुत लिखने वाला हूँ और पाठक संख्या बढ़ती जा रही है और आगे भी बढ़ जायेगी। अभी तक किसी ने यह नहीं कहा कि तुम बुरा लिखते हो। हाँ यह भी हो सकता है कि लोग मेरा पढ़कर यह सोचने लगें कि अब यह मस्तराम बदल गया है, पर मेरा नाम मस्तराम 'आवारा'पढ़कर समझ लेंगे कि यह कोई अलग व्यक्ति है. वैसे भी मस्तराम के नाम से कुछ अन्य भले लोग भी भली सामग्री के साथ मौजूद होंगे ऐसा मुझे लगता है. जो लोग ऐसी-वैसी सामग्री पढ़ने के लिए आते हैं और जब हिन्दी में अच्छे विषयों को लिखा देंगे तो हो सकता है कि उनकी मानसिकता बदल जाये और वह अन्य विषयों से भी सर्च करने लगें। मैंने फोरमों पर देखा है कि कई लोग सात्विक विषयों पर लिख रहे हैं और वह हिन्दी को इंटरनेट पर प्रतिष्ठित करने में सफल होंगे।
शुक्रवार, 29 फ़रवरी 2008
अपना बजट तो होता है कड़वे सत्य पर आधारित-हिंदी शायरी
इतना उलझ जाते हैं
किसी और के बजट पर
सोच ही कहाँ पाते हैं
दाल, गेहूँ ,चावल, नमक और शक्कर
इनके इर्द-गिर्द ही चलता है अपना चक्कर
रेल में तो कभी कभार जाते हैं
घर के खेल में उलझे होते हैं ऐसे कि
देश के अर्थ के बजट से कभी अपने अर्थ
जोड़ने की तो फुरसत ही कहाँ पाते हैं
अपना बजट तो होता है
कड़वा सत्य पा आधारित
आंकडों से सजे बजट
हम समझ कहाँ पाते हैं
---------------------
गुरुवार, 28 फ़रवरी 2008
जिन्दगी वही जीते हैं-हिंदी शायरी
संजोने रहोगे सपने
जो कभी नहीं होते अपने
सोते हुए सपने कभी डरा देते हैं
दिन को जो देखे, वह जिन्दगी से हरा देते हैं
अपने हर पल पर नजर रखो
जिन्दगी कितनी भी कठिन हो
लड़ना तुमको है
उत्साह से लडो या निराशा से
सपने कभी पार नहीं लगा देते हैं
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इस जीवन पथ पर
चलना सभी को है
कायर हो या वीर
कुछ यहाँ बैलों की तरह भी चलते हैं
कुछ बनते हैं सारथी और कुछ राजा
खो देते हैं अपने कीमती पलों को
जल्दी-जल्दी तरक्की की खातिर
पर जिन्दगी वही जीते हैं जो होते धीर-गंभीर
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जीवन भी आखिर कबाड़ हो जाता है-हिंदी शायरी
तब प्रार्थना करते हुए याचना करते हैं
अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए
भरोसा नहीं है उस परमात्मा पर
जिसने जीवन जीने के लिए
इतने कीमती पल दिए
देह के हर अंग में
बख्शी है वह ताकत
जो हर चीज हासिल कर सके इंसान
कभी न हो बेईमान
पर फिर भी आदमी
पूरी जिन्दगी गुजार देता है
अपने पाँव परमात्मा के घर चक्कर लगाते हुए
हाथ उठाकर मांगते हुए
मन आंखों से अपने प्रयत्नों से
एकत्रित सामान को देखते हुए
भूल जाता है वह अपना कर्तव्य
यहाँ जीना है उसे सबके लिए
-------------------------------
बडे प्रयत्नों से जुटाया हुआ सामान भी
कभी कबाड़ हो जाता है
क्या सोचकर जुटाते हैं सब
अपना खून पसीना क्या
इसी कबाड़ को एकत्रित कर गुजारेंगे
अपने सारे कीमती पल इसके लिए बिगाडेंगे
ऐसा करते हुए हमारा अपना जीवन भी
आखिर कबाड़ का घर हो जाता है
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बुधवार, 27 फ़रवरी 2008
जो अपने थे कभी अजनबी हो जाते हैं-हिंदी शायरी
दिल में खिल रहा है खुशी का चमन
कभी घेर लेता है तनावों का सिलसिला
पर किससे और क्यों करें कोई गिला
अपनी ही गलतियों का जिम्मा लोग
डालते हैं दूसरों पर
क्या यकीन करेंगे हम पर
हमारे गम पर लोग हँसते हैं
खुशी देख कर जलते हैं
इसलिए अच्छा है हम रखें अमन
---------------------------------
चेहरे नहीं बदलते पर लोगों के
कभी दिल बदल जाते हैं
यह आदमी नहीं वक्त का खेल है कि
जो अपने थे कभी अजनबी हो जाते हैं
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मंगलवार, 26 फ़रवरी 2008
मैं मस्तराम 'आवारा' हूँ, गलती सुधारिए
आज समझ में आ रहा है कि इतने पाठक कहाँ से आ रहे हैं? मुझे यह ब्लोग खोले दस महीने से अधिक हो गया है और मुझे तो अब पता लगा कि कोई और भी मस्तराम है। वह जो हैं वह जाने पर मैं नहीं हूँ। कृपया कर मेरे वेब पेज का लिंक अपने ब्लोग से हटा लें। यार, ऐसे ही किसी भले आदमी को बदनाम मत करो। लिंक देने से पहले मेरा ब्लोग पढ़ तो लेते। उसमें ऐसा कुछ नहीं है। हाँ अगर इस तरह की रचनाएं चाहते हों तो कहीं से प्रायोजक दिलवाओ तो मैं भी लिख सकता हूँ पर उसमें भी बदतमीजी नहीं होगी। वह रचनाएं गुदगुदाएंगी पर उसमें अश्लीलता नहीं होगी। सभ्रांत लोग उसे पढ़कर शमिन्दा नहीं होंगे। आज अच्छा खासा व्यंग्य कवितायेँ लिखने का मन लेकर आया था पर मूड ही खराब हो गया।कम से कम मुझसे पूछ तो लिया होता। यह नारद। ब्लोग्वानी और चिट्ठाजगत पर लिंक ब्लोग है। ताज्जुब हैं इसे लोग नहीं समझ पाए। आशा है सब लोग समझ जायेंगे। मैं अपने मस्तराम नाम से लिखता रहूँगा। जिन्हें पढ़ना हैं पढें नहीं पढना हैं न पढें, पर इसमें केवल उनको हास्य व्यंग्य,कहानी, और कविताओं के अलावा और कुछ नहीं मिलेगा। आपको उन मस्तराम को पढ़ना हैं तो उसका ब्लोग अपने यहाँ सैट कर लें नहीं तो मेरा ब्लोग खोलकर ख्वाम्ख्वाह परेशान होंगे। एक बात याह रखना ऐसी रचनाओं को पढ़ते बहुत लोग हैं पर समाज में चर्चा केवल साहित्य से संबंधित रचनाओं की होती है।
मेरे दो ब्लोग यह हैं
मस्तराम की आवारा डायरी http://mastrama.blogspot.com
मस्तराम का दर्शन और साहित्य http://mastram-zee.blogspot.com
जमाने को बदलने की बात कौन करेगा-हिंदी शायरी
परिश्रम कोई क्यों करेगा
तोड़ने की आवाजें
बुलंद होती हैं जहाँ
रचना का विचार कौन करेगा
खिलवाड़ होता हो भावनाओं का
किसी का कोई हमदर्द कोई क्यों बनेगा
ए जमाने को दोष देने वालों
तुम भी इसका हिस्सा हो
और ज़माना कोई चार पैर वाला पशु नहीं
जब तुम भी उसकी राह चलते हो
उसको बदलने की बात कौन करेगा
सोमवार, 25 फ़रवरी 2008
दिल के दर्द को और बढ़ा दिया-हिंदी शायरी
तो अपनी शर्तों का पुलिंदा थमा दिया
हमने उनसे माँगा था दर्द उनका दर्द
उन्होने बाहर जाने का रास्ता दिया
पर भी वह खुश नहीं रह सके
अपने दर्दों से वह तड़पते रहे
किसी ने उनका हाल पूछा नहीं
चीखते रहे बहरी दीवारों की पीछे
हमारे दिल के दर्द को और बढा दिया
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मेकअप से उनका सौंदर्य
कितना निखर आता है
पर पसीने की थोडी बूँदें भी
उनकी असलियत बयान कर देतीं हैं
जिसमें वह बह जाता है
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एक सच छिपाने की लिए
कितने झूठ बोले जाते हैं
पर भी सच का रास्ता नहीं रोक पाते हैं
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रविवार, 24 फ़रवरी 2008
कौन सुनेगा संदेश(हिन्दी शायरी)
नगर से महानगर
महानगर से विदेश
भागता जाता है आदमी
मन में लिए आवेश
एक से दस खुशी चाहता है
नहीं जानता उसका वेश
अनंतकाल तक खुश रहने की
ख्वाहिश लिए आदमी हो जाता है दरवेश
कान है पर सुनता नहीं
आँख है पर देखता नहीं
अक्ल पर डाल रखा है
लोभ और लालच का परदा
किसे सुनाएँ और कौन सुनेगा
'संतोषी सदा सुखी' का संदेश
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जो बाजार में बिकता है
वही अच्छा लिखता है
यही सच्चाई है
कोई पढता हो या नहीं
मगर अखबार आप आदमी
खर्चा तो करता है
और उसमें छपा ही तो सभी को दिखता है
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अहसास-(हिन्दी शायरी)
आचार-विचार में दिखावट
सब जगह सम्मान की छटपटाहट
बिकता हैं झूठ यहाँ
चलता हैं भ्रम यहाँ
धोखा देने का क्रम थमता कहाँ
चलते हैं सभी असत्य के पथ पर
बदलाव कभी होता नहीं
बस होती हैं उसके होने की सुगबुगाहट
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अपने खूबसूरत होने का अहसास
तभी तक ठीक रहता
जब तक आईने से चेहरा दूर रहता
जब देखते हैं उसे
लोग दिखावे की बात करते हैं
इसका अहसास होता रहता
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शनिवार, 23 फ़रवरी 2008
अन्तरिक्ष में मकड़जाल बनाया-हिन्दी हास्य शायरी
जमीन पर बरसाया बारूद
अब जंग को आसमान में भी पहुंचाया
नाभिकीय हथियारों से
अन्तरिक्ष को भी सजाया
आदमी नहीं मिलता तो
अपनी दानव मशीन को
अपने ही हथियार से उडाया
पहले दानव जैसी मशीने बनाते
फिर उनको दुश्मन बताते
और फिर दानव नाशक देवता बन जाते
जूठ को प्रमाणित सत्य बनाया
मगर सच भला कहाँ छिपता है
हजार पहरों से भी बाहर दिखता है
कौन जला रहा है धरती की प्राण वायु को
कौन घटा रहा है हरियाली की आयु को
बारूद से इंसानियत की रक्षा करने की
ख्वाहिश जताते हैं वह लोग
जिन्होंने अब अन्तरिक्ष में दानव बसाया
दाएं देखो या बाएँ
जो दानव हैं वही देवताओं का चोला पहने हैं
बंदूके और मिसाइलें उनके गहने हैं
चेहरे पर हैं कुटिल मुस्कान
दूसरे को घाव देने में समझते शान
ऐसे दुश्मन का पता देते हैं
जिस कोई नहीं पाता जान
कहाँ आयेंगे अब देवता इस धरती पर
अन्तरिक्ष से धरती पर इन दानवों ने
जासूसी का जाल बिछाया
दावा यह कि अपने इलाके को बचाया
इस आड़ में दानवों ने ही अपना राज बनाया
अपने घर भरने के लिए रक्षा की बात करते
रोटी का कोई हिसाब नहीं करते
क्योंकि इससे उनके महल नहीं सजते
देते हैं दुनिया को धोखा
डरे सहमें लोग क्या किसी की रक्षा करेंगे
उन्होने तो बस हवा में इन्द्रजाल बनाया
लोग न देख सकें जहाँ अन्तरिक्ष में
वहाँ अपना मकड़जाल बनाया
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पाने की इच्छा को कहते विश्वास-हिन्दी शायरी
ओटने लगते कपास
भजन करते हुए भोजन की आस
जब भूख और भय में घिर जाता इंसान
भ्रष्ट हो जाता है भले हो महान
देह की भूख का भजन से कोई वास्ता नहीं
भजन से रोटी की तरफ कोई
जाता रास्ता नहीं
फिर भी भजन करते लोग
लगाए भोजन की आस
जिनके पेट भरे हैं वह भी
और रोटी की करते आस
मुहँ में हरि का जपते नाम
मन में हरे पते का रटते नांम
पाने कि इच्छा को कहते विश्वास
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शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2008
अँधेरे में चलाते तीर-क्षणिकाएँ
कृत्रिम रौशनी के वीर
निशाने पर नहीं लगे तो
बचने के बहाने अनेक
लग जाये तो तुक्का तो
बन जाते सयाने एक
खाते फिर मुफ्त में पुडी और खीर
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गीतों की महफ़िल सजती हैं
संगीत के शोर में
शब्दों के अर्थ कौन समझता
सुरों में कौन कान बरतता
लोगों को चीखकर कहने की आदत
सुनने से परे कर देती है
रात को करते हैं नशे में गुर्राते हुए
चाय मांगने के लिए किचन की तरफ
देखकर चिल्लाते हैं भोर में
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गुरुवार, 21 फ़रवरी 2008
बाजार के समान में दिल न लगाना-हिन्दी शायरी
वह हीरो बिक गए बाजार में
दिल टूटने की बात क्यों करते हो
उसने भी तो उसे ही चाहा जो
चमका पहले बाजार में
बह गया प्रचार में
जो बिक नहीं सकता
वह किसी के दिल में बस नहीं सकता
कौडियों के मोल बिके या डालर के
बिकना जरूरी है
दिल जीतने से पहले
आंखों में बसना जरूरी है
जो सिर्फ देख पातीं बाजार में
टिक पातीं टीवी और अख़बार के प्रचार में
दिल के हीरो भी वही होते हैं
जो बैठे दौलत के अंबार में
इसलिए दिल में बसने से पहले
हीरो बिकने आते बाजार में
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देखो और भूल जाओ
फिल्म देखो या खेल
देखकर भूल जाओ
बाजार बहुत बड़ा है
वहाँ बिकते सामान में क्या मन लगाना
बाद में पड़े पछताना
कुछ पलों के लिए बहलाते है सामान
उनमें कभी अपना दिल मत लगाओ
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बुधवार, 20 फ़रवरी 2008
ब्लोगर बिकेगा कि ब्लोग -हास्य-व्यंग्य
दोपहर घर पहुंचा तो भतीजा बोला-चाचाजी, अच्छा हुआ आप आ गए, आपको खबर देनी थी। सारे क्रिकेट खिलाड़ी बिक गए।''
''तो"।मैंने उसे घूरकर देखा और कहा-''मुझे इस खबर से क्या मतलब?''
भतीजा बोला-''मुझे तो पता नहीं अन्दर दीदी खबर सुन रही थी और उसने मुझसे कहा कि 'चाचा आयें तो उनकों यह खबर देनी है क्योंकि वह भी खिलाड़ी हैं' तो मैंने आपको यह खबर दे दी, आप हमेशा मुझ पर नाराज क्यों होते हो?''
वह खिसक गया और मैं जैसे ही अन्दर पहुंचा तो भतीजी सोफे से उठकर खडी हुई-''आओ चाचाजी, मैं आपका ही इन्तजार कर रही थी?''
मैंने कहा-''जब मैं अन्दर घुसता हूँ तो बस के ही डर लगता है कि कोई विषय लेकर तुम इन्तजार तो नहीं कर रही? क्योंकि उसके बाद मेरा भाई साहब और भाभी से झगडा जरूर होता है। अब तुम अपनी खबर खाना खाने के बाद देना। ''
''पर खबर तो तब तक बासी हो जायेगी या मैं भूल जाऊंगी। आप खाना खाते रहो मैं सुनाती रहूँ-''वह अपना हाथ ऐसे घुमा रही थी जैसे अंपायर चौके का संकेत देता है। सुबह अपनी गर्दन घड़ी की तरह घुमाने के व्यायाम और बाद में हाथ को चौके के संकेत देने की तरह हिलाने के दौरान वह जब बात करती है तो वह मजेदार होतीं है।
मैंने कहा-''क्रिकेट के खिलाड़ी बिक गए, यह मालुम है। तुम्हारा भईया बता रहा था।पर इससे मेरा क्या?''
''आप भी तो क्रिकेट खेलते थे।''वह बोली-''अब दुबारा खेलना शुरू करो।
मैंने कहा-''अब वह नहीं हो सकता। तुम्हारी मम्मी ने मेरा बल्ला कबाड़ में बेच दिया।''
पास बैठ कर टीवी देख रही भाभीजी बोली-''वह तो टूट गया था भईया। मैंने आपकी मम्मी से पूछकर बेचा था। आप नया बैट खरीद लो।''
भतीजी बोलली-''पहले बोली तो लग जाये फिर तो चाचा एक क्या दस बैट खरीद लें। पहले चाचा का सौदा तो हो जाये।''
तब तक भतीजा अन्दर आ गया और बोला-''छि:, कितनी खराब बात करती है। हमारे चाचा अगर बिक गए तो हमें पढाएगा कौन। हमारी वजह से मोहल्लों वाले से लड़ेगा कौन?''
अब तो भाभाजी की भी चिंता बढ़ गयी--''हाँ, पागल हो गयी है चाचा के बिकने की बात करती है। यह तेरा ढंग है बात करने का? वैसे भी मशहूर खिलाड़ी बिक रहे हैं, तुम्हारे चाचा को बहुत समय हो गया क्रिकेट छोडे।''
भाभीजी खाना लेने चली गयी तो मैंने भतीजी से कहा-''अब मैं ब्लोग पर लिखूंगा और तुम मुझे डिस्टर्ब मत करना।''
हाँ, चाचाजी''-वह एकदम उछलकर बोली-''यह आप इस पर लिखते हो। क्या नाम बताया ब्लोग। उस पर लिखने वालो को क्या कहते हैं। और क्या वह नहीं बिक सकता?''
मैंने भतीजी को घूरकर देखा तो वह झेंप गयी-''मेरा मतलब है। आपका लिखा भी तो बिक सकता है।''
मुझे हंसी आ गयी-''जिस पर लिखता हूँ वह ब्लोग है और मैं ब्लोगर हूँ। अभी इंटरनेट न होने से मैंने लिखा ही कहाँ था और अब तो नया हूँ। पर यह पता नहीं है कि ब्लोग बिक सकता है कि ब्लोगर।''
तब तक भाभी थाली में खाना लगाकर आ गयी तो भतीजी बोली-''मम्मी, चाचा तो ब्लोगर हैं।
भाभीजी ने गुस्से में पूछा-''तो?''
तब तक भतीजा बोला-'' दीदी कह रही हैं कि किसी भी तरह बिक जाओ ताकि स्कूल में अपने चाचा का रुत्वा दिखा सके। ''
भाभी बोली-''तुमने चाचा को लिखने का मौका कहाँ दिया। अब जब इनको विज्ञापन मिलेंगे तब कुछ मिलेगा। वैसे क्या अपने चाचा से मिलने वाला जेब खर्च तुम लोगों को कम पड़ रहा है जो इनको बिकवाने पर तुले हो।''
''मम्मी, आपको पता है विज्ञापनों से यह खिलाड़ी नहीं कमा रहे थे जो बिक रहे हैं-''भतीजी अब खुलकर ज्ञान बघारने लगी थी-''अब तो बिकने में ही फायदा है।''
भाभीजी हंसकर बोली--''भईया, अब तो ही झेलो। इनके पापा और तुमने दुनिया भर की बातें करते इन दोनों को अधिक बुद्धिमान बना दिया है।
वह चली गयी तो मैंने भतीजी से पूछा-''पहले तो यह बताओं कि बिकना क्या चाहिए ब्लोग या ब्लोगर?''
वह बोली--'इतनी अक्ल तो अभी मुझे पापा और आपने नहीं दी।''
मैंने भतीजे की तरह देखा तो वह झेंपकर बोला-''चाचा जी कुछ भी बिके। हमारे कंप्यूटर से ब्लोग चला जाये पर अप इस घर से मत जाना, वरना हम परेशान हो जायेंगे। ''
वह खिसक लिया तो मैंने खाना शुरू किया। भतीजी बोली-''वैसे चाचा जी बिकेगा क्या ब्लोग कि ब्लोगर'
मुझे मन ही मन बहुत हंसी आयी और मैंने कहा-''अब मुझे तसल्ली से भोजन करने दो। बिकने की चिंता में उसे बासी मत करो।''
खेल हो जायेगा काम-हास्य शायरी
अब कौन कर सकता है उनको बदनाम
पहले खेले तो पैसा और नाम कमाया
फिर पैसे ने ही खेल खिलाया
और अब तो खिलाड़ी क्या खेलेंगे
क्या लोग देखेंगे
पैसा ही खेलेगा और देखेगा
खिलाड़ी और दर्शक तो होंगे शोपीस
जिसके पास होगा जितना पैसा उतना नाम
क्रिकेट खेल नहीं, हो गया धंधा और काम
क्रिकेट के बैट और बल्ले कम बिकेंगे
खेलने से पहले नन्हें खिलाड़ी
नीलामी में बिकने के लिए सजे दिखेंगे
बल्ला और बाल बाद में थामेंगे
पहले अपने हाथ बढाकर दाम मांगेगे
फिर खेल के लिए नहीं
बल्कि घर से निकलेंगे करने काम
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मंगलवार, 19 फ़रवरी 2008
टिके हैं वही जमीन पर-हिन्दी शायरी
पहने सिर पर हीरे से जड़े ताज
अपनी करनी पर किया नाज
गिरे हैं वही जमीन पर
बैठे जो दौलत के ढेर पर
सवारी करते क्रूरता के शेर पर
पहरा देते लोगों के छीने हकों को घेर कर
वक्त का पहिया जब घूमा है जब
गिरे हैं वही जमीन पर
जो चले हैं सत्य के सहारे
अपनी जिन्दगी के लिए
जो कहीं मदद के वास्ते नहीं निहारे
दृष्टा बनकर सब देखते हैं
अपने सुख-दुख सारे
जीते हैं आजाद होकर पूरी जिन्दगी
टिके हैं वही जमीन पर
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अकेले ही नजर आये- हिन्दी शायरी
दोस्तों से बात बन जाये
पर उनकी शर्तों पर खरे नहीं उतर पाए
दिल से बहुत चाहते
पर धन की तराजू पर
कभी नहीं तुल पाते
रूह में है प्यार उनके लिए
पर शब्दों में नहीं घोल पाते
क्योंकि दिल से होते वह सीधे
जुबान पर आते
पर उन्हें पसंद है केवल
अपनी तारीफें सुनना
जो इज्जत दिल से होती है
उसे वह जमीन पर दौड़ते देखना चाहते
कोई लाख कोशिश कर ले हम
दिखावे की राह नहीं चल पाते
इसलिए दोस्तों की भीड़ में भी
हमेशा अकेले ही नजर आये
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अहसास-शायरी और क्षणिकाएँ
नहीं पाते अपने को भी जान
अपने सिर उठाये हैं आदमी
ऐसे शब्दों का बोझ
जिनका अर्थ उसका मन नही रहा मान
लिखा हुआ पढा और लिया रट
बोलने पर सुना देता फट
पर रहता है शब्दार्थ के रहस्य से अनजान
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कुछ अंग्रेजी कुछ हिन्दी शब्दों की खिचडी
पकाकर वह लोगों को सुना रहे
अक्ल से पैदल हैं
किसी तरह पब्लिक से छिपा रहे
हिन्दी फिल्मों में काम करने वाले लोग
अपने को स्पेशल बता रहे
अपने घर में होता विद्वान भी बैल
इसलिए वह बाहरी होने का
अहसास दिला रहे
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सोमवार, 18 फ़रवरी 2008
मर्जी से प्यार मिलता नहीं-शायरी
मिल गया तो भी दिल बहलता नहीं
ख्वाब कुछ और होते है
हकीकतें वैसीं कभी होती नहीं
सपनों में जीने की आदत है जिनको
जिन्दगी उनकी होती सरल नहीं
जब तक प्यार पाने के लिए भटकता है आदमी
उसे मिल नहीं पाता
क्योंकि प्यार करना कोई यहाँ सीखा नहीं
ए जमाने वालों
वह फल तुम कैसे पाओगे
जिसका पेड़ तुमने लगाया नहीं
खुदगर्जी के लिए प्यार ढूँढने वालों
मर्जी से प्यार मिलता नहीं
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मस्तराम 'आवारा'
रविवार, 17 फ़रवरी 2008
चले थे साथ-साथ-शायरी
उनको प्यार का पैगाम के लिए
पर उनके घर पर जो मंजर देखा जंग का
निकल आये वापस उल्टे पाँव लिए
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एक ही नाव पर सवार
चले नदी के उस पार
रास्ते भर वादे किये साथ साथ
जीवन भर गुजारने के लिए
जो आया किनारा
अपनी रास्ते चले दिए
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यूं तो होते हैं हर रोज हादसे
वह इसलिए नजर आते
क्योंकि हम उनसे बचकर घर आ जाते
पर जब कोई हो जायेगा हमारे साथ
उठा ले जायेगा अपने हाथ
फिर नहीं दिखाई देंगे अपनी जिन्दगी में हादसे
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